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मोदी सरकार के लिए बोझ कैसे बनी एयर इंडिया?

By आदित्य द्विवेदी | Updated: January 27, 2020 15:59 IST

एयर इंडिया को बेचने की 2 साल में यह दूसरी कोशिश है। 2018 में भी सरकार ने कंपनी के 76% शेयर बेचने के लिए बोलियां मांगी थी, लेकिन कई खरीदार नहीं मिला। इसलिए इस बार शर्तों में ढील दी गई है।

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ठळक मुद्देवित्त वर्ष 2018-19 में एयर इंडिया को 8,556 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा हुआ था।एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस में 100 पर्सेंट शेयर सरकार के पास ही हैं।

मोदी सरकार ने एयर इंडिया की 100 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की घोषणा की है। इसके लिए सोमवार को बाकायदा मेमोरेंडन जारी कर दिया। एयर इंडिया को खरीदने के इच्छुक लोगों से 17 मार्च तक आवेदन मांगे गए हैं। इसी के साथ सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि तमाम विरोध के बावजूद वो एयर इंडिया को बेचने के लिए प्रतिबद्ध है।

एयर इंडिया को बेचने की 2 साल में यह दूसरी कोशिश है। 2018 में भी सरकार ने कंपनी के 76% शेयर बेचने के लिए बोलियां मांगी थी, लेकिन कई खरीदार नहीं मिला। इसलिए इस बार शर्तों में ढील दी गई है। 2018 में सरकार मैनेजमेंट कंट्रोल अपने पास रखना चाहती थी।

नई शर्तों के मुताबिक खरीदार को एयर इंडिया के सिर्फ 23,286.5 करोड़ रुपए के कर्ज की जिम्मेदारी लेनी होगी। एयरलाइन पर कुल 60,074 करोड़ रुपए का कर्ज है। सफल खरीदार को एयर इंडिया का मैनेजमेंट कंट्रोल भी सौंप दिया जाएगा।

भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने एयर इंडिया को बेचने का खुलकर विरोध किया है। उन्होंने इसे राष्ट्र विरोधी बताते हुए कहा कि वे सरकार के फैसले के खिलाफ कोर्ट जाएंगे। ट्विटर पर एक यूजर ने स्वामी से सवाल किया कि एयर इंडिया घाटे में है। सिर्फ नेताओं के आराम के लिए ऐसी कंपनियों में टैक्सपेयर का पैसा क्यों लगना चाहिए? इस पर स्वामी ने जवाब दिया- बजट भी घाटे में है, तो फिर सरकार की नीलामी क्यों नहीं करते?

आपको बता दें कि इस सेवा की शुरुआत साल 1932 में टाटा एयर लाइन ने की थी। 1946 में इसका नाम एयर इंडिया हुआ। आजादी के बाद साल 1953 में एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। इसी की एक सहयोगी कंपनी वायुदूत शुरू हुई थी जो रीजनल फीडर कनेक्टिविटी देती थी। लेकिन यह कंपनी में बहुत घाटे में चली गई। साल 1993 में वायुदूत का इंडियन एयरलाइन्स में मर्जर हो गया। जिससे पूरे समूह का कर्ज बढ़ गया। इसके बाद यह ग्रुप कर्ज के बोझ से नहीं उभर सका। 2007 में एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइन्स के मर्जर से संकट और गहरा गया।

एयर इंडिया पर करीब 80 हजार करोड़ का कर्ज है। वित्त वर्ष 2018-19 में एयर इंडिया को 8,556 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा हुआ था। 7 जनवरी को गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में बने एक मंत्री समूह (ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स) ने निजीकरण से जुड़े प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस में 100 पर्सेंट शेयर सरकार के पास ही हैं।

अंततः सरकार इसे पूरी तरह बेचने की कोशिश कर रही है। अब देखना दिलचस्प होगा कि एयर इंडिया को खरीदने के लिए कौन कॉर्पोरेट घराना सामने आता है।

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