सिर्फ जघन्य अपराधों में भारी वृद्धि के कारण किसी व्यक्ति को दोषी ठहराना विवेकपूर्ण नहीं : न्यायालय

By भाषा | Updated: November 8, 2021 21:04 IST2021-11-08T21:04:45+5:302021-11-08T21:04:45+5:30

It is not prudent to convict a person just because of huge increase in heinous crimes: SC | सिर्फ जघन्य अपराधों में भारी वृद्धि के कारण किसी व्यक्ति को दोषी ठहराना विवेकपूर्ण नहीं : न्यायालय

सिर्फ जघन्य अपराधों में भारी वृद्धि के कारण किसी व्यक्ति को दोषी ठहराना विवेकपूर्ण नहीं : न्यायालय

नयी दिल्ली, आठ नवंबर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए दोषी ठहराना बुद्धिमानी या विवेकपूर्ण नहीं हो सकता क्योंकि जघन्य अपराधों में भारी वृद्धि हुयी है। इसके साथ ही न्यायालय ने 1999 में दर्ज कथित डकैती के एक मामले में दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को बरी कर दिया।

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि आपराधिक न्यायशास्त्र के मुख्य सिद्धांत को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि कि दस दोषी व्यक्ति भले ही बच जाएं लेकिन किसी एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए। पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में जहां महत्वपूर्ण गवाहों के "पलटने" का अनुमान है, अभियोजन पक्ष का कर्तव्य है कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत उनके बयान जल्द से जल्द दर्ज करवाएं या अन्य ठोस सबूत एकत्र करें ताकि मामला पूरी तरह से मौखिक गवाही पर निर्भर नहीं रहे।

पीठ ने कहा, "किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए दोषी ठहराना बुद्धिमानी या विवेकपूर्ण नहीं हो सकता क्योंकि जघन्य अपराधों में भारी वृद्धि हुई है तथा पीड़ित अक्सर डर या अन्य बाहरी वजहों से सच बोलने से कतराते हैं...।’’ इस पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी शामिल हैं।

पीठ ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय और निचली अदालत द्वारा पारित फैसलों को खारिज कर दिया जिसमें उस व्यक्ति को दोषी ठहराया गया था। पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य उसके अपराध को उचित संदेह से परे स्थापित नहीं करते।

सर्वोच्च अदालत ने उच्च न्यायालय के सितंबर 2009 के उस फैसले के खिलाफ दायर अपील पर फैसला सुनाया जिसमें निचली अदालत के मार्च 2002 के दोषिसद्धि के आदेश को बरकरार रखा गया था।

उच्च न्यायालय ने व्यक्ति की दोषसिद्धि को कायम रखा था लेकिन भारतीय दंड संहिता की धारा 397 (डकैती) के तहत दंडनीय अपराध के लिए सजा को 10 साल से घटाकर सात साल कर दिया था।

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Web Title: It is not prudent to convict a person just because of huge increase in heinous crimes: SC

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