जम्मू: तहरीके हुर्रियत के अध्यक्ष मुहम्मद अशरफ सहराई ने तत्कालीन पुलिस महानिदेशक शेष पाल वैद की उस उलाह को ठुकरा दिया था जिसमें उनसे आग्रह किया गया था कि वे हिज्बुल मुजाहिदीन आतंकी गुट में शामिल हुए अपने बेटे जुनैद सहराई को वापस लौट आने के लिए कहें। लेकिन सच्चाई यही थी कि सहराई पर परिवार की ओर से ऐसा दबाव भी लगातार पड़ता रहा था, पर वे कथित ‘आंदोलन’ की खातिर और अपनी कथित आन-बान-शान को बरकरार रखने के लिए ऐसा सार्वजनिक तौर पर करने को आज तक राजी नहीं हुए और आज उनका बेटा सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारा गया है।
फरवरी 2018 के अंत में सहराई को सईद अली शाह गिलानी के स्थान पर तहरीके हुर्रियत कश्मीर का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। यह गुट कश्मीर में तथाकथित आजादी की जंग को छेड़े हुए है। कड़वी सच्चाई यह है कि यही गुट कश्मीर के लोगों खासकर युवाओं को कश्मीर की तथाकाित आजादी के लिए आगे आने की अपीलें तब से कर रहा है जबसे कश्मीर में कथित आजादी का आंदोलन आरंभ हुआ है।
और चौंकाने वाली बात यह है कि अध्यक्ष पद को संभालने के दो दिन बाद ही सहराई को अपने बेटे के हिज्बुल मुजाहिदीन में शामिल होने की खबर मिली थी। दरअसल उनका बेटा जुनैद अपने अब्बाजान की अपील से प्रभावित हुआ था और उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहा जुनैद आतंकी कमांडर बन गया था।
उसके आतंकी कमांडर बनने पर हिज्ब के अतिरिक्त लश्करे तैयबा के कमांडरों ने भी तब खुशी जाहिर करते हुए यह प्रचारित करना आरंभ किया था कि उनके बड़े नेता भी अब अपने बच्चों को कथित आजादी की जंग के लिए खुशी से भिजवा रहे हैं पर यह सच नहीं था। सहराई परिवार जुनैद के इस कदम से भाैंचक्का रह गया था। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि उनका बेटा ऐसा कदम उठाएगा।
दरअसल हुर्रियत कांफ्रेंस के जितने भी घटक दल हैं उनमें से किसी भी नेता के बेटे ने आज तक इस आंदोलन में शिरकत नहीं की थी। सभी के बच्चे या तो विदेशों में हैं या फिर जम्मू कश्मीर के बाहर देश के विभिन हिस्सों मंे गुजर बसर कर रहे हैं। यह बात अलग है कि राष्ट्रवादी विचारधारा के नेता अक्सर हुर्रियत नेताओं को इसके लिए ताने मारते रहते थे।
पर जब तहरीके हुर्रियत के अध्यक्ष सहराई के बेटे ने हथियार उठा कर एक भ्रमित ‘मिसाल’ कायम करने की कोशिश की तो उसके इस कदम से कश्मीर के आंदोलन पर पड़ने वाले असर से सुरक्षाबल चिंतित हो गए थे। उन्हें डर था कि जुनैद सहराई का यह कदम कश्मीर के आतंकवाद को नए मोड़ पर इसलिए ले जाएगा क्योंकि कश्मीरी युवा जुनैद को अपना आइकान मानते हुए उसके नक्शेकदम पर चल पड़ेंगंे। इसकर आतंकवाद पर असर हुआ भी लेकिन सुरक्षाबलों के हाथों आतंकी लगातार मरते जा रहे हैं।
उन्हें यह भी डर था कि हुर्रियती नेता भी जुनैद की ‘बलि’ देकर आतंकवाद को आंदोलन को नए मोड़ पर ला खड़ा करेंगें। पर इस सबके बीच कोई एक पिता के दर्द को नहीं समझ पाएगा जो चाह कर भी अपने बेटे से वापस लौटने की अपील नहीं कर पाया था।। हालांकि अभी तक करीब 150 कश्मीरी युवा अपनी मांओं की अपील पर हथियार छोड़ कर लौट चुके हैं।