अपरिहार्य मजबूरी के सामने बेबसी को सहमति नहीं माना जा सकता : केरल उच्च न्यायालय

By भाषा | Published: November 20, 2021 05:26 PM2021-11-20T17:26:08+5:302021-11-20T17:26:08+5:30

Helplessness in the face of unavoidable compulsion cannot be construed as consent: Kerala High Court | अपरिहार्य मजबूरी के सामने बेबसी को सहमति नहीं माना जा सकता : केरल उच्च न्यायालय

अपरिहार्य मजबूरी के सामने बेबसी को सहमति नहीं माना जा सकता : केरल उच्च न्यायालय

कोच्चि, 20 नवंबर केरल उच्च न्यायालय ने बलात्कार के मामले में दोषी करार दिए गए एक व्यक्ति द्वारा दायर अपील पर विचार करते हुए कहा कि अपरिहार्य मजबूरी के सामने बेबसी को सहमति नहीं माना जा सकता है।

न्यायमूर्ति आर नारायण पिशारदी ने अपने आदेश में कहा कि केवल इसलिए कि पीड़िता आरोपी से प्यार करती थी, यह नहीं माना जा सकता कि उसने संबंध बनाने के लिए सहमति दी थी। अदालत ने 31 तारीख के अपने आदेश में कहा, ‘‘कानून के परिप्रेक्ष्य में अपरिहार्य मजबूरी के सामने बेबसी को सहमति नहीं माना जा सकता। सहमति के लिए किसी कृत्य के बारे में और इसके नैतिक प्रभाव का बोध होना आवश्यक है। केवल इस वजह से कि पीड़िता आरोपी से प्यार करती थी, यह नहीं कहा जा सकता कि उसने शारीरिक संबंध के लिए सहमति दी थी।’’

अदालत 26 वर्षीय श्याम सिवन की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने अपनी दोषसिद्धि और निचली अदालत द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 376 समेत विभिन्न धाराओं के तहत सुनाई गई सजा को चुनौती दी।

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि आरोपी 2013 में एक लड़की को मैसूर ले गया था, जिसके साथ उसके संबंध थे और लड़की की सहमति के बिना उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी ने उसके सोने के सभी गहने बेच दिए और फिर उसे गोवा ले गया, जहां उसने लड़की से फिर से बलात्कार किया।

अदालत ने कहा, ‘‘लड़की द्वारा प्रस्तुत किए सबूत बताते हैं कि उसने धमकी दी थी कि अगर वह उसके साथ नहीं गई तो वह (आरोपी) उसके घर के सामने आत्महत्या कर लेगा।’’ अदालत ने कहा कि अगर यह मान लिया जाए कि बाद के मौकों पर लड़की ने आरोपी के कृत्य का विरोध नहीं किया तो भी यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपी को उसने शारीरिक संबंध बनाने की सहमति दी थी। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यह माना जा सकता है कि पीड़ित लड़की ने किसी अपरिहार्य परिस्थितियों में ऐसा नहीं किया होगा, क्योंकि उसके पास कोई अन्य विकल्प नहीं था।

हालाकि, अदालत ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) कानून के तहत दोषसिद्धि को रद्द कर दिया क्योंकि पीड़िता की उम्र साबित नहीं हुई। अदालत ने कहा कि आरोपी का कृत्य स्पष्ट रूप से भारतीय दंड संहिता (अपहरण और बलात्कार) की धारा 366 और 376 के तहत दंडनीय अपराध है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Web Title: Helplessness in the face of unavoidable compulsion cannot be construed as consent: Kerala High Court

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे