नई दिल्ली, 14 मई: बालकवि बैरागी के निधन के साथ ही साहित्य की दुनिया का एक और चिराग बुझ गया है। 13 मई की शाम को 87 साल की उम्र में बैरागी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। उनकी मौत की खबर आने के बाद साहित्य और राजनीतिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई। उनका निधन मनासा स्थित उनके आवास पर हुआ है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल समेत कई दिग्गज नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजिल दी है।
मुख्यमत्री शिवराज सिंह चौहान ने बैरागी की कविता को लिखते हुए, उनके परिवार वालों के लिए संवेदनाएं जाहिर की है।
जन्म
10 फरवरी साल 1931 में मंदसौर जिले के रामपुर गांव में बालकिव बैरागी का जन्म हुआ था। बहुत ही कम उम्र में ही उन्होंने कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि पहली बार कविता उन्होंने चौथी कक्षा में लिखी थी। उस कविता का शीर्षक 'व्यायाम' था। बाद में राज्य के विक्रम विश्वविद्यालय से उन्होंने हिंदी में पोस्टग्रेजुएशन किया। पढ़ाई के दौरान ही उनकी रुचि राजनीति और साहित्य दोनों में होने लगी। इनदोनों ही क्षेत्रों के कार्यक्रम में वो बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना शुरू कर दिया था।
अपनी कविताओं और राजनीतिक बेबाकी के लिए जाने जाने वाले बैरागी राज्यसभा सांसद भी रह चुके थे। अपनी कविताओं के लिए उन्हें राज्य सरकार की तरफ से कवि प्रदीप सम्मान भी दिया गया था। इसके अलावा बतौर कवि बैरागी को केंद्र सरकार की तरफ से कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से भी नवाजा गया था।
बैरागी की प्रमुख रचनाएं
उनकी प्रमुख कविता में करोड़ों सूर्य, सूर्य उवाच, दीवट (दीप पात्र) पर दीप, गन्ने मेरे भाई!!, जो कुटिलता से जियेंगे, अपनी गंध नहीं बेचूंगा, मेरे देश के लाल, नौजवान आओ रे, सारा देश हमारा शामिल हैं।