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न्यायाधीशों के लिए राष्ट्रीय स्तर का सुरक्षा बल बनाना व्यवहार्य नहीं होगा :केंद्र ने न्यायालय से कहा

By भाषा | Updated: August 17, 2021 20:35 IST

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केंद्र सरकार ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि देश भर में न्यायाधीशों की सुरक्षा के लिए केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) जैसा राष्ट्रीय स्तर का सुरक्षा बल बनाना ‘‘व्यवहार्य’’ और उपयुक्त नहीं होगा। विभिन्न राज्यों द्वारा जवाब दाखिल नहीं करने को लेकर नाराज शीर्ष अदालत ने कहा कि मामले में इन पर एक एक लाख रुपए का जुर्माना लगााते हुए कहा कि जवाबी हलफनामा 10 दिन के अंदर दाखिल किया जा सकता है। न्यायालय ने कहा कि जुर्माने की यह राशि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन वेलफेयर फंड में जमा करानी होगी और ऐसा नहीं होने पर संबंधित राज्यों के मुख्य सचिवों को उसके समक्ष उपस्थित होना पड़ेगा। प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत तथा न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की तीन सदस्यीय पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘केरल की ओर से पेश हुए वकील ने समय के लिए अनुरोध किया और जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए 10 दिन का समय दिया गया है, जिसके साथ यह शर्त रखी गई है कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन एडवोकेट्स वेलफेयर फंड में अदालत खर्च के तौर पर एक लाख रुपये जमा करना होगा।’’न्यायालय ने कहा, ‘‘अब तक हलफनामा दाखिल नहीं करने वाले शेष राज्यों को भी आज से 10 दिनों के अंदर इसे दाखिल करना होगा। साथ ही, एससीबीए वेलफेयर फंड में एक लाख रुपये अदालत खर्च के रूप में जमा करना होगा, जिसमें नाकाम रहने पर हम संबद्ध राज्यों के मुख्य सचिवों को तलब करने को बाध्य हो जाएंगे।’’ झारखंड के धनबाद में एक न्यायाधीश की कथित हत्या के मद्देनजर देश भर में न्यायाधीशों और वकीलों की सुरक्षा से जुड़े स्वत:संज्ञान वाले एक मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने इस बात से नाराजगी जताई कि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और झारखंड जैसे राज्यों ने अपना जवाब दाखिल नहीं किया है। पीठ ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया को इस विषय में एक पक्षकार बनाने और अपना जवाब दाखिल करने की भी अनुमति दे दी। सुनवाई शुरू होने पर केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि न्यायाधीशों की सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा एक गंभीर विषय है। केंद्र के जवाब का हवाला देते हुए उनहोंने कहा कि एक तंत्र पहले से मौजूद है और केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 2007 में दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा था कि न्यायाधीशों की सुरक्षा के लिए विशेष इकाइयां होनी चाहिए। मुद्दे को प्रशासनिक बताते हुए पीठ ने सवाल किया कि क्या केंद्र देश में न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों की सुरक्षा के लिए सीआईएसएफ या रेलवे सुरक्षा बल जैसा कोई बल गठित करने को इच्छुक है। मेहता ने कहा, ‘‘हमारा कहना है कि न्यायाधीशों के लिए सीआईएसएफ जैसा राष्ट्रीय स्तर का एक सुरक्षा बल रखना उपयुक्त या व्यवहार्य नहीं होगा।’’ पीठ ने उनसे सभी राज्यों की एक बैठक बुलाने और समस्या का हल करने के लिए फैसला करने को कहा। मेहता ने कहा कि इस मुद्दे पर गृह सचिवों या राज्य पुलिस महानिदेशकों की बैठक बुलाई जा सकती है। पीठ ने कहा, ‘‘राज्य अब कह रहे है कि उनके पास सीसीटीवी के लिए पैसे नहीं हैं। इन मुद्दों को आपको और राज्यों को आपस में मिलकर हल करना होगा। हम बहाने सुनना नहीं चाहते। ’’ उल्लेखनीय है कि सीसीटीवी फुटेज के अनुसार धनबाद के जिला और सत्र न्यायाधीश उत्तम आनंद 28 जुलाई की सुबह वहां सड़क पर टहल रहे थे, तभी एक ऑटो रिक्शा उनकी तरफ आया और उन्हें टक्कर मारकर वहां से फरार हो गया। स्थानीय लोग न्यायाधीश को तुरंत अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 31 जुलाई को मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का फैसला किया था। झारखंड पुलिस ने मामले के सिलसिले में दो लोगों को गिरफ्तार किया था।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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