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जम्मू-कश्मीर: कश्मीर में कहीं शून्य से नीचे गिरा तापमान, वीरता से डटे जवान

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: January 3, 2024 16:10 IST

जहां हवा के तूफानी थपेड़े ऐसे की एक पल के लिए खड़ा होना आसान नहीं, तापमान शून्य से कई डिग्री नीचे।

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श्रीनगर: यह पूरी तरह से सच है कि कश्मीर में भयानक सर्दी में दो नजारे कंपकंपी दुड़ाने वाले तो हैं ही रोमांच भी भर रहे हैं। अगर एलओसी के कई इलाकों में शून्य से नीचे तापमान में सैनिक वीरता की दास्तानें लिख रहे हैं तो दूसरी ओर भयानक सर्दी के कारण जम जाने की ओर अग्रसर डल झील पर क्रिकेट खेलने की आस लगाई जा रही है।

एलओसी के नजारे कंपकंपी सिर पढ़ कर ही छुड़ा दे रहे हैं। जहां हवा के तूफानी थपेड़े ऐसे की एक पल के लिए खड़ा होना आसान नहीं, तापमान शून्य से कई डिग्री नीचे। ऊपर से हिमपात के कारण चारों ओर बर्फ की दीवार। लेकिन इन सबके बावजूद दुश्मन से निपटने के लिए खड़े भारतीय जवानों की हिम्मत देख वे पहाड़ भी अपना सिर झुका लेते हैं जिनके सीनों पर वे खड़े होते हैं।

कश्मीर सीमा की एलओसी पर ऐसे दृश्य आम हैं। सिर्फ कश्मीर सीमा पर ही नहीं बल्कि करगिल तथा सियाचिन हिमखंड में भी ये भारतीय सैनिक अपनी वीरता की दास्तानें लिख रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि वीरता की दास्तानें सिर्फ शत्रु पक्ष को मार कर ही लिखी जाती हैं बल्कि इन क्षेत्रों में प्रकृति पर काबू पाकर भी ऐसी दास्तानें इन जवानों को लिखनी पड़ रही हैं।

अभी तक कश्मीर सीमा की कई ऐसी सीमा चौकिआं थीं जहां सर्दियों में भारतीय जवानों को उस समय राहत मिल जाती थी जब वे नीचे उतर आते थे। 24 वर्ष पूर्व तक ऐसा ही होता था क्योंकि पाकिस्तानी पक्ष के साथ हुए मौखिक समझौते के अनुरूप कोई भी पक्ष उन सीमा चौकिओं पर कब्जा करने का प्रयास नहीं करता था जो सर्दियों में भयानक मौसम के कारण खाली छोड़ दी जाती रही हैं। लेकिन करगिल युद्ध के उपरांत ऐसा कुछ नहीं हुआ।

नतीजतन भयानक सर्दी के बावजूद भारतीय जवानों को उन सीमा चौकिओं पर भी कब्जा बरकरार रखना पड़ रहा है जो करगिल युद्ध से पहले तक सर्दियों में खाली कर दी जाती रही हैं तो अब उन्हें करगिल के बंजर पहाड़ों पर भी सारा साल चौकसी व सतर्कता बरतने की खातिर चट्टान बन कर तैनात रहना पड़ रहा है।

जबकि दूसरी ओर विश्व प्रसिद्ध डल झील भयानक सर्दी के कारण पूरी तरह से जमने की ओर अग्रसर है। ऐसे में लोग बेसब्री से इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि क्या इस बार भी डल पर कोई गाड़ी चलेगी या फिर क्या इस बार भी लोग क्रिकेट खेल सकेंगे? जैसे जैसे सर्दी का प्रकोप बढ़ता जा रहा है वैसे वैसे विश्व प्रसिद्ध डल झील की ऊपरी सतह भी जमती जा रही है। इतना जरूर है कि कश्मीर आने वाले पर्यटकों के लिए यह नजारा बेहद ही दिलकश है जिन्होंने पहली बार इस झील को जमते हुए देखा है।

चिल्लेकलां के दौरान डल झील का जमना कोई नई बात नहीं है। वर्ष 1960 में गुलाम मुहम्मद बख्शी के मुख्यमंत्रित्वकाल में डल झील पूरी तरह जम गई थी। उस दौरान श्री बख्शी ने डल पर जीप चलाने का मजा लिया था। उस समय न्यूनतम तापमान शून्य से 12 डिग्री नीचे तक गिर गया था। इसके अलावा 1986 में डल झील पूरी तरह जम गई थी तब निवर्तमान मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने डल पर मोटर साइकिल चलाया था।

साल स्थानीय युवकों ने जमे हुए डल पर एक क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन किया था। इस टेनिस बाल क्रिकेट टूर्नामेंट को लोगों ने सफलतापूर्वक समाप्त भी किया था। बुजुर्ग कहते हैं कि चिल्लेकलां के दिनों में अक्सर डल का पानी जम जाता है। इस साल के शुरू में भी डल झील पूरी तरह जम गई थी।

वर्ष 2005 के दिसंबर में भी चिल्लेकलां के दौरान डल का पानी जम गया था। जो कि करीब एक महीने तक जमा रहा था। दिन का तापमान अभी सामान्य से 4 डिग्री ऊपर है और रात का तापमान शून्य से 6 डिग्री नीचे। यह भी सच है कि घाटी में कड़ाके की ठंड से जमी डल झील को देखने के लिए सैलानियों की भीड़ उमड़ रही है। कल रात को झील के बीच में कई हिस्सों में भी बर्फ से जम गई। इसके अलावा कश्मीर के अन्य इलाकों में ठंड का प्रकोप रहा।

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