केवल ‘शिनाख्त परेड’ में आरोपी की पहचान दोषसिद्धि के लिए ठोस आधार नहीं : न्यायालय

By भाषा | Updated: August 12, 2021 19:54 IST2021-08-12T19:54:41+5:302021-08-12T19:54:41+5:30

Identity of accused only in 'identification parade' not a solid ground for conviction: SC | केवल ‘शिनाख्त परेड’ में आरोपी की पहचान दोषसिद्धि के लिए ठोस आधार नहीं : न्यायालय

केवल ‘शिनाख्त परेड’ में आरोपी की पहचान दोषसिद्धि के लिए ठोस आधार नहीं : न्यायालय

नयी दिल्ली, 12 अगस्त उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि शिनाख्त परेड (टीआईपी) में किसी आरोपी की पहचान मात्र दोषसिद्धि का वास्तविक आधार नहीं बन सकती जब तक कि अन्य तथ्य और परिस्थितियां उसकी पहचान की पुष्टि नहीं करती हैं।

शीर्ष अदालत ने यह निष्कर्ष दो आरोपियों को डकैती के आरोप से बरी करते हुए इस आधार पर दिया कि उनकी पहचान करने के लिए बार-बार शिनाख्त परेड करायी गयी थी।

न्यायालय ने कहा कि जब तक अभियोजन पक्ष आरोपी की पहचान हासिल करने में सफल नहीं हो जाता तब तक बार-बार शिनाख्त परेड नहीं हो सकती।

न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने कहा, ‘‘ हमें यह बेहद परेशान करने वाला प्रतीत होता है कि सुनवाई अदालत और उच्च न्यायालय दोनों ने इस पहलू पर गौर नहीं किया...।’’

पीठ ने कहा, “मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में, हम अपीलकर्ताओं की सजा को कायम रखने में असमर्थ हैं। अपील को स्वीकार किया जाता है और अपीलकर्ताओं को तुरंत रिहा करने का निर्देश दिया जाता है, अगर वे किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हों।’’

पीठ ने कहा कि उसे इस बात का अफसोस है कि अभियोजन ने मूल जब्ती ज्ञापन भी नहीं पेश किया गया जो पुलिस द्वारा की गई जांच की प्रकृति के बारे में बताता है। पीठ ने कहा, "हम मदद नहीं कर सकते हैं, लेकिन दो घटनाओं को जोड़ने के लिए... पुलिस ने शिनाख्त परेड द्वारा जांच की, लेकिन दोनों में से किसी को भी स्थापित करने में विफल रहे।"

पीठ ने कहा कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 9 के तहत शिनाख्त परेड किसी आपराधिक अभियोजन में ठोस सबूत नहीं है, बल्कि आरोपी की पहचान के लिए केवल सहायक साक्ष्य है। शीर्ष अदालत ने बुधवार को पारित अपने आदेश में कहा, "जांच के चरण में शिनाख्त परेड कराने का मकसद केवल यह सुनिश्चित करना है कि जांच एजेंसी प्रथम दृष्टया सही दिशा में आगे बढ़ रही है, जहां आरोपी अज्ञात हो सकता है।’’

पीठ ने कहा कि अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी और अभियोजन का मामला पूरी तरह से शिनाख्त परेड में पहचान पर निर्भर रहा है।

पीठ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि शिनाख्त परेड उत्तराखंड के हुकुमचंद के घर 28 अगस्त, 1992 को हुई डकैती की वारदात होने के एक महीने के भीतर ही कराई गयी थी और बताया जाता है कि आरापी की पहचान करने वाला अभियोजन का गवाह कथित वारदात के समय करीब 13 साल का नाबालिग था।

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