भारतीय परिवारों में अनुशासन सिखाने के लिए 30 तरह की होती है हिंसा, जिसमें जलाना, चिकोटी काटना, थप्पड़ मारना, पीटना है शामिल
By भाषा | Published: June 3, 2020 05:27 AM2020-06-03T05:27:24+5:302020-06-03T05:27:24+5:30
unicef: अध्ययन में कहा गया है, ‘‘अनुशासन का पाठ पढ़ाने के प्रयास के तहत कम से कम 30 प्रकार के शारीरिक एवं मौखिक उत्पीड़न सामने आये। परिवारों में, स्कूलों में तथा सामुदायिक स्तर पर बच्चों, लड़के और लड़कियां दोनों को ही अनुशासन सिखाने के लिए दंडित करना व्यापक रूप से स्वीकार्य चलन है।’’
नई दिल्लीः यूनिसेफ द्वारा पांच राज्यों में कराये गये एक नये अध्ययन में भारतीय परिवारों में अनुशासन सिखाने के प्रयास के तहत कम से कम 30 प्रकार के शारीरिक एवं मौखिक उत्पीड़न सामने आये। ‘पैरेंटिंग मैटर्स: एक्जामिनिंग पैरेंटिंग एप्रोचेज एंड प्रैक्टिसेज’ नामक यह अध्ययन मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के दो-दो जिलों, राजस्थान के तीन और महाराष्ट्र के चार जिलों में किया गया।
इस अध्ययन में परिवारों में बच्चों के विरूद्ध हिंसा के विभिन्न रूपों का जिक्र किया गया हैं। शारीरिक हिंसा में जलाना, चिकोटी काटना, थप्पड़ मारना, छड़ी, बेल्ट, छड़ आदि से पीटना शामिल है जबकि मौखिक हिंसा के तहत दोषारोपण, आलोचना करना, चिल्लाना, भद्दी भाषा का इस्तेमाल करना आदि आते हैं। इसके अलावा बच्चे माता-पिता में से एक के द्वारा दूसरे के प्रति, भाई-बहनों या परिवार के बाहर शारीरिक हिंसा देखते हैं। उन्हें बाहर जाने से रोकना, भोजन नहीं देना, भेदभाव करना, मन में भय पैदा करना जैसे भावनात्मक उत्पीड़न से भी गुजरना पड़ता है।
अध्ययन में कहा गया है, ‘‘अनुशासन का पाठ पढ़ाने के प्रयास के तहत कम से कम 30 प्रकार के शारीरिक एवं मौखिक उत्पीड़न सामने आये। परिवारों में, स्कूलों में तथा सामुदायिक स्तर पर बच्चों, लड़के और लड़कियां दोनों को ही अनुशासन सिखाने के लिए दंडित करना व्यापक रूप से स्वीकार्य चलन है।’’
अध्ययन के अनुसार लड़कियों और लड़कों की परवरिश भी बहुत कम उम्र से ही अलग-अलग तरीके से की जाती है तथा घरेलू कामकाज का बोझ एवं रोजमर्रा की बंदिशें पिता बेटियों पर लगाते हैं। अध्ययन में कहा गया है, ‘‘बच्चों की मुख्यतौर पर देखभाल करने वाली मां होती हैं जबकि पिता इन चीजों में कम शामिल होते हैं। पुरुष बस बच्चों को बाहर ले जाते हैं, मां ही उन्हें कहानियां और लोरियां/गाने सुनाकर घर के अंदर बच्चों में प्रेरणा भरती हैं।’’