उच्च न्यायालय ने सचिव पद से निलंबित किए जाने के एससीबीए के आदेश के खिलाफ अरोड़ा का मुकदमा बंद किया

By भाषा | Updated: December 11, 2020 19:15 IST2020-12-11T19:15:04+5:302020-12-11T19:15:04+5:30

High court closes Arora's lawsuit against SCBA order to be suspended from the post of secretary | उच्च न्यायालय ने सचिव पद से निलंबित किए जाने के एससीबीए के आदेश के खिलाफ अरोड़ा का मुकदमा बंद किया

उच्च न्यायालय ने सचिव पद से निलंबित किए जाने के एससीबीए के आदेश के खिलाफ अरोड़ा का मुकदमा बंद किया

नयी दिल्ली, 11 दिसंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन (एससीबीए) के नेताओं के मामले के समाधान के लिए सहमत होने के बाद सचिव पद से निलंबित किए जाने के एससीबीए के आदेश के खिलाफ अधिवक्ता अशोक अरोड़ा का मुकदमा शुक्रवार को बंद कर दिया।

अदालत ने कहा कि जब बार विभाजित हो जाती है तो इससे पीठ भी कमजोर होती है जिसे वकीलों से शक्ति मिलती है।

न्यायमूर्ति राजीव शकधर की पीठ ने दोनों पक्षों-अरोड़ा और एससीबीए अध्यक्ष दुष्यंत दवे के मामले के समाधान के लिए सहमत होने के बाद कार्यवाही बंद करने का आदेश पारित किया।

उन्होंने कहा, ‘‘जब आप इस तरह विभाजित होते हैं तो बार में अच्छा संदेश नहीं जाता।’’

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मैं महसूस करता हूं कि बार और पीठ एक ही समुदाय से हैं। यदि आप कमजोर होते हो तो पीठ कमजोर होती है। हमें आपसे शक्ति मिलती है।’’

दोनों पक्षों को मामले का समाधान करने का सुझाव देनेवाले न्यायमूर्ति शकधर ने यह भी रिकॉर्ड किया कि क्योंकि एससीबीए की मौजूदा कार्यकारी समिति का कार्यकाल 14 दिसंबर को पूरा हो जाएगा और नई समिति का चुनाव जनवरी 2021 के मध्य में होने की उम्मीद है, एससीबीए निलंबन संकल्प को आगे नहीं ले जाएगी।

इसने यह भी उल्लेख किया कि एससीबीए के सचिव के रूप में अरोड़ा का कार्यकाल पूरा हो जाएगा, उन्होंने बयान दिया है कि अब से वह कार्यकारी समिति की कार्यवाहियों में शामिल नहीं होंगे।

अदालत ने यह भी कहा कि अरोड़ा का निलंबन नए चुनाव में उनकी भागीदारी में आड़े नहीं आएगा।

अरोड़ा ने कहा कि वह अपने निलंबन के संबंध में शुरू की गईं सभी कानूनी कार्यवाहियों को वापस ले लेंगे।

इससे पहले अक्टूबर में, उच्च न्यायालय के एक अन्य न्यायाधीश ने अरोड़ा के संबंध में एससीबीए के संकल्प पर रोक लगाने की अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था। एकल न्यायाधीश के फैसले को नवंबर में खंडपीठ ने बरकरार रखा था।

अरोड़ा ने अपने मुकदमे में अपने निलंबन को इस आधार पर चुनौती दी थी कि एससीबीए की कार्यकारी समिति से उनका निलंबन नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है।

एससीबीए ने पूर्व में अदालत से कहा था कि अरोड़ा को निलंबित करने से पहले नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया गया।

इसने दावा किया था कि संगठन के कामकाज को नियंत्रण में लेने की कोशिश की गई जिसके बाद अरोड़ा को निलंबित करने की आवश्यकता उत्पन्न हुई।

एससीबीए की कार्यकारी समिति ने गत आठ मई को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए हुई बैठक में अरोड़ा को सचिव पद से तत्काल प्रभाव से निलंबित करने के संबंध में एक प्रस्ताव पारित किया था। अरोड़ा का निलंबन उस घटनाक्रम के एक दिन बाद हुआ जब उन्होंने वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे को एससीबीए के अध्यक्ष पद से हटाने पर चर्चा करने के लिए वकीलों की इकाई की 11 मई को ईजीएम की आपात बैठक बुलाई।

एससीबीए के एक अधिकारी ने कहा था कि कार्यकारी समिति ने इस प्रस्तावित बैठक को भी रद्द कर दिया था और अरोड़ा के खिलाफ आरोपों को देखने के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की थी। बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने अरोड़ा को निलंबित करने के आठ मई के कार्यकारी समिति के निर्णय पर 10 मई को रोक लगा दी थी और उनके निलंबन को ‘‘अवैध, अलोकतांत्रिक तथा मनमाना’’ निर्णय करार दिया था।

अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन-2020 में न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा (अब सेवानिवृत्त) की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बारे में टिप्पणियों को लेकर वकीलों की इकाई द्वारा अपनाए गए रुख पर एससीबीए के शीर्ष पदाधिकारियों के बीच मतभेद उभरकर सामने आए थे।

न्यायमूर्ति मिश्रा के बयान पर नाराजगी जताते हुए 25 फरवरी को संगठन के कई सदस्यों के कथित हस्ताक्षर वाला ‘‘प्रस्ताव’’ दवे द्वारा जारी किए जाने के तुरंत बाद अरोड़ा ने दावा किया था कि ‘‘कोई प्रस्ताव पारित नहीं हुआ है’’ क्योंकि उन्होंने मीडिया को जारी बयान पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। न्यायमूर्ति मिश्रा ने 22 फरवरी को न्यायिक सम्मेलन में प्रधानमंत्री की तारीफ करते हुए उन्हें बहुमुखी प्रतिभा का ऐसा धनी व्यक्ति बताया था, जो वैश्विक स्तर पर सोचते हुए स्थानीय स्तर पर काम करता है।

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Web Title: High court closes Arora's lawsuit against SCBA order to be suspended from the post of secretary

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