अगर डॉक्टर ही नहीं हैं तो ज्यादा बिस्तरों का क्या फायदा: अदालत

By भाषा | Updated: May 10, 2021 22:37 IST2021-05-10T22:37:41+5:302021-05-10T22:37:41+5:30

If there is no doctor, then what is the use of more beds: court | अगर डॉक्टर ही नहीं हैं तो ज्यादा बिस्तरों का क्या फायदा: अदालत

अगर डॉक्टर ही नहीं हैं तो ज्यादा बिस्तरों का क्या फायदा: अदालत

नयी दिल्ली, 10 मई दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार से पूछा कि जब पर्याप्त संख्या में चिकित्सक ही नहीं हैं तब बिस्तरों और वार्ड का क्या फायदा है? अदालत ने उन दावों के संदर्भ में यह बात कही जिनके मुताबिक द्वारका में समर्पित कोविड केंद्र- इंदिरा गांधी अस्पताल - में पर्याप्त चिकित्साकर्मी नहीं हैं।

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की पीठ ने दिल्ली सरकार से कहा, “यह समय है जब आपको और चिकित्सक चाहिए। ज्यादा बिस्तर होने का क्या मायने जब पर्याप्त संख्या में चिकित्सक ही न हों।”

दिल्ली सरकार ने जब कहा कि चिकित्सकों की कमी का मुद्दा कभी अदालत के समक्ष उठाया ही नहीं गया तो पीठ ने कहा कि चिकित्सकों की कमी के संदर्भ में समस्या है और “इससे भागिए मत।”

अदालत ने कहा कि जब चुनाव आते हैं तो हर अखबार में पूरे पन्ने का विज्ञापन दिखाई देता है लेकिन अब चिकित्सकों और नर्सिंग कर्मियों की जरूरत को लेकर प्रमुख अंग्रेजी अखबारों में कोई विज्ञापन नहीं है।

जब दिल्ली सरकार ने कहा कि इस विषय में एक विज्ञापन दैनिक भास्कर अखबार में था तब अदालत ने पूछा, “प्रमुख अंग्रेजी अखबारों में क्यों नहीं?” दिल्ली सरकार ने आश्वस्त किया कि विज्ञापन जारी करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है और जल्द ही सभी प्रमुख अखबारों में दिखाई देगा लेकिन कुछ समय चाहिए।

वहीं एक अन्य मामले में सुनवाई करते हुए पीठ ने केंद्र से कहा कि विदेशों से मिल रही सभी तरह की सहायता चाहे वह छोटी हो या बड़ी उसी कृतज्ञता के साथ स्वीकार की जानी चाहिए जिस भावना से वह दी गई है, भले ही वह सिर्फ एक रुपये की ही क्यों न हो।

पीठ ने केंद्र से कहा, “आपको उस भावना का सम्मान करना होगा जिसके तहत वह (सहायता) दी गई है। इसे (छोटी मात्रा में सहायता को) स्वीकार न करके आप उसे देने वाले व्यक्ति का अपमान कर रहे हैं।”

अदालत ने केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए वकील से कहा कि वह इस बारे में निर्देश लें कि छोटी मात्रा में विदेशी सहायता को भारतीय दूतावासों द्वारा क्यों स्वीकार नहीं किया जा रहा।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) से पूछा कि वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) द्वारा विकसित - एफईएलयूडीए और रे- कोविड जांच क्यों आरटीपीसीआर जांच की तरह लोकप्रिय नहीं हैं।

न्यायमूर्ति सांघी और न्यायमूर्ति पल्ली की पीठ ने आईसीएमआर का प्रतिनिधित्व कर रहे केंद्र सरकार के स्थायी अधिवक्ता अनुराग अहलूवालिया से सवाल करते हुए मामले की सुनवाई की अगली तारीख पर उन्हें जवाब पेश करने को कहा।

अदालत ने आईसीएमआर से दोनों जांचों की क्षमता बताने को भी कहा है।

अदालत ने यह सवाल न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव के यह सूचित करने पर पूछा कि इन दोनों जांच की क्षमता न सिर्फ आरटीपीसीआर के बराबर या बेहतर है बल्कि ये सस्ते भी हैं और एक घंटे से भी कम समय में तेजी से परिणाम देते हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Web Title: If there is no doctor, then what is the use of more beds: court

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे