Bihar SIR Row: हर विधानसभा क्षेत्र में कट जा सकता है करीब 25 हजार मतदाताओं का नाम, चुनाव परिणामों पर पड़ सकता है बड़ा प्रभाव

By एस पी सिन्हा | Updated: July 26, 2025 15:02 IST2025-07-26T15:02:47+5:302025-07-26T15:02:47+5:30

सर्वेक्षणों में यह भी पता चला है कि बिहार के सीमांचल जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में जिन लोगों के नाम सूची से हटाए जा रहे हैं, उनमें करीब 32 लाख बांग्लादेशी, नेपाली और म्यांमार के नागरिकों के नाम मतदाता सूची में पाए गए हैं, जिन्हें जांच के बाद हटाए जाने की संभावना है।

In Bihar, the names of about 25 thousand voters can be deleted from every assembly constituency due to SIR, which can have a big impact on the election results | Bihar SIR Row: हर विधानसभा क्षेत्र में कट जा सकता है करीब 25 हजार मतदाताओं का नाम, चुनाव परिणामों पर पड़ सकता है बड़ा प्रभाव

Bihar SIR Row: हर विधानसभा क्षेत्र में कट जा सकता है करीब 25 हजार मतदाताओं का नाम, चुनाव परिणामों पर पड़ सकता है बड़ा प्रभाव

पटना:बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग के द्वारा कराए जा रहे मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण(एसआईआर) के दौरान यह बात सामने आ रही है कि हर विधानसभा क्षेत्र में करीब 25 हजार मतदाताओं का नाम कट सकता है। इस कवायद से विधानसभा चुनाव की घोषणा के पहले ही राज्य के कई विधायकों की चिंता बढ़ गई है। एसआईआर के तहत गणना प्रपत्र जमा करने की अंतिम तिथि के बाद चुनाव आयोग ने कहा है कि बिहार की मतदाता सूची से 61.1 लाख मतदाताओं के नाम हटाए जाएंगे। सर्वेक्षणों में यह भी पता चला है कि बिहार के सीमांचल जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में जिन लोगों के नाम सूची से हटाए जा रहे हैं, उनमें करीब 32 लाख बांग्लादेशी, नेपाली और म्यांमार के नागरिकों के नाम मतदाता सूची में पाए गए हैं, जिन्हें जांच के बाद हटाए जाने की संभावना है।

बताया जाता है कि एक लाख लोग तो ऐसे मिले हैं जिनके नाम पूरी तरह से अनुपस्थित हैं, जबकि 1.2 लाख फॉर्म जमा ही नहीं किए गए। इसके अलावा, 22 लाख मतदाता मृत हो चुके हैं और 35 लाख लोग स्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं। सर्वेक्षणों में बांग्लादेश, रोहिंग्या और नेपाल से जुडे लोगों के नाम कटने की संभावना से राजनीतिक और सामाजिक ताने-बाने में उथल-पुथल मचने का डर है। बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से औसतन 25,144 नाम हटाए जाने के परिणामों पर बड़ा प्रभाव पड़ने की उम्मीद है, जो संभवतः कुछ महीनों में होने वाले हैं, क्योंकि पिछले चुनावों में कई सीटों पर जीत का अंतर बहुत कम था। 2020 के चुनावों में, 11 सीटों पर 1,000 से कम मतों के अंतर से, 35 सीटों पर 3,000 से कम मतों के अंतर से और 52 सीटों पर 5,000 से कम मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा।

विपक्षी महागठबंधन - जिसमें राजद और कांग्रेस सहित अन्य दल शामिल हैं और जो इस प्रक्रिया का विरोध कर रहा है और इसे जल्दबाजी में किया गया चुनाव बता रहा है कि 27 निर्वाचन क्षेत्रों में 5,000 से कम मतों से, 18 सीटों पर 3,000 से कम मतों से और छह सीटों पर 1,000 से कम मतों के अंतर से हार गया। बिहार के मुख्य चुनाव पदाधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल ने बताया कि अब तक 99.5 फीसदी मतदाताओं तक पहुंच चुके हैं। 7.9 करोड़ मतदाताओं में से 7.21 करोड़ गणना प्रपत्र जमा और डिजिटल किए जा चुके हैं, और केवल 7 लाख ने ही अपने प्रपत्र वापस नहीं किए हैं। उन्होंने कहा कि जिन 61.1 लाख मतदाताओं के नाम सूची से हटाए जा सकते हैं, उनमें से 21.6 लाख की मृत्यु हो चुकी है, 31.5 लाख स्थायी रूप से बिहार से बाहर चले गए हैं, 7 लाख मतदाता कई स्थानों पर मतदाता के रूप में पंजीकृत हैं, और 1 लाख का पता नहीं चल पा रहा है।

चुनाव आयोग का यदि यह आंकड़ा सही है, तो बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से औसतन 25,144 नाम हटाए जा सकते हैं। इसका विधानसभा चुनावों के परिणामों पर बड़ा प्रभाव पड़ने की उम्मीद है, जो संभवतः कुछ महीनों में होने वाले हैं, क्योंकि पिछले चुनावों में कई सीटों पर जीत का अंतर बहुत कम था। बिहार की राजनीति को करीब से जानने वालों के अनुसार, चुनाव आयोग देश में अवैध रूप से बांग्लादेश, नेपाल और म्यांमार से आकर जो लोग रह रहे हैं और उन्होंने मतदाता सूची में नाम दर्ज करवा लिया है। वैसे लोगों को मतदाता सूची से हटाने की प्रक्रिया शुरू की है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि जो भी अवैध रूप से बिहार आकर बस गए हैं, उनका वोट विपक्ष को जाता है।

यही कारण है कि इंडिया गठबंधन के घटक दल हो या ओवैसी, इनको इस बात का डर सता रहा है कि मतदाता सूची से यदि इनका नाम कट गया तो उनका राजनीतिक रूप से नुकसान होगा। राज्य के सीमांचल के इलाके में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मामला वर्षों से सामने आ रहा है। पिछले 30 वर्षों में पूरे सीमांचल का समीकरण बदल गया है। किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया में अल्पसंख्यकों की आबादी 40 फीसदी से 70 फीसदी तक हो चुकी है। यही कारण है कि वर्षों से इस इलाके में बांग्लादेशी घुसपैठियों की रोक की मांग उठती रही है। कई इलाकों से हिंदुओं के पलायन की भी खबर उठी थी।

केंद्र सरकार ने जब पूरे देश में एनआरसी लागू करने की बात कही थी तो बिहार में इस इलाके से भी विरोध के सुर उठे थे। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में राजद का वोट शेयर बढ़ा था। राजद को 23.11 फीसदी वोट मिले थे। जबकि भाजपा को 19.46 प्रतिशत ही वोट मिले, जदयू के खाते में 15.42 प्रतिशत वोट आया था। 2024 लोकसभा चुनाव में बिहार में भाजपा और जदयू ने 12-12 सीटें जीती थी। राजद ने 4 सीटें, कांग्रेस ने 3 सीटें और लोजपा(रा) ने 5 सीटें जीती हैं। भाकपा (माले) ने 2 सीटें जीती हैं, जबकि हम और एक स्वतंत्र उम्मीदवार ने 1-1 सीट जीती है। जाति आधारित सर्वेक्षण आंकड़ों के अनुसार बिहार में करीब 17.70 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं।

वहीं, बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम मतदाता अहम भूमिका अदा करते हैं। इन इलाकों में मुस्लिम आबादी 20 से 40 प्रतिशत या इससे भी अधिक है। बिहार की 11 सीटें हैं, 10 से 30 फीसदी के बीच मुस्लिम मतदाता हैं। जानकारों का मानना है कि चुनिंदा क्षेत्रों में अगर एक निश्चित मात्रा में नाम कट जाएं तो मुकाबला कमजोर हो जाएगा।

Web Title: In Bihar, the names of about 25 thousand voters can be deleted from every assembly constituency due to SIR, which can have a big impact on the election results

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