Independence Day 2021 : ऐसी महिलाएं जिन्होंने भारत की आजादी में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका, जानिए उनके बारे में
By दीप्ती कुमारी | Updated: August 15, 2021 08:42 IST2021-08-15T08:36:55+5:302021-08-15T08:42:39+5:30
भारत आज आजादी की अपनी 75 वीं वर्षगांठ मना रहा है । ये सोचना ही हमें व्यथित कर देता है कि किन कठिनाईयों को पार कर हमें ये आजादी मिली है । इसमें हमें उन महिला स्वतंत्रता सेनानियों को भी याद करना चाहिए , जिन्होंने समाज की बातों से ऊपर उठकर देश के लिए जान दी ।

फोटो सोर्स - सोशल मीडिया
मुंबई : भारत आज अपना 75वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है । देशभक्ति गीत, भारतीय तिरंगा, ब्रिटिश शासन के दौरान देश के संघर्ष की कहानियां और भी बहुत कुछ हर साल 15 अगस्त को याद किया जाता है। इस दिन हम देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले महात्मा गांधी, भगत सिंह, जवाहरलाल नेहरू सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई पटेल के योगदान और बलिदान को याद करता है। इन्होंने देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया था ।
औपनिवेशिक शासन के अंत के लिए हमारे हर एक स्वतंत्रता सेनानी का बलिदान अतुल्नीय है । फिर भी ऐसी कुछ वीरंगनाएं हैं , जिन्हें इस दिन याद करना बेहद जरूरी है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी को पता चल सके कि किस तरह महिलाओं ने सामाजिक मानदंडों को पीछे छोड़ते हुए देश की स्वतंत्रता के लिए जेल जाने से लेकर आंदोलन तक में भाग लिया ।
उन महिलाओं के बारे में बहुत कम जानकारी है जिन्होंने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी और उनके सामने झुकने से इनकार कर दिया । ऐसी ही तीन महिला स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में बात करना बेहद जरूरी है -
कमलादेवी चट्टोपाध्याय
एक प्रसिद्ध थिएटर अभिनेता, चट्टोपाध्याय भारत की पहली महिला थीं जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने सक्रिय रूप से विरोध करने के लिए गिरफ्तार किया था। अपने पूरे जीवनकाल में, चट्टोपाध्याय ने देश में महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने की दिशा में काम किया और यहां तक कि 1930 के सत्याग्रह में भी भाग लिया। वह विधान सभा की उम्मीदवार बनने वाली भारत की पहली महिला भी थीं।
अरुणा आसफ अली
अरुणा आसफ अली को स्वतंत्रता आंदोलन की 'द ग्रैंड ओल्ड लेडी' के रूप में भी जाना जाता है । अली ने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बॉम्बे (वर्तमान मुंबई) में गोवालिया टैंक मैदान में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का झंडा फहराया । अंग्रेजों से लड़ाई में अली ने नमक सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया और यहां तक कि शासन के खिलाफ विद्रोह के लिए उन्हें जेल भी भेज दिया गया।
कनकलता बरुआ
बरुआ ने 1942 में बरंगाबाड़ी में भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और अपने हाथों में राष्ट्रीय ध्वज के साथ महिला स्वयंसेवकों के दल का नेतृत्व किया । बरुआ, जिन्हें 'बीरबाला' के नाम से भी जाना जाता था, 'ब्रिटिश साम्राज्यवादियों को वापस जाना चाहिए' के नारे लगाते हुए ब्रिटिश-प्रभुत्व वाले गोहपुर पुलिस स्टेशन में झंडा फहराना चाहते थी लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें रोक दिया । विरोध करने के फलस्वरूप बरुआ की अंग्रेजों ने गोली मारकर हत्या कर दी ।
सरोजनी नायडू
नायडू ने अन्य समाज सुधारकों के साथ महिला भारतीय संघ की स्थापना में मदद की और महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए देश की यात्रा की । उनका पहला काम 12 साल की उम्र में 'माहेर मुनीर' के नाम से था। वह 1925 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं । उन्होंने 1947-1949 तक आगरा और अवध की राज्यपाल के रूप में भी कार्य किया ।
भीकाजी कामा
भीकाजी कामा ने जर्मनी में विदेशी भूमि पर भारतीय ध्वज फहराने वाली पहली व्यक्ति थीं । वह लंदन में रहते हुए दादाभाई नौरोजी से मिलीं और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गईं । वह पेरिस चली गईं और वहां से क्रांतिकारी गतिविधियों में मदद की । उन्होंने भारत में बंदे मातरम अखबार को प्रकाशित करने और उसकी तस्करी करने में मदद की। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उन्हें तीन साल के लिए जेल भेज दिया गया था । 1935 में, उन्हें अंततः भारत वापस आने की अनुमति दी गई । उनकी वापसी के एक वर्ष के भीतर ही उनकी मृत्यु हो गई ।
इन वीरंगनाओं ने देश की आजादी के लिए साहस, बुद्धि और अपने संघर्ष से न केवल देश को आजादी दिलाई बल्कि हमारे मन में भी देश की गरिमा और स्वशासन की अलख जगाई । देश आजादी की अपनी 75 वीं वर्षगांठ पर इन सभी को नमन करता है, जिनकी वजह से संपूर्ण भारत आजादी मना रहा है ।