अब्दुल्ला व महबूबा के हिरासत मामले में चिदंबरम ने कहा- बिना आरोपों के PSA लगाना लोकतंत्र के लिए सही नहीं है

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 7, 2020 09:02 AM2020-02-07T09:02:21+5:302020-02-07T09:18:47+5:30

चिदंबरम ने कहा कि आरोपों के बिना पीएसए लगाकर किसी जन नेता को जेल में बंद करना एक तरह से लोकतंत्र में सबसे खराब व घृणा है। जब अन्यायपूर्ण कानून पारित किए जाते हैं या अन्यायपूर्ण कानून लागू किए जाते हैं, तो लोगों के पास शांति से विरोध करने के अलावा और क्या विकल्प होता है?

Jammu and Kashmir: In the case of detention on umar Abdullah and mufti Mehbooba, Chidambaram said- PSA without allegations is not right for democracy narendra modi gov amit shah | अब्दुल्ला व महबूबा के हिरासत मामले में चिदंबरम ने कहा- बिना आरोपों के PSA लगाना लोकतंत्र के लिए सही नहीं है

चिदंबरम ने पीएसए पर मोदी सरकार की आलोचना की

Highlightsउमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की छह महीने की ''ऐहतियातन हिरासत'' पूरी होने से महज कुछ घंटे पहले बृहस्पतिवार को उनके खिलाफ पीएसए के तहत मामला दर्ज किया गया।इससे पहले दिन में नेशनल कॉन्फ्रेंस के महासचिव तथा पूर्व मंत्री अली मोहम्मद सागर और पीडीपी के वरिष्ठ नेता सरताज मदनी पर भी पीएसए लगाया गया।

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की छह महीने की ''ऐहतियातन हिरासत'' पूरी होने से महज कुछ घंटे पहले बृहस्पतिवार को उनके खिलाफ जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत मामला दर्ज किया गया। इसके बाद कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने ट्वीट कर मोदी सरकार पर हमला बोल दिया है।
 

चिदंबरम ने कहा कि आरोपों के बिना पीएसए लगाकर किसी जन नेता को जेल में बंद करना एक तरह से लोकतंत्र में सबसे खराब व घृणा है। जब अन्यायपूर्ण कानून पारित किए जाते हैं या अन्यायपूर्ण कानून लागू किए जाते हैं, तो लोगों के पास शांति से विरोध करने के अलावा और क्या विकल्प होता है?

इससे पहले दिन में नेशनल कॉन्फ्रेंस के महासचिव तथा पूर्व मंत्री अली मोहम्मद सागर और पीडीपी के वरिष्ठ नेता सरताज मदनी पर भी पीएसए लगाया गया।

एक पुलिस अधिकारी के साथ एक मजिस्ट्रेट यहां हरि निवास पहुंचे, जहां 49 वर्षीय उमर पांच अगस्त से नजरबंद हैं। इसी दिन केन्द्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से विशेष दर्जा वापस लेकर उसे दो केन्द्र शासित प्रदेशों लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में विभाजित कर दिया था।

उन्होंने पीएसए के तहत जारी वारंट उमर को सौंपा। उमर के दादा तथा पूर्व मुख्यमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के शासनकाल में 1978 में लकड़ी की तस्करी को रोकने के लिये यह कानून लाया गया था।

जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत दो प्रावधान हैं- लोक व्यवस्था और राज्य की सुरक्षा को खतरा। पहले प्रावधान के तहत किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे के छह महीने तक और दूसरे प्रावधान के तहत किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे के दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता है।

साल 2000 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी मंत्रिमंडल में विदेश राज्य मंत्री तथा वाणिज्य मंत्री रहे उमर को तीन पन्नों का एक डॉजियर सौंपा गया है, जिसमें उन पर अतीत में व्यवस्था के खिलाफ बयान देने का आरोप है।

उमर 2009 से 2014 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे। उमर के पिता फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ भी पिछले साल सितंबर में पीएसए के तहत मामला दर्ज किया था, जिसकी दिसंबर में समीक्षा की गई थी।

इसी प्रकार, मजिस्ट्रेट और एक पुलिस अधिकारी ने महबूबा मुफ्ती के सरकारी आवास पर जाकर उन्हें 2010 में दिये गए बयानों को लेकर डॉजियर सौंपा जिसमें उन भाषणों को उन्हें हिरासत में रखने का कारण बताया।

महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी 2014 से भाजपा की सहयोगी पार्टी थी। दोनों ने मिलकर 2018 तक जम्मू-कश्मीर में सरकार चलाई। भाजपा ने अचानक सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिसके बाद वहां राज्यपाल शासन लगा दिया गया।

   

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