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मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने हज सब्सिडी खत्म करने का किया स्वागत, एक ने कहा- मुसलमानों ने कभी मांगा ही नहीं था

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: January 17, 2018 09:22 IST

पिछले साल केंद्र सरकार ने हज के लिए जाने वाले यात्रियों को करीब 200 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी थी।

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मंगलवार (16 जनवरी) को नरेंद्र मोदी सरकार सऊदी अरब स्थित मक्का-मदीना में हज यात्रा के लिए जाने वाले मुसलमानों को हवाईजहाज के किराए में मिलने वाली छूट (सब्सिडी) खत्म करने का प्रमुख मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने स्वागत किया है। पिछले साल केंद्र सरकार ने हज यात्रियों को करीब 200 करोड़ की सब्सिडी दी थी। साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को हज यात्रियों को दी जाने वाली इस सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने का आदेश दिया था।

शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी, कांग्रेस प्रवक्ता मीम अफजल, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फारुकी और एआईएमआईएम सरबरा और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने नरेंद्र मोदी सरकार के इस फैसले का स्वागत किया। हज सब्सिडी खत्म करने का स्वागत करते हुए कुछ प्रमुख मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने इस पर सवाल भी उठाया है। पत्रकार राशिद किदवई ने बीबीसी हिन्दी पर प्रकाशित लेख में कहा है कि मुसलमानों ने इस सब्सिडी की कभी माँग नहीं की थी। राशिद किदवई के अनुसार सैयद शहाबुद्दीन, मौलाना महमूद मदनी, सांसद असदुद्दीन ओवैसी और ज़फरुल-इस्लाम ख़ान जैसे मुस्लिम नेता इस सब्सिडी को खत्म करने की मांग करते रहे हैं। 

किदवई ने हज सब्सिडी खत्म करने की प्रशंसा करते हुए मुसलमानों के लिए इसकी उपयोगिता पर सवाल उठाया है। रशीद किदवई के अनुसार सब्सिडी खत्म होने से पहले तक हज करने वाले हर मुस्लिम यात्रा को करीब 10 हजार रुपये की सब्सिडी का लाभ मिलता था। किदवई के अनुसार असलियत में इस सब्सिडी का इस्तेमाल भारत सरकार कर्जे में डूबी एयर इंडिया का बोझ कम करने के लिए करती थी। किदवई के अनुसार ये सब्सिडी एयर इंडिया से हज करने जाने वालों को मिलती थी और सब्सिडी की राशि सीधे एयर इंडिया के खाते में ट्रांसफर होती थी। 

किदवई के अनुसार इंदिरा गांधी ने आपातकाल में मुस्लिम वोट बैंक को एकजुट करने के लिए हज यात्रा में सब्सिडी का कार्ड चला था। हालांकि उस वक्त तेल संकट के कारण हज यात्रा काफी महंगी हो गई थी। किदवई ने लिखा है, "इस सब्सिडी को स्टॉपगैस के रूप में पेश किया गया और इस तरह इस पर हमेशा के लिए 'अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण' का लेबल चस्पा हो गया।"

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