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जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने कर्मचारियों को कई महीनों से नहीं दिया वेतन, बिना आय महाशिवरात्रि मनाने से चिंतित लोग

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: February 15, 2023 16:18 IST

जानकारी के अनुसार, कश्मीरी पंडित महाशिवरात्रि पर भगवान शिव सहित उनके परिवार की स्थापना घरों में करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से वटुकनाथ घरों में मेहमान बनकर रहते हैं। करीब एक महीने पहले से इसे मनाने की तैयारियां शुरू हो जाती हैं।

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ठळक मुद्देमहाशिवरात्रि को कश्मीर में बड़े धूम-धाम से मनाया जाता हैकश्मीरी पंडितों के लिए महाशिवरात्रि का त्योहार सबसे बड़ा पर्व होता है सरकारी कर्मचारियों को वेतन न देने के कारण लोगों के सामने त्योहार मनाने का प्रश्न खड़ा हो गया है

श्रीनगर: दो दिन के बाद महाशिवरात्रि का त्यौहार पूरे देश में मनाया जाएगा। कश्मीरी पंडितों का यह सबसे बड़ा त्यौहार होता है और देश के अन्य हिस्सों की अपेक्षा इसे यहां ज्यादा धूमधाम से मनाया जाता है। कश्मीर से पलायन करने के बाद हर शिवरिात्रि को कश्मीरी पंडितों ने भगवान शिव से अपनी कश्मीर वापसी की दुआ तो मांगी पर वह अभी तक पूरी नहीं हो पाई है।

इस बार तो उन सैंकड़ों कश्मीरी पंडित सरकारी कर्मचारियों के समक्ष सबसे बड़ा प्रश्न बिना पैसों के इसे मनाने का भी है जो पिछले 8 महीनों से जम्मू में प्रदर्शनरत हैं और सरकार ने उनका वेतन जारी नहीं किया है।

कश्मीरी पंडित इसे 'हेरथ' के रूप में मनाते हैं। 'हेरथ' शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है जिसका हिंदी अर्थ हररात्रि या शिवरात्रि होता है। हेरथ को कश्मीरी संस्कृति के आंतरिक और सकारात्मक मूल्यों को संरक्षित रखने का पर्व भी माना जाता है। इसके साथ ही यह लोगों को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

जानकारी के अनुसार, कश्मीरी पंडित महाशिवरात्रि पर भगवान शिव सहित उनके परिवार की स्थापना घरों में करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से वटुकनाथ घरों में मेहमान बनकर रहते हैं। करीब एक महीने पहले से इसे मनाने की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। कहने को 33 साल का अरसा बहुत लंबा होता है और अगर यह अरसा कोई विस्थापित रूप में बिताए तो उससे यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह अपनी संस्कृति और परंपराओं को सहेज कर रख पाएगा। मगर कश्मीरी पंडित विस्थापितों के साथ ऐसा नहीं है जो बाकी परंपराओं को तो सहेज कर नहीं रख पाए लेकिन शिवरात्रि की परंपराओं को फिलहाल नहीं भूले हैं।

आतंकवाद के कारण पिछले 33 वर्ष से जम्मू समेत पूरी दुनिया में विस्थापित जीवन बिता रहे कश्मीरी पंडितों का तीन दिन तक चलने वाले सबसे बड़े पर्व महाशिवरात्रि का धार्मिक अनुष्ठान पूरी आस्था और धार्मिक उल्लास के साथ पूरा होगा। यह समुदाय के लिए धार्मिक के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक पर्व भी है। जम्मू स्थित कश्मीरी पंडितों की सबसे बड़ी कालोनी जगती और समूचे जम्मू में बसे कश्मीरी पंडितों के घर-घर में इस बार पूजा की तैयारी की रौनक नहीं है। 

कारण स्पष्ट है, इस बस्ती में अधिकतर उन कश्मीरी पंडितों के परिवार रहते हैं जो कश्मीर में प्रधानमंत्री योजना के तहत सरकारी नौकरी कर रहे हैं और पिछले साल मई में आतंकी हमलों के बाद जम्मू आ गए थे। वे तभी से अपना तबादला सुरक्षित स्थानों पर करवाने के लिए आंदोलनरत हैं।

उनके समक्ष दिक्कत यह है कि प्रशासन ने उनका वेतन भी रोक रखा है। प्रशासन कहता है कि काम नहीं, तो वेतन नहीं। हालांकि, इन आंदोलनरत सैंकड़ों कर्मियों में से कुछेक पिछले सप्ताह कश्मीर वापस लौटे तो उन्हें वेतन मिल चुका है। स्थिति अब यह है कि इन कश्मीरी हिन्दू कर्मचारियों के आंदोलन को दबाने की खातिर प्रशासन ने अब जम्मू में कई जगह धारा 144 भी लागू कर कई कर्मचारियों को आज हिरासत में भी ले लिया।

टॅग्स :जम्मू कश्मीरJammuकश्मीरी पंडित
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