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मॉरीशस के रास्ते विदेशी निवेश के बहाने 'टैक्स चोरी' का गोरखधंधा, कई बड़ी कंपनियों के नाम आये सामने

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: July 24, 2019 09:54 IST

मॉरीशस के रास्ते पिछले कुछ वर्षों में सबसे ज्यादा विदेश निवेश आता रहा है लेकिन दिलचस्प बात ये है कि नियमों में बदलाव के बाद इसमें बड़ी गिरावट आई है। एक आंकड़े के अनुसार 2018-19 में ही मॉरीशस के रास्ते भारत में एफडीआई में 44 प्रतिशत की गिरावट आई।

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ठळक मुद्दे2018-19 में ही मॉरीशस के रास्ते भारत में एफडीआई में पिछले साल के मुकाबले 44 प्रतिशत की गिरावट आई। जिंदल स्टील ऐंड पावर जैसी कंपनियों ने कैपिटेल गेन सहित अन्य टैक्स से बचने के लिए मॉरीशस के रास्ते विदेशी कंपनियों से डील की।

खूबसूरत समुद्री तटों और पर्यटन स्थल के लिए दुनिया भर में अपनी पहचान बनाने वाला मॉरीशस पिछले कुछ वर्षों में कॉरपोरेट्स और भारतीय कंपनियों के लिए टैक्स चोरी के नये अड्डे के रूप में उभरा।

इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इनवेस्टीगेटिव जर्नलिस्ट्स (ICIJ) और द इंडियन एक्सप्रेस अखबार की एक संयुक्त रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह भारत में लिस्टेड रेलीगेयर एंटरप्राइजेज लिमिटेड (REL), पुणे की रियल इस्टेट कंपनी कोटले पाटील डेवलपर्स लिमिटेड (KPDL), जिंदल स्टील ऐंड पावर जैसी कंपनियों ने कैपिटेल गेन सहित अन्य टैक्स से बचने के लिए मॉरीशस के रास्ते विदेशी कंपनियों से डील की। ICIJ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खोजी पत्रकारों की एक संस्था है। इसी ने पिछले कुछ वर्षों में स्विस लीक, पनामा पेपर्स और पैराडाइज पेपर्स जैसे अहम खुलासे किये हैं।

क्यों आया जिंदल स्टील का नाम

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार हांगकांग की एख कंपनी नोबल ग्रुप ने साल 2018 में 3.5 बिलियन डॉलर के अपने ऋण के रिस्ट्रक्चरिंग की कोशिश के तहत अपनी जो पूंजी इस्तेमाल की उसमें चार माल ढोने वाले बड़े पानी के जहाज भी शामिल थे। एक लॉ फर्म 'कोनयर्स डिल पर्मेन' के दस्तावेजों के मुताबिक हांगकांग की कंपनी का इस पर स्वामित्व मॉरीशस की एक कंपनी 'पैनकोर' के जरिये थे जिसे संयुक्त रूप से जिंदल स्टील और पावर लिमिटेड भी नियंत्रित कर रही थी। 

अखबार के अनुसार पैसे के लेनदेन की शुरुआत 2011 में होती है जब मुदित पालिवाल नोबल ग्रुप के ग्लोबल फ्राइट (मालढुलाई) बिजनेस के उप-प्रमुख पद से इस्तीफा दे देते हैं और पैनकोर इंवेस्टमेंट लिमिटेड (पीआईएल) नाम के फर्म की स्थापना करते हैं। इसमें उन्हें नई दिल्ली के उद्यमी सुनील निहाल दुग्गल का साथ मिलता है। रिकॉर्ड्स के अनुसार पीआईएल का स्वामित्व प्रोसपेरिटी इंवेस्टमेंट वर्ल्डवाइड लिमिटेड (BVI) के पास था जिसमें अगस्त-2011 में स्थापित सिंगापुर की कंपनी विजन शिपिंग प्राइवेट लिमिटेड का 90 फीसदी शेयर था। जबकि पालिवाल और उसकी पत्नी एश्वर्या के पास बचे हुए 10 प्रतिशत शेयर थे।

मई-2012 में पीआईएल फर्म चार 'कमसारमैक्सेस- 82,000 टन की क्षमता वाले माल ढोने वाले जहाज' का ऑर्डर 108 मिलियन डॉलर में देता है। साथ ही कानूनी और डिलिवरी के खर्चे के रूप में और 5 डॉलर मिलियन देने की बात होती है। अब यहां से जिंदल स्टील एंड पावर (मॉरीशस, JSPML) की एंट्री होती है। कंपनी पीआईएल और उसके मालढुलाई बिजनेस कंपनी पैनकोर शिपिंग पीटीई लिमिटेड (सिंगापुर) में 9 डॉलर निवेश के लिए दुग्गल और पालिवाल के साथ MoU साइन करती है।

बाद में 2013 में सीआईओ पालिवाल पीआईएल से बाहर निकल जाते हैं। रिकॉर्ड्स के अनुसार इस बीच जिंदल स्टील लगातार पैसे इसमें निवेश करती रहती है। पालिवाल के कंपनी से बाहर होने के बाद कंपनी के शेयरधारकों में भी बदलाव आता है। फरवरी, 2014 तक JSPML के पास पीआईए में 16,000 शेयर और विजन शिपिंग में 4,000 शेयर हो जाते हैं। इसके बाद JSPML मार्च, 2014 में 7000 शेयर अपनी सहायक कंपनी ब्लू कैसल वेंचर लिमिटेड (बीसीभीएल, मॉरीशस) को दे देता है।

रिकॉर्ड दिखाते हैं कि 2014 में JSPML अपने पीआईएल में 65 प्रतिशत शेयर नोबल चार्टरिंग लिमिटेड को बेच देता है। यह कंपनी नोबल ग्रुप लिमिटेड की ही सहायक कंपनी है। वहीं, नोबल ग्रुप भी पीआईएल के ऋण हांगकांग की विजन एंड कमुलेटिव इंवेस्टमेंट लिमिटेड को चुका देता है। इस तमाम लेनदेन में JSPML के लोन से जुड़ी बाकी की राशि कंपनी के ही स्वामित्व वाली ब्लू कैसल वेंचर लिमिटेड को ट्रांसफर कर दी जाती है जिसके पास पीआईएल में 35 प्रतिशत शेयर रहता है।

जिंदल ग्रुप 8 अप्रैल, 2014 को पीआईएल और उसकी सहायक कंपनियों से खुद को अलग कर लेती है हालांकि रिकॉर्ड दिखाते हैं कि नोबल और जिंदल संयुक्त रूप से आगे भी इस बिजनेस को जारी रखते हैं। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार JSPML के एक प्रवक्ता ने बताया कि जिंदल कंपनी ने अपने एक्सपोर्ट और इंपोर्ट को और बढ़ाने के लिए शिपिंग बिजनेस में आने की योजना बनाई थी लेकिन चूकी इसमें उनका कोई अनुभव नहीं था इसलिए कंपनी से इससे बाद में दूरी बना ली। साथ ही प्रवक्त ने बताया कि सभी लेनदेन और बातों का जिक्र उसके वित्तीय रिकॉर्ड में दर्ज है। 

DTAA डील का फायदा उठाने की कोशिश

दरअसल, मॉरीशस के जरिये निवेश में टैक्स चोरी में असल मदद कंपनियों को भारत और मॉरीशस के बीच 1982 में हुए डबल टैक्सेसन एवॉयडेंस एग्रीमेंट (डीटीएए) से मिला। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार इस समझौते के तहत कोई भी कंपनी टैक्स में छुटकारे के लिए अप्लाई कर सकती है। यही कारण रहा कि ज्यादातर कंपनियों ने  भारत में निवेश के लिए मॉरीशस का रास्ता अपनाया। हालांकि, एग्रीमेंट के कारण हो रही अनियमितताओं की जानकारी के बाद भारत ने इस डीटीएए की शर्तों में 10 मई, 2016 को अहम बदलाव किये और दो साल में चरणबद्ध तरीके से कुछ टैक्स निर्धारित करने शुरू किये। नई शर्ते पूरी तरह से इस साल अप्रैल से लागू हो गईं।

मॉरीशस के रास्ते पिछले कुछ वर्षों में सबसे ज्यादा विदेश निवेश आता रहा है लेकिन दिलचस्प बात ये है कि नियमों में बदलाव के बाद इसमें बड़ी गिरावट आई है। एक आंकड़े के अनुसार 2018-19 में ही मॉरीशस के रास्ते भारत में एफडीआई में पिछले साल के मुकाबले 44 प्रतिशत की गिरावट आई। 

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