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मुंबई महानगर क्षेत्र में अवैध निर्माण से स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई है: उच्च न्यायालय

By भाषा | Updated: July 5, 2021 20:08 IST

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मुंबई, पांच जुलाई मुंबई महानगर क्षेत्र (एमएमआर) में बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण का हवाला देते हुए, बंबई उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि स्थिति "नियंत्रण से बाहर" हो गई है। अदालत ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार की नीतियां ऐसी नहीं होनी चाहिए जो "लोगों को मरने दें।"

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की पीठ महाराष्ट्र सरकार की झुग्गी पुनर्वास नीतियों का जिक्र कर रही थी, जो उन झुग्गी बस्तियों को गिराने और खाली कराने के खिलाफ वैधानिक सुरक्षा प्रदान करती हैं और जो एक जनवरी 2000 से पहले बनाई गई थी और जिनकी ऊंचाई 14 फुट से अधिक नहीं है।

पीठ ने कहा कि नौ जून को उपनगरीय मालवनी में एक आवासीय इमारत का गिरना "शुद्ध लालच" का परिणाम था और सुझाव दिया कि राज्य के अधिकारियों को गरीबों के लिए आवास के "सिंगापुर मॉडल" से प्रेरणा लेनी चाहिए।

न्यायमूर्ति कुलकर्णी ने कहा, “यह सिर्फ मुंबई में है कि कोई सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करता है और बदले में उसे मुफ्त आवास दिया जाता है।” पीठ कई जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिनका उसने पिछले साल ठाणे जिले के भिवंडी में इमारत गिरने की घटनाओं के बाद स्वत: संज्ञान लिया था।

अदालत ने पिछले महीने मुंबई के उपनगर मालवनी में एक इमारत गिरने के बाद याचिकाओं पर फिर से सुनवाई शुरू की थी। इस घटना में आठ बच्चों सहित 12 लोगों की मौत हो गई थी।

अदालत ने मालवनी घटना की न्यायिक जांच का आदेश दिया था और प्रारंभिक रिपोर्ट में कहा गया था कि आवासीय इमारत में शुरू में सिर्फ भूतल और पहली मंजिल थी। रिपोर्ट के मुताबिक, इसमें अवैध रूप से अतिरिक्त मंजिलें बनाई गई थी और ढांचे के मूल आवंटी का पता नहीं चल पाया है।

बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) की ओर से सोमवार को पेश हुए वरिष्ठ वकील ए चिनॉय ने उच्च न्यायालय को बताया कि शहर में अधिसूचित झुग्गी बस्तियों के अधिकांश घरों में अवैध रूप से अतिरिक्त मंजिलें बनाई जा चुकी हैं।

चिनॉय ने कहा, “झुग्गी-झोपड़ी एक समस्या है लेकिन शहर के कामकाज के लिए जरूरी भी है। इसलिए भले ही राज्य अधिसूचित झुग्गी बस्तियों में भूतल और पहली मंजिल की अनुमति देता है तो उन्हें गिरने से बचाने के लिए उनमें अतिरिक्त मंजिलें बनाने से रोकना होगा।” हालांकि, पीठ ने कहा कि शहर की कामकाजी आबादी को झुग्गी बस्तियों में रहने की जरूरत नहीं है।

पीठ ने कहा, “स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई है। लेकिन हमारे पास ऐसी नीतियां नहीं हो सकती हैं जो लोगों को मरने दें। हमें मानव जीवन को महत्व देना होगा। सिर्फ इसलिए कि लोग कहते हैं कि उनके पास रहने के लिए और कोई जगह नहीं है, उन्हें अपनी जान जोखिम में डालने और अवैध ढांचों में रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।”

अदालत मंगलवार को मामले पर सुनवाई जारी रखेगी।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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