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पेगासस के जरिये सरकार ने लोकतंत्र को कुचलने का प्रयास किया, संसद में चर्चा होनी चाहिए: राहुल

By भाषा | Updated: October 27, 2021 21:04 IST

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नयी दिल्ली, 27 अक्टूबर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कथित पेगासस जासूसी प्रकरण की जांच के लिए उच्चतम न्यायालय की ओर से तीन सदस्यीय समिति बनाने संबंधी फैसले के बाद बुधवार को केंद्र सरकार पर देश के लोकतंत्र को कुचलने और राजनीति पर नियंत्रण करने के प्रयास का आरोप लगाते हुए कहा कि संसद के आगामी सत्र में इस मुद्दे पर चर्चा होनी चाहिए।

उन्होंने उच्चतम न्यायालय की ओर से जांच के फैसले को ‘अच्छा कदम’ करार दिया और कहा कि देश की सर्वोच्च अदालत ने इस प्रकरण में विपक्ष के रुख का समर्थन किया है।

राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि इन दोनों नेताओं के अलावा पेगासस के उपयोग की अनुमति कोई नहीं दे सकता तथा ऐसा करना एक ‘आपराधिक कृत्य’ है।

दूसरी तरफ, भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने राहुल गांधी पर पलटवार करते हुए कहा कि झूठ बोलना और भ्रम फैलाना कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष की आदत रही है।

पात्रा ने यह भी कहा कि पेगासस जासूसी प्रकरण की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति बनाने का उच्चतम न्यायालय का फैसला केंद्र सरकार द्वारा शीर्ष अदालत में दिए गए हलफनामे के अनुरूप है।

राहुल गांधी ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘संसद के पिछले सत्र के दौरान हमने यह मुद्दा उठाया था क्योंकि हमें लगा कि यह हमारे संविधान और लोकतंत्र की बुनियाद पर हमला है। अब न्यायालय ने जांच का फैसला किया है...यह एक अच्छा कदम है।’’

उन्होंने यह भी कहा, ‘‘हम जो कह रहे थे, उच्चतम न्यायालय ने बुनियादी तौर पर उसका समर्थन किया है। हमारे तीन सवाल थे। पहला यह कि पेगासस को किसने खरीदा तथा इसे किसने अधिकृत किया? दूसरा यह है कि किनके खिलाफ इस स्पाईवेयर का इस्तेमाल किया गया? तीसरा यह कि क्या किसी अन्य देश ने हमारे लोगों के बारे में सूचना हासिल की, उनका डेटा लिया?’’

राहुल गांधी ने कहा, ‘‘ इन सवालों का कोई जवाब नहीं मिला। इसके बाद हमने संसद की कार्यवाही बाधित की। हमने संसद की कार्यवाही को इसलिए रोका क्योंकि यह हमारे देश और हमारे जीवंत लोकतंत्र को कुचलने एवं नष्ट करने का प्रयास है।’’

यह पूछे जाने पर कि क्या इस मुद्दे पर संसद के भीतर कांग्रेस को एक बार फिर दूसरे प्रमुख विपक्षी दलों का समर्थन मिलेगा, तो उन्होंने कहा, ‘‘निश्चित रूप से।’’

उन्होंने यह आरोप भी लगाया, ‘‘यह भारत के विचार (आइडिया ऑफ इंडिया) पर हमला है।यह देश की राजनीति पर नियंत्रण करने का एक तरीका है, लोगों को नियंत्रित करने, ब्लैकमेल करने, लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नहीं चलने देने का एक तरीका है। हम बहुत खुश हैं कि उच्चतम न्यायालय ने इसकी जांच करने की बात स्वीकार की।’’

एक सवाल के जवाब में राहुल गांधी ने कहा, ‘‘हम इस मामले को फिर से संसद में उठाएंगे और इस पर चर्चा कराने का प्रयास करेंगे। पता है कि भाजपा चर्चा नहीं चाहेगी। लेकिन हम इस पर चर्चा चाहेंगे। हम चाहेंगे कि संसद में इस पर चर्चा अवश्य हो।’’

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने दावा किया, ‘‘प्रधानमंत्री या गृह मंत्री ने इसे अधिकृत किया है। इन दो ही लोगों ने यह किया होगा। (नितिन) गडकरी ने यह नहीं किया होगा। किसी अन्य मंत्री ने यह नहीं किया होगा। अगर प्रधानमंत्री ने दूसरे लोगों के साथ मिलकर हमारे देश पर आक्रमण किया है तो उन्हें जवाब देना होगा। हम जानना चाहेंगे कि उन्होंने गैरकानूनी काम क्यों किए? वह देश से ऊपर नहीं हैं।’’

उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘जो डेटा आ रहा था, वह क्या प्रधानमंत्री को मिल रहा था ? अगर चुनाव आयुक्त और विपक्षी नेताओं का डेटा प्रधानमंत्री के पास जाए तो फिर यह आपराधिक कृत्य है।’’

राहुल गांधी ने यह आरोप भी लगाया, ‘‘प्रधानमंत्री या गृह मंत्री ने कुछ ना कुछ गैरकानूनी काम किया है क्योंकि उन्हें तो पूरी स्पष्टता के साथ जवाब देना चाहिए था कि हां, हमने यह किया या नहीं किया तथा अगर किया, तो इसलिए किया। अगर वो जवाब नहीं दे पा रहे हैं, तो इसका कारण यह है कि कुछ ना कुछ छुपाया जा रहा है।’’

गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने इज़राइली स्पाईवेयर ‘पेगासस’ के जरिए भारत में कुछ लोगों की कथित जासूसी के मामले की जांच के लिए बुधवार को विशेषज्ञों की तीन सदस्यीय समिति का गठन किया। शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रत्येक नागरिक को निजता के उल्लघंन से सुरक्षा प्रदान करना जरूरी है और ‘‘सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा’’ की दुहाई देने मात्र से न्यायालय ‘‘मूक दर्शक’’ बना नहीं रह सकता।

प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण, न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया मौजूदा साक्ष्य ‘‘गौर करने योग्य प्रतीत होते हैं।’’ पीठ ने केन्द्र का स्वयं विशेषज्ञ समिति गठित करने का अनुरोध यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि ऐसा करना पूर्वाग्रह के खिलाफ स्थापित न्यायिक सिद्धांत का उल्लंघन होगा।

शीर्ष अदालत ने अपने पूर्व न्यायाधीश आरवी रवींद्रन से तीन सदस्यीय समिति के कामकाज की निगरानी करने का आग्रह किया और समिति से जल्द ही रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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