जम्मू-कश्मीर: अब भी कई बिछड़े कश्मीरियों को नहीं मिल पाया अपना परिवार, परिवारों को मिलाने की कारवां-ए-अमन बस सेवा कई सालों से है बंद
By सुरेश एस डुग्गर | Published: August 11, 2023 09:49 AM2023-08-11T09:49:55+5:302023-08-11T09:51:21+5:30
याद रहे कश्मीर के दोनों हिस्सों में रह रहे बिछुड़े परिवारों को मिलाने की खातिर आरंभ हुई कारवां-ए-अमन यात्री बस सेवा इस साल अप्रैल माह की 7 तारीख को अपने परिचालन के 18 साल पूरे कर चुकी है पर कश्मीरियों के अरमान अभी भी अधूरे ही हैं।
श्रीनगर: एलओसी के आर-पार बसे जम्मू कश्मीर के परिवारों को आपस में मिलाने वाली कारवां-ए-अमन बस सेवा साढ़े चार साल से बंद है। कश्मीर के दोनों हिस्सों में रह रहे बिछुड़े परिवारों को मिलाने की खातिर आरंभ हुई कारवां-ए-अमन यात्री बस सेवा ने इस साल 7 अप्रैल को अपने परिचालन के 18 साल पूरे कर तो लिए थे पर कश्मीरियों के अरमान अभी भी अधूरे ही हैं।
याद रहे कश्मीर के दोनों हिस्सों में रह रहे बिछुड़े परिवारों को मिलाने की खातिर आरंभ हुई कारवां-ए-अमन यात्री बस सेवा इस साल अप्रैल माह की 7 तारीख को अपने परिचालन के 18 साल पूरे कर चुकी है पर कश्मीरियों के अरमान अभी भी अधूरे ही हैं।
18 साल की इस अवधि में कुल गैर सरकारी तौर पर 25 हजार के करीब लोगों ने इस सेवा का लाभ उठाया पर अभी भी 38 हजार से अधिक लोग अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं जिस कारण आम कश्मीरी यह कहने को मजबूर हुआ है कि यह बस सेवा उनके अरमान पूरे नहीं कर पाई है।
अभी भी इस कश्मीर के लोगों को इस यात्री बस सेवा पर नाराजगी इसलिए है क्योंकि वे बाबूगिरी के चलते इसका सफर नहीं कर पा रहे थे।
सबसे अहम बात इस मार्ग के प्रति यह है कि कश्मीरी चाहते हैं कि इस सड़क मार्ग को सिर्फ चहेतों के लिए ही नहीं बल्कि आम कश्मीरी के लिए खोला जाना चाहिए ताकि वे उस कश्मीर में रहने वाले अपने बिछुड़े परिवारों से बेरोकटोक मिल सकें ।
यही कारण है कि अभी भी कश्मीरियों को शिकायत है कि इस सड़क मार्ग का इस्तेमाल सिर्फ ऊंची पहुंच रखने वालों द्वारा ही किया जा रहा है और आम कश्मीरी इससे कोसों दूर है।
श्रीनगर के लाल चौक में दुकान चलाने वाला मसूद अहमद कहता था कि 18 साल हो गए वह उस कश्मीर में रहने वाली अपनी बहन से मिलने की इजाजत नहीं पा सका है।
‘हर बार मेरे आवेदन को कोई न कोई टिप्पणी लगा कर लौटा दिया जाता है और मेरा पड़ौसी दो बार उस पार हो आया ऊंची पहुंच के कारण जबकि उसका कोई रिश्तेदार भी उस पार नहीं रहता है,’मसूद कहता था। पर अब तो साढ़े 4 सालों से सभी कश्मीरियों के अरमानों पर पानी फिर चुका है।