रामनाथ कोविंद जन्मदिन विशेषः 16 साल वकालत कर चुके हैं कोविंद, फ्री में लड़ते थे गरीबों का केस
By जनार्दन पाण्डेय | Updated: October 1, 2018 09:35 IST2018-10-01T07:17:51+5:302018-10-01T09:35:36+5:30
Happy Birthday President Ram Nath Kovind(रामनाथ कोविंद जन्मदिन विशेषः):गवर्नर ऑफ बिहार की वेबसाइट के आंकड़ों के अनुसार राष्ट्रपति कोविंद दिल्ली हाईकोर्ट में साल 1977 से 1979 तक केंद्र सरकार के वकील के तौर पर वकालत की।

Happy Birthday President Ram Nath Kovind| रामनाथ कोविंद जन्मदिन विशेष| Ram Nath Kovind 73rd Birthday Celebration
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का सोमवार को 73वां जन्मदिन है। उनका जन्म 1 अक्टूबर 1945 को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात में एक गरीब परिवार में हुआ। लेकिन, उनके माता-पिता ने उनकी शिक्षा-दीक्षा में कभी कमी नहीं आने दी। उनकी शुरुआती पढ़ाई कानपुर के ही डीएवी में हुई। इसके बाद उन्होंने बीएनएसडी इंटर कॉलेज से आगे की पढ़ाई की। इसके बाद छत्रपति साहू जी महाराज कानपुर विश्वविद्यालय से कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया।
लेकिन रामनाथ कोविंद का मन छात्र जीवन से ही आर्थिक मामलों से ज्यादा सामाजिक मामलों में लगता रहा। यही समय था जब उनका झुकाव राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर रहा। लेकिन बाद में उन्होंने कानपुर यूनिवर्सिटी से एलएलबी कर के वकालत में कूद गए।
साल 1971 में ही वे दिल्ली बार काउंसिल के लिए नामांकित भी हुए थे। उसी दौर में उनकी 30 मई 1974 को सविता कोविंद से शादी गई थी। दोनों के दो बच्चे हैं। बेटे का नाम प्रशांत और बेटी का स्वाति कोविंद है।
शादी के बाद वे पूरी तरह से वकालत में समर्पित हो गए। उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक वकालत की प्रैक्टिस की। गवर्नर ऑफ बिहार की वेबसाइट के आंकड़ों के अनुसार राष्ट्रपति कोविंद दिल्ली हाईकोर्ट में साल 1977 से 1979 तक केंद्र सरकार के वकील के तौर पर वकालत की। इसके बाद साल 1980 से 1993 तक वे केंद्र सरकार के स्टैंडिग काउंसिल में शामिल रहे। बीबीसी की एक खबर के अनुसार राष्ट्रपति कोविंद ने कुल 16 सालों तक अदालतों में प्रैक्टिस की है।
वकालत और दबे-कुचलों की लड़ाई के रास्ते राजनीति में आए
वकालत के दौरान राष्ट्रपति कोविंद के उनके दबे-कुचले समाज के लिए लगातार काम करने के लिए जाना जाता था। उन्होंने अनुसूचित जाति, जनजाति और महिलाओं के लिए आगे बढ़कर काम किया। इस दौरान उनको गरीब व नीची जातियों के बिना शुल्क कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए जाना जाता था। यही वहज रही कि साल 1994 में उन्हें उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद के तौर पर चुन लिया गया। लेकिन यहां आने के बाद उन्होंने अपनी सक्रियता को और बढ़ा दिया।
उन्होंने कई ऐसी समतियों में सक्रिय हिस्सा निभाया जिन्होंने सामाजिक उत्थान में अहम भूमिका निभाई। इसमें आदिवासी समिति, सामाजिक न्याय, कानून व न्याय व्यवस्था आदि प्रमुख हैं। वे राज्यसभा के हाउस कमेटी के चेयरमैन भी रहे।
उनका राजनैतिक झुकाव हमेशा से भारतीय जनता पार्टी की ओर रहा। वे दो बार राज्यसभा सांसद रहने के बाद बिहार के राज्यपाल चुन लिए गए। जबकि 25 जुलाई 2017 को उन्हें भारत का 14वां राष्ट्रपति चुन लिया गया। उनके करीब सवा साल के कार्यकाल में राष्ट्रपति के तौर पर लग्जरियों को लेने से मना करने के लिए जाना जाता है। वे सामाजिक मुद्दों पर सक्रिय भी रहते हैं।