सुरक्षाबलों के लिए महंगा साबित हो रहा है कश्मीर का आतंकवाद, 30 सालों में 7200 जवान हुए शहीद 

By सुरेश डुग्गर | Published: February 6, 2019 04:30 PM2019-02-06T16:30:10+5:302019-02-06T16:30:10+5:30

jammu and kashmir: security forces soldiers martyred Kashmiri terrorism | सुरक्षाबलों के लिए महंगा साबित हो रहा है कश्मीर का आतंकवाद, 30 सालों में 7200 जवान हुए शहीद 

सुरक्षाबलों के लिए महंगा साबित हो रहा है कश्मीर का आतंकवाद, 30 सालों में 7200 जवान हुए शहीद 

भारतीय सेना समेत अन्य सुरक्षाबलों के लिए कश्मीर का आतंकवाद महंगा साबित हो रहा है। जबकि 30 सालों के दौरान कुल 7200 सुरक्षाबल शहादत पा चुके हैं जबकि गैर सरकारी आंकड़ा बताता है कि 10000 से अधिक सुरक्षाकर्मी मारे जा चुके हैं। आंकड़ों के अनुसार, भारतीय सेना इन 30 सालों के आतंकवाद के दौर में राज्य में छेड़े गए आतंकवाद विरोधी अभियानों में लगभग 4200 सैनिकों को खो चुकी है और इनमें प्रत्येक 25 सैनिकों के पीछे एक अधिकारी भी शामिल है। 

ठीक इसी प्रकार 30 सालों से चल रहे आतंक विरोधी अभियानों में भारतीय सेना के लगभग 22600 जवान व अधिकारी घायल भी हुए। इनमें से करीब 4900 को समय से पूर्व सेवानिवृत्ति इसलिए देनी पड़ी क्योंकि वे आतंकी हमलों तथा मुठभेड़ों में घायल होने से शारीरिक रूप से अपंग हो चुके थे।

इस सच्चाई से इंकार नहीं है कि कश्मीर में भारतीय सुरक्षाबलों द्वारा छेड़े गए आतंक विरोधी अभियानों में भारतीय सेना को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। रक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, करीब 7200 सुरक्षाकर्मियों का बलिदान यह आतंकवाद अभी तक ले चुका है। विश्व के सबसे ऊंचे युद्धस्थल सियाचिन ग्लेश्यिर पर होने वाली सैनिकों की मौतों के अनुपात में कश्मीर मंे होने वाली मौतें अधिक हैं।

जम्मू कश्मीर में पाक समर्थक आतंकवाद के अब नए दौर में पहुंचने तथा विदेशी भाड़े के सैनिकों द्वारा अति आधुनिक हथियारों का प्रयोग कर सेना को जो क्षति पहुंचाई जा रही है वह भी सभी के लिए चिंता का कारण बन गया है। अभियानों के दौरान ऐसा अवसर भी आया था जब आतंकियों के एक ही हमले में सेना को 3 अधिकारियों को एक साथ खोना पड़ा।

कश्मीर में सेना को 1989 से ही उस समय झौंक दिया गया जब राज्य में ‘उपद्रवग्रस्त क्षेत्र अधिनियम’ को लागू करते हुए सुरक्षाबलों को और अधिकार दिए गए। पर सेना को उसी समय अधिक क्षति उठानी पड़ी थी जब पाकिस्तान की ओर से भाड़े के सैनिक इस ओर धकेले गए थे जबकि इससे पूर्व स्थानीय आतंकी सेना के जवानों पर हमला करने की हिम्मत तक नहीं कर पाते थे।

विदेशी आतंकियों की ओर से अब जो ‘करो या मरो’ की नीति अपनाई गई है उसका मुकाबला करने के लिए सेना को ही भेजा जा रहा है क्योंकि सरकार समझती है कि खतरनाक हथियारों तथा ऐसी नीति का मुकाबला करने में सिर्फ सेना ही सक्षम है जिस कारण उसे क्षति भी उठानी पड़ रही है। यह क्षति इसलिए भी उठानी पड़ रही है क्योंकि आतंकी ऐसे हथियारों का प्रयोग कर रहे हैं जिनके प्रयोग की उम्मीद रक्षाधिकारियों द्वारा अप्रत्यक्ष युद्ध में नहीं की गई थी।

एक चौंकाने वाला तथ्य यह भी है कि जम्मू कश्मीर में ही स्थित विश्व के सबसे ऊंचे युद्धस्थल सियाचिन हिमखंड में शहीद होने वाले सैनिकों की संख्यां कश्मीर में शहीद होने वाले सैनिकों से बहुत ही कम है। सनद रहे कि सियाचिन हिमखंड एक ऐसा युद्धक्षेत्र है विश्व में जो सबसे अधिक ऊंचाई पर तो है। कश्मीर तथा सियाचिन में शहीद होने वाले सैनिकों का अनुपात 8:1 का है।

Web Title: jammu and kashmir: security forces soldiers martyred Kashmiri terrorism

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