नई दिल्ली:गुजरात दंगों के दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 64 लोगों को एसआईटी की क्लीनचिट को चुनौती देने वाली जाकिया जाफरी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलील देते हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि एसआईटी प्रमुख आरके राघवन को बाद में उचायुक्त बना दिया गया था.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ के समक्ष सिब्बल ने कहा कि मामले से जुड़े सभी लोगों को बाद में कोई न कोई पद मिल गया. राघवन को राजदूत बना दिया गया.
सीबीआई के पूर्व निदेशक आरके राघवन को अगस्त 2017 में साइप्रस का उच्चायुक्त नियुक्त किया गया था. वहीं, सिब्बल ने यह भी उल्लेख किया कि अहमदाबाद के तत्कालीन पुलिस आयुक्त पीसी पांडे, जो शुरू में मामले के एक आरोपी थे, बाद में गुजरात के डीजीपी बने. उन्होंने कहा कि आरोपी से डीजीपी तक का सफर हैरान करने वाला है.
इससे पहले बुधवार को गुजरात दंगों के कई मामलों की जांच करने वाले विशेष जांच दल (एसआईटी) ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि वर्ष 2002 के गुजरात दंगों में बड़ी साजिश का आरोप लगाने वाली जकिया जाफरी की शिकायत की गहनता से जांच की गई, जिसके बाद यह निष्कर्ष निकला कि इसे आगे बढ़ाने के लिए कोई सामग्री नहीं है.
जाफरी दिवंगत कांग्रेस नेता एहसान जाफरी की पत्नी हैं जिनकी 28 फरवरी 2002 को सांप्रदायिक हिंसा के दौरान अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी में हत्या कर दी गई थी. हिंसा में एहसान जाफरी सहित 68 लोगों की मौत हुयी थी.
इस घटना से एक दिन पहले गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगने से 59 लोगों की मौत हो गई थी और गुजरात में दंगे हुए थे.
सुप्रीम कोर्ट ने 26 अक्टूबर को कहा था कि वह 64 व्यक्तियों को क्लीन चिट देने वाली विशेष जांच दल (एसआईटी) की मामला बंद करने संबंधी ‘क्लोजर रिपोर्ट’ और मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा दिए गए औचित्य पर गौर करना चाहेगी.
जकिया जाफरी ने 2018 में उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर गुजरात उच्च न्यायालय के पांच अक्टूबर 2017 के आदेश को चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने एसआईटी के फैसले के खिलाफ उनकी याचिका खारिज कर दी थी.
बुधवार को गुरुवार को लगातार दो दिन सुनवाई के बाद अब मामले की अगली सुनवाई 16 नवंबर को होगी.
माया कोडनानी को बरी करने के खिलाफ नहीं दाखिल की गई अपील
गुजरात दंगों की साजिश के मामले में एसआईटी द्वारा ठीक से जांच नहीं किए जाने के मामले में कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि नरोदा से पूर्व भाजपा विधायक माया कोडनानी को बरी करने के गुजरात हाई कोर्ट के फैसले को एसआईटी ने चुनौती नहीं दी गई, जिन्हें ट्रायल कोर्ट ने 2002 के नरोटा पाटिया नरसंहार मामले में मुख्य साजिशकर्ता माना था.
विश्व हिंदू परिषद के लोगों को सरकारी वकील नियुक्त किया गया
जाकिरा जाफरी की सुनवाई में सिब्बल ने यह भी बताया कि 2002 के दंगों के समय के आसपास विहिप से संबद्ध अधिवक्ताओं को लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त किया गया था.
उन्होंने दिनांक 17.05.2010 की एसआईटी रिपोर्ट को पढ़कर सुनाया कि ऐसा प्रतीत होता है कि लोक अभियोजकों की नियुक्ति के लिए अधिवक्ताओं की राजनीतिक संबद्धता सरकार के साथ अधिक थी.
सिब्बल ने संकेत दिया कि इन नियुक्तियों ने अंततः विहिप और अन्य संबद्ध दलों के सदस्यों को जमानत पाने में मदद की क्योंकि इन सरकारी वकीलों ने जमानत याचिकाओं का विरोध नहीं किया.
पहले आपके पास विहिप के लोगों को हैं जो दंगों के लिए बुलाते हैं और फिर आप विहिप के लोगों को अभियोजक के रूप में नियुक्त करते हैं. जब दिलीप त्रिवेदी को विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया गया था तब 55 लोगों को जमानत पर रिहा किया गया था.