वैश्विक बौद्धिक संपदा बनेगा 140 साल पुराने दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे का टॉय ट्रेन, लोगो पेटेंट के लिए भारत ने आवेदन किया
By विशाल कुमार | Published: November 7, 2021 09:00 AM2021-11-07T09:00:18+5:302021-11-07T09:05:35+5:30
साल 1880 में शुरू हुए दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे के दो लोगो हैं और दोनों को ही पेटेंट कराने की तैयारी है. बौद्धिक संपदा के रूप में दर्ज होने के बाद इन लोगो का इस्तेमाल करने के लिए अब भारत से मंजूरी लेने के साथ कीमत भी चुकानी होगी.
नई दिल्ली: 140 साल पुराने दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे (डीएचआर) के ऐतिहासिलक टॉय ट्रेन के लोगो को भारत अंतरराष्ट्रीय तौर पर अपनी बौद्धिक संपदा के रूप में दर्ज कराने जा रहा है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, बौद्धिक संपदा के रूप में दर्ज होने के बाद इन लोगो का इस्तेमाल करने के लिए अब भारत से मंजूरी लेने के साथ कीमत भी चुकानी होगी.
20 साल से भी पहले डीएचआर को यूनेस्को, विश्व विरासत स्थल के रूप में मान्यता दे चुका है.
साल 1880 में शुरू हुए डीएचआर के दो लोगो हैं और दोनों को ही पेटेंट कराने की तैयारी है. एक लोगो में मोटे, काले और आपस में जुड़े अक्षरों में डीएचआर लिखा है तो दूसरे में पहाड़ों, जंगलों और एक नदी की तस्वीर के साथ एक गोलाकार मुहर है, जिसके चारों ओर हरे रंग की पृष्ठभूमि पर सफेद अक्षरों में दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे लिखा है.
दोनों ही लोगो 100 साल पुराने हैं. इनका इस्तेमाल अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप में कंपड़ों और संचार सामग्रियों पर कारोबार के उद्देश्य से किया जाता है. पपश्चिम बंगाल सरकार भी इसका इस्तेमाल कर चुकी है.
भारत की ओर से अगस्त में पेटेंट के लिए जिनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र संस्था विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआईपीओ) को भेज दिया गया है और छह महीने तक कोई आपत्ति नहीं आने पर भारत के दावे को मंजूरी मिल जाएगी.