Budget 2019: मोदी सरकार के इस बजट में हो सकता है 'यूनिवर्सल बेसिक इनकम' का ऐलान, चित हो जाएगा विपक्ष!
By आदित्य द्विवेदी | Published: February 1, 2019 10:41 AM2019-02-01T10:41:28+5:302019-02-01T11:03:58+5:30
भारत में गरीबी आज भी एक सच्चाई है। ऐसे में गरीबों को न्यूनतम तयशुदा आय देने की घोषणा की जा सकती है। इस घोषणा से सरकारी खजाने पर सात लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। जानिए यूनिवर्सल बेसिक इनकम के बारे में बड़ी बातें....
मोदी सरकार के इस कार्यकाल के आखिरी बजट में जिस संभावित घोषणा की सबसे अधिक चर्चा है वो है यूनिवर्सल बेसिक इनकम। वित्त मंत्री पीयूष गोयल अगर इसकी घोषणा करते हैं तो आगामी चुनाव में विपक्ष को चित कर सकती है। माना जा रहा है कि नोटबंदी और जीएसटी ने आम जनता के बीच सरकार की नकारात्मक छवि बना दी है। ऐसे में यूनिवर्सल बेसिक इनकम की घोषणा चुनाव से पहले मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक हो सकती है।
क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम
यूनिवर्सल बेसिक इनकम एक तरीके से बेरोजगारी बीमा है। ये देश के गरीबों के लिए एक प्रकार से सामाजिक सुरक्षा की गारंटी है। अगर सरकार इसकी घोषणा करती है तो सरकारी खजाने पर सात लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। हालांकि यह सभी को नहीं दिया जा सकता है। सरकार इसके लिए कुछ पैमाना बना सकती है। भारत में यूनिवर्सल बेसिक इनकम की प्रथम चर्चा 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में रखी गई थी।
करीब 10 हजार हो सकता है न्यूनतम वेतन
अगर अकुशल कामगारों के लिए केंद्र सरकार की ओर से दी जाने वाली प्रति दिन 321 रुपए की न्यूनतम मजदूरी को ही आधार माना जाए तो सरकार को हर महीने प्रति व्यक्ति 9,630 रुपए देने का प्रावधान लागू करना होगा। इस योजना में गरीब तबके के सिर्फ 18 से 20 फीसदी परिवारों को शामिल किया जा सकता है। गौरतलब है कि सरकार गरीब तबकों को पहले ही कई वस्तुओं में सब्सिडी देती है।
राहुल गांधी के वादे से सरकार पर दबाव
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पिछले दिनों वादा किया कि अगर केंद्र में उनकी सरकार बनती है तो गरीबों को न्यूनतम आय देने के लिए यूनिवर्सिल बेसिक इनकम लागू किया जाएगा। राहुल की इस घोषणा के साथ ही केंद्र सरकार पर इसके ऐलान का दबाव बन रहा है। गौरतलब है कि सरकार पिछले दो सालों से इस योजना पर काम कर रही है। देश से गरीबी समाप्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित होगा।
बड़े रोड़े हैं इस राह में
यह एक आसान विकल्प भी नही माना जा सकता क्योंकि इससे राज्यों की वित्तीय स्थिति पर और दबाव बढ़ेगा। केन्द्र प्रायोजित योजना के तौर पर यदि यह शुरू की जाती है तो इसका आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश सरकारों पर ज्यादा असर होगा। इन राज्यों की सरकारों ने पहले ही किसान कर्ज माफी योजना लागू की है। केवल छत्तीसगढ़ और झारखंड के पास ही नई योजना को वहन करने की कुछ गुंजाइश होगी।