स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से ही तिरंगा क्यों फहराते हैं प्रधानमंत्री?
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 15, 2019 05:48 AM2019-08-15T05:48:04+5:302019-08-15T05:48:04+5:30
लाल किला और तिरंगे का अक्स एक-दूसरे के इस कदर पर्याय हो चुके हैं, जिनकी आज एक-दूसरे के बिना कल्पना भी मुश्किल है। देश की आजादी के बाद से ये परंपरा चली आ रही है।
15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ तो हमारे पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले से तिरंगा फहराया। इस 15 अगस्त को पीएम नरेंद्र मोदी एक बार फिर 72 सालों से जारी परंपरा के अनुरूप स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराएंगे और राष्ट्र को सम्बोधित करेंगे। लेकिन देश की आजादी के दिन प्रधानमंत्री द्वारा तिरंगा फहराने के लिए लाल किला को ही क्यों चुना गया? ये आपने कभी सोचा है। तिरंगा का लाल किला से ऐसा संबंध है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने नोटों पर भी लाल किले पर तिरंगा लहराते हुये तस्वीर लगाई है।
लाल किले से स्वतंत्रता दिवस के दिन तिरंगा फहराने को लेकर कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है। नाही ही संविधान में इसका कोई उल्लेख है। लाल किले से प्रधानमंत्री के तिरंगा फहराने के पीछे कोई कानूनी या संवैधानिक प्रावधान नहीं है। यह बस एक परंपरा है जो आजाद हिंदुस्तान की पहचान बन चुकी है, जो 72 सालों से चली आ रही है।
देश की आजादी के बाद पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले से तिरंगा फहराया। पीएम नेहरू ने 1964 में अपने निधन से पहले तक इस परंपरा को जारी रखा। नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी ने भी स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से तिरंगा फहराने और राष्ट्र को सम्बोधित करने की रवायत कायम रखी और इस तरह ये अलिखित परंपरा स्थापित हो गई और बाद के प्रधानमंत्रियों ने इसे जारी रखा।
लेकिन, पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आजादी मिलने के बाद लाल किले को ही तिरंगा फहराने के लिए क्यों चुना? इसकी वजह है लाल किले का इतिहास।
- 1857 की क्रांति और लाल किला: 1857 की क्रांति में मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को क्रांतिकारियों का निर्विवाद नेता माना गया। आजादी की पहली लड़ाई में भारतीय क्रांतिकारियों की हार हुई और जफर को अंग्रेजों ने रंगून दरबदर कर दिया, जहां उनका निधन हो गया। 1857 की क्रांति के विफल होने के लाल किले पर ब्रिटिश साम्राज्य का यूनियन जैक फहराने लगा। 1857 की क्रांति हो या उसके बाद 1947 तक चली आजादी की लड़ाई हो लाल किले पर कब्जा हिंदुस्तान की स्वतंत्रता का प्रतीक बन गया था।
- लाल किले पर दोबारा कब्जा करने का आह्वान सुभाष चंद्र बोस ने दिया था: दिल्ली का भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के लिए कितना महत्व है इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि जब सुभाष चंद्र बोस ने रंगून में आजाद हिन्द फौज का गठन किया तो उन्होंने "दिल्ली चलो" का नारा देते हुए लाल किले पर दोबारा कब्जा हासिल करने का आह्वान किया।
- देश को जब 200 सालों के ब्रिटिश कोलनियल रूल से आजादी मिली तो उसका जश्न मनाने के लिए लाल किले से बेहतर विकल्प दूसरा नहीं था।
-लाल किला है यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज: यूनेस्को ने इसके महत्व को रेखांकित करते हुए लाल किले को वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया है।