कर्नाटक हिजाब विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल सुनवाई के लिए तारीख देने से इनकार किया, कहा- मामले को सनसनीखेज नहीं बनाएं
By विनीत कुमार | Published: March 24, 2022 12:38 PM2022-03-24T12:38:05+5:302022-03-24T12:44:34+5:30
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक में हिजाब विवाद मामले पर फिलहाल तत्काल सुनवाई से इनकार कियया है। कोर्ट ने कोई तय तारीख भी सुनवाई के लिए नहीं दी है। कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के बाद मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा है।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट की ओर से हिजाब विवाद पर आए फैसले के खिलाफ याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार किया है। कोर्ट ने गुरुवार को इस याचिका पर सुनवाई के लिए फिलहाल कोई तारीख देने से भी इनकार किया।
इस याचिका पर मुस्लिम छात्रा एशत शिफिया ने मामले पर तत्काल सुनवाई की मांग की थी। याचिकाकर्ता के वकील सीनियर वकील देवदत्त कामत ने कहा परीक्षा 28 मार्च से शुरू होने वाली है और अगर हिजाब के साथ एंट्री नहीं दी गई थी उसका एक साल बर्बाद हो सकता है। इस पर चीफ जस्टिस एनवी रमण ने कहा कि 'परीक्षाओं का हिजाब से कोई लेना-देना नहीं है...चीजों को और समसनीखेज मत बनाइए।'
गौरतलब है कि कर्नाटक हाई कोर्ट ने अपने हालिया फैसले में शैक्षणिक संस्थानों के अंदर हिजाब सहित धार्मिक कपड़ों पर प्रतिबंध को बरकरार रखने का फैसला दिया। उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि हिजाब इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं है। इस फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट कक्षाओं में हिजाब पहनने की अनुमति देने से इनकार करने के कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर होली की छुट्टी के बाद सुनवाई करने के लिए 16 मार्च को सहमत हो गया था। कोर्ट ने कुछ छात्राओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े की उन दलीलों पर गौर किया था कि आगामी परीक्षाओं को देखते हुए तत्काल सुनवाई की आवश्यकता है।
मामले में हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ के आदेश के खिलाफ कुछ याचिकाएं दायर की गयी हैं। हाई कोर्ट ने कहा था है कि संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत हिजाब पहनना इस्लाम धर्म में आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है। हाई कोर्ट ने कक्षाओं में हिजाब पहनने की अनुमति मांगने वाली उडुपी स्थित ‘गवर्नमेंट प्री-यूनिवर्सिटी गर्ल्स कॉलेज’ की मुस्लिम छात्राओं के एक वर्ग की याचिकाएं खारिज कर दी थीं। उसने कहा था कि स्कूल की वर्दी का नियम एक उचित पाबंदी है और संवैधानिक रूप से स्वीकृत है, जिस पर छात्राएं आपत्ति नहीं उठा सकतीं।
(भाषा इनपुट)