क्या है एनआरसी और नागरिकता संशोधन बिल में सबसे बड़ा अंतर, जानिए
By अभिषेक पाण्डेय | Published: December 5, 2019 01:29 PM2019-12-05T13:29:46+5:302019-12-05T13:29:46+5:30
CAB and NRC: असम में लागू हुई एनआरसी और संसद में पेश होने जा रहे नागरिकता संशोधन बिल में क्या अंतर है, जानिए
राष्ट्रीय नागरिक पंजी या रजिस्टर (एनआरसी) एक रजिस्टर है जिसमें सभी वास्तविक भारतीय नागरिकों के नाम हैं। वर्तमान में केवल असम के पास ऐसा रजिस्ट है, यानी वर्तमान में एनआरसी केवल असम में लागू है। हाल ही में सरकार ने घोषणा की है कि वह पूरे देश में एनआरसी लागू करेगी।
असम में NRC मूल रूप से राज्य में रहने वाले भारतीय नागरिकों की एक सूची है। नागरिकों का रजिस्टर बांग्लादेश के सीमावर्ती राज्यों में विदेशी नागरिकों की पहचान सुनिश्चित करता है।
क्या है नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप (एनआरसी)?
नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप (एनआरसी) या राष्ट्रीय नागरिक पंजी को असम में लागू किया गया है। एनआरसी को पहली बार 1951 में तैयार किया गया था, जिसका उद्देश्य असम में घुसे आए बांग्लादेशियों की संख्या पता करना था।
एनआरसी अपडेट की प्रक्रिया 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शुरू की गई और इसका उद्देश्य 1971 के बाद बड़ी संख्या में बांग्लादेश से असम में आए अवैध प्रवासियों की पहचान करना है। 1971 में बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई के दौरान लाखों की संख्या में बांग्लादेशी नागरिक सीमा पार कर असम पहुंचे थे।
कौन हैं असम के एनआरसी में शामिल?
एनआरसी में केवल उन्हीं लोगों को शामिल किया गया है जो 24 मार्च मध्य रात्रि 1971 या उससे पहले असम के नागरिक थे या इस अवधि के दौरान उनके पूर्वज असम में रहते थे।
ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने एनआरसी को अपडेट करने की मांग के लिए 1975 से 6 साल लंबा आंदोलन चलाया। आखिरकार 1985 में असम प्रावधान में 24/25 मार्च 1971 के बाद भारत में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी नागरिकों की पहचान करने और उन्हें वापस भेजने का वादा किया गया।
कौन हुए असम के एनआरसी से बाहर?
असम में एनआरसी की प्रक्रिया 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से शुरू हुई थी। जब ये प्रक्रिया शुरू हुई तो असम की जनसंख्या 3.3 करोड़ थी।
अंतिम एनआरसी लिस्ट 31 अगस्त 2019 को जारी की गई, जिसमें 19 लाख लोगों को जगह नहीं मिली, जबकि 3.11 करोड़ लोगों को भारतीय नागरिक माना गया।
क्या है नागरिकता संशोधन बिल (सीएबी)?
-यह बिल नागरिकता बिल 1955 में संशोधन करता है, जिससे चुनिंदा श्रेणियों में अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का पात्र बनाया जा सके
-नागरिकता संशोधन बिल का उद्देश्य बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होकर भारत आने वाले छह समुदायों-हिंदू, सिख, जैन बौद्ध, ईसाई और पारसी धर्म के लोगों को भारतीय नागरिकता देना है।
-इस बिल में इन छह समुदायों को ऐसे लोगों को भी नागरिकता देने का प्रस्ताव है, जो वैध यात्रा दस्तावेजों के बिना ही भारत आए गए थे या जिनके दस्तावेजों की समय सीमा समाप्त हो गई है।
-अगर कोई व्यक्ति, इन तीन देशों से के उपरोक्त धर्मों से संबंधित है, और उसके पास अपने माता-पिता के जन्म का प्रमाण नहीं है, तो वे भारत में छह साल निवास के बाद भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं।
क्या है एनआरसी और नागरिकता संशोधन बिल में अंतर?
-हाल ही में असम में हुई एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक पंजी या रजिस्टर) की प्रक्रिया उद्देश्य अवैध प्रवासियों की पहचान करके उन्हें नागरिकता के अधिकार से वंचित करना था। इसके मुताबिक, किसी व्यक्ति को भारत का नागरिक होने के लिए ये साबित करना होगा कि या तो वह या उसके माता-पिता 24 मार्च मध्य रात्रि 1971 या उससे पहले असम में मौजूद थे।
उक्त तारीख के अगले दिन ही बांग्लादेश में मुक्ति का संघर्ष शुरू हुआ था, जिससे हजारों की संख्या में शरणार्थी भारत आ गए थे। सरकार ने कहा है कि वह एनआरसी प्रक्रिया का विस्तार पूरे देश में करेगी।
-असम में हुई एनआरसी प्रक्रिया और नागरिकता संशोधिन बिल में सबसे प्रमुख अंतर ये है कि एनआरसी धर्म के आधार पर नहीं हुई थी। वहीं नागरिकता संशोधन बिल में गैर-मुस्लिम (छह प्रमुख धर्म) के लोगों को जगह दी गई है।