जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 को हटाना नामुमकिन: सुप्रीम कोर्ट
By स्वाति सिंह | Published: April 4, 2018 11:23 AM2018-04-04T11:23:18+5:302018-04-04T11:23:18+5:30
सुनवाई के दौरान केंद्र के लिए उपस्थित अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मामला कुछ समय बाद सुना जा सकता है क्योंकि इसी तरह के मामले अदालत के सामने लंबित हैं और जल्द ही उन्हें सूचीबद्ध किया जाना है।
नई दिल्ली, 4 अप्रैल: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 पर कहा कि यह कोई अस्थायी नहीं है। न्यायमूर्ति एके गोयल और आरएफ नरीमन की पीठ ने कहा, 'इस मुद्दे को इस साल की अदालत के द्वारा 2017 सरफेसी मामले में शामिल किया गया है, जहां हमने अनुच्छेद 370 के हेडनोट के बावजूद कोई अस्थायी प्रावधान नहीं है।'
सुनवाई के दौरान केंद्र के लिए उपस्थित अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मामला कुछ समय बाद सुना जा सकता है क्योंकि इसी तरह के मामले अदालत के सामने लंबित हैं और जल्द ही उन्हें सूचीबद्ध किया जाना है। मामले की सुनवाई के दौरान अडिशनल सॉलिसटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह मुद्दा कुछ समय बाद सुना जा सकता है, क्योंकि इस तरह के मामले अदालत के सामने लंबित हैं और जल्द ही उन्हें सूचीबद्ध किया जाना है।
जम्मू और कश्मीर सरकार के उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता राजे धवन और वकील शूबा आलम ने यह स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट में पहले लंबित अन्य मामले संविधान के आर्टिकल 370 नहीं बल्कि आर्टिकल 35A से संबंधित हैं. धवन ने कहा कि वर्तमान सभी मामले धारा 370 के साथ इन लंबित मामलों को नहीं सुना जा सकता है। पीठ ने एएसजी के आग्रह पर तीन सप्ताह तक मामले की सुनवाई को स्थगित कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह याचिकाकर्ता कुमारी विजयलक्ष्मी झा की याचिका पर सुनवाई करते हुए बताई. 11 अप्रैल, 2017 में दिल्ली हाई कोर्ट ने झा की उस याचिका को खारिज किया था. जिसमें उन्होंने कोर्ट से यह घोषणा करने की गुजारिश की थी कि कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 की प्रकृति अस्थायी है।
याचिका में कहा गया था कि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के विघटन के बाद भी धारा 370 और जम्मू-कश्मीर के संविधान को भारत के राष्ट्रपति या भारत की संसद से सहमति नहीं मिलने के बावजूद जारी रखना हमारे संविधान से धोखे के बराबर है।