पाओना ब्रजबासी एक ऐसा मणिपुरी मेजर, जिसने ब्रिटिश की गुलामी नहीं मौत को चुना

By पल्लवी कुमारी | Published: August 15, 2018 07:49 AM2018-08-15T07:49:11+5:302018-08-15T07:49:11+5:30

400 सेनाओं का नेतृत्व कर रही पाओना ब्रजबासी ने बड़ी बहादुरी के साथ ब्रिटिश के खिलाफ जंग के मैदान में टिके रहे। यह जानते हुए कि उनकी सेना अंग्रेजों की विशालकाय सैनिक के सामने ज्यादा देर तक नहीं टिक पाएंगे।

Independence day: Freedom fighter Paona Brajabashi, history of Manipur Emperor | पाओना ब्रजबासी एक ऐसा मणिपुरी मेजर, जिसने ब्रिटिश की गुलामी नहीं मौत को चुना

पाओना ब्रजबासी एक ऐसा मणिपुरी मेजर, जिसने ब्रिटिश की गुलामी नहीं मौत को चुना

नई दिल्ली, 15 अगस्त: दमघोंटू, गुलाम व्यवस्था और ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ जंग व आजादी का ख्याल आते ही कई वीर सपूतों के नाम नाम-चेहरे यकायक याद आ जाते हैं। आज़ादी की लड़ाई एक ऐसी लड़ाई थी जो दशकों तक लड़ी गई,  हजारों वीर वतन पर कुर्बान हुए। ऐसे तमाम जुल्म और सितम के बाद भारत 15 अगस्त सन 1947 की आधी रात अंग्रेजों से आजाद हो गया था। 

एक अरसे बाद अब गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ भारतीय समाज को खुली हवा में सांस लेने को तैयार था। हर ओर बस जश्न का ही माहौल था। लेकिन एक कसक भी थी कि इस आजादी के लिए हजारों भारतीय नौजवान व वीर सपूत शहीद हो चुके थे। आज भी हर कोई आजादी के इन मतवालों को याद कर रहा था, जिनके बलिदान से भारतीयों को मुक्ति मिली थी। ऐसे ही देश के वीर सपूत थे मणिपुरी का मेजर पाओन ब्रजबासी। जिसने अंग्रेजों के सामने घुटने टेकने के बजाए मौत को गले लगाना जरूरी समझा। 

ये आठरहवीं सदी की बात है। जब 1819 में मणिपुर साम्राज्य के पतन की शुरुआत हुई। 1819 में बर्मा साम्राज्य ने मणिपुर पर हमला किया और कब्जा कर लिया। मणिपुर पर बर्मा शासनकाल ने मीतेई के खिलाफ नरसंहार का अभियान देखा। जिसके बाद इस क्षेत्र की आबादी सिर्फ 2500 हो गई। मणिपुर के पतन के बाद, बर्मी साम्राज्य असम और ब्रह्मपुत्र घाटी में फैल गया। लेकिन यहां उन्हें एक अंग्रेजों का सामना करना पड़ा।

1824 में अंग्रेजों ने बर्मा साम्राज्य के खिलाफ जंग का ऐलान किया था। इस बात का फायदा उठाते हुए, मणिपुरी शरणार्थी ने ब्रिटिश के साथ मिलकर बर्मा के खिलाफ जंग लड़ने के लिए तैयार हो गए। शर्त यह थी कि ब्रिटिश मणिपुर के राजकुमार की बर्मा साम्राज्य रक्षा करेंगे। अंग्रेजों ने सहमति जताई और युद्ध जीता। 1826 तक बर्मा सैनिकों को क्षेत्र से खदेड़ दिया गया था। 
1890 में महाराजा चंद्रकीरी की मृत्यु तक सब कुछ शांतिपूर्ण था। इसके बाद सिंहासन के लिए सत्ता संघर्ष ने गृहयुद्ध को उजागर किया।

इसके बाद 1891 में ब्रिटिशों ने मणिपुर के खिलाफ युद्ध का ऐलान किया। 24 अप्रैल, 1891 के खोंगजोम युद्ध (अंग्रेज-मणिपुरी युद्ध ) की शुरुआत हुई। ब्रिटिश अधिकारियों और 400 गुरखाओं की एक टुकड़ी राजकुमार को गिरफ्तार करने के लिए इम्फाल पहुंची। उस वक्त राज्य के महाराजा ने राजकुमार को खत्म करने या सौंपने से इंकार कर दिया, तो अंग्रेजों ने अचानक आधी रात को हमला बोल दिया। जंग के मैदान में मणिपुरी सेना का मेजर था- पाओना ब्रजबासी, जिसको भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नायक के तौर पर देखा गया। 

400 सेनाओं का नेतृत्व कर रही पाओना ब्रजबासी ने बड़ी बहादुरी के साथ ब्रिटिश के खिलाफ जंग के मैदान में टिके रहे। यह जानते हुए कि उनकी सेना अंग्रेजों की विशालकाय सैनिक के सामने ज्यादा देर तक नहीं टिक पाएंगे। जिसमें मणिपुर के वीर सेनानी पाओना ब्रजवासी ने अंग्रेजों के हाथों से अपने मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति प्राप्त हुआ। वह किसी भी कीमत पर अंग्रेजों की गुलामी में जीना नहीं चाहता था। कई इतिहासकारों ने उनकी बाहुदरी के बारे में लिखा हुआ है। इस प्रकार 1891 में मणिपुर ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया। 

गौरतलब है कि मणिपुर राजवंशों का लिखित इतिहास रहा है। इनका शासनकाल सन 33 ई. में पाखंगबा के राज्याभिषेक के साथ शुरू होता है। उसने इस भूमि पर प्रथम शासक के रूप में 120 वर्षों (33-154 ई ) तक शासन किया। उसके बाद मणिपुर के महाराज कियाम्बा ने 1467, खागेम्बा ने 1597, चराइरोंबा ने 1698, गरीबनिवाज ने 1714, भाग्यचन्द्र (जयसिंह) ने 1763, गम्भीर सिंह ने 1825 को शासन किया। मणिपुर भी 1947 में शेष देश के साथ आजाद हुआ था। 

Web Title: Independence day: Freedom fighter Paona Brajabashi, history of Manipur Emperor

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