10 हजार करोड़ में 97 निगरानी ड्रोन खरीदेगी भारतीय वायुसेना, चीन-पाक सीमा पर मजबूत होगा निगरानी तंत्र
By शिवेन्द्र कुमार राय | Updated: July 18, 2023 11:04 IST2023-07-18T11:02:56+5:302023-07-18T11:04:52+5:30
भारत में बने ये ड्रोन 30 घंटे तक लगातार उड़ान भरने में सक्षम होंगे। हाल के दिनों में चीन से लगती सीमा पर उंचाई वाले इलाकों में जिन चुनौतियों का सामना भारतीय सेना और वायुसेना कर रही हैं, वैसे हालात में ये ड्रोन सेनाओं के निगरानी तंत्र को और मजबूत करेंगे।

निगरानी ड्रोन (प्रतीकात्मक तस्वीर)
नई दिल्ली: चीन और पाकिस्तान से लगी सीमा पर सुरक्षा और निगरानी तंत्र को और मजबूत करने के लिए भारतीय वायु सेना 97 ‘मेड-इन इंडिया’ ड्रोन खरीदने जा रही है। देश में ही बने इन निगरानी ड्रोन्स का सौदा 10 हजार करोड़ में होने की जानकारी सामने आई है।
भारत में बने ये ड्रोन 30 घंटे तक लगातार उड़ान भरने में सक्षम होंगे। हाल के दिनों में चीन से लगती सीमा पर उंचाई वाले इलाकों में जिन चुनौतियों का सामना भारतीय सेना और वायुसेना कर रही हैं, वैसे हालात में ये ड्रोन सेनाओं के निगरानी तंत्र को और मजबूत करेंगे।
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे पर 31 एमक्यू-9बी रीपर ड्रोन खरीदने का भी सौदा हुआ था। पूरी दुनिया में बेहद तेजी से बदलते हालात और युद्ध की नई रणनीतियों के बीच हवाई निगरानी और मानव रहित लड़ाकू क्षमताओं को बढ़ाने के लिए ड्रोन्स की खरीदारी देश की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
निगरानी के लिए देश में बने ड्रोन्स को खरीदने का फैसला ये भी दिखाता है कि सरकार आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा देना चाहती है और देश के हथियार निर्माताओं का मनोबल भी बढ़ाए रखना चाहती है। बीते 15 जून को रक्षा अधिग्रहण परिषद की बैठक के दौरान इस बात पर भी चर्चा हुई थी कि घरेलू विक्रेताओं से निगरानी ड्रोन जैसे हथियार खरीदे जाएं।
बता दें कि भारतीय सेनाएं निगरानी के लिए केवल ड्रोन जैसे हथियारों पर ही निर्भर नहीं हैं। उत्तराखंड के औली में हुए भारत-अमेरिकी सैन्य युद्ध अभ्यास के दौरान एक खास दृश्य देखने को मिला जिसने सबको चौंका दिया था। दरअसल भारतीय सेना चील पक्षियों को भी ऐसे प्रशिक्षित कर रही जिससे वह हवा में उड़ रहे दुश्मन के निगरानी ड्रोन को अपने पंजो के वार से नीचे गिरा दें।
दुश्मन के ड्रोन के खतरे को देखते हुए और ट्रैक किए जाने की चिंता के बिना गहन निगरानी करने की आवश्यकता के साथ सेना बूट कैंप के माध्यम से ‘आकाशी रंगरूटों’ के झुंड को खड़ा कर रही है। भारतीय सेना मेरठ स्थित रिमाउंट वेटरनरी कॉर्प्स (आरवीसी) केंद्र में काली चीलों और बाज़ों को क्वाडकॉप्टर को हवा में ही मार गिराने के लिए चुपचाप से प्रशिक्षित कर रही है।