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Gorakhpur Lok Sabha seat: गोरखपुर ने यूपी को दो मुख्यमंत्री दिए, इतिहास के आइने में, जानें समीकरण और इतिहास

By राजेंद्र कुमार | Updated: April 10, 2024 18:24 IST

Gorakhpur Lok Sabha seat: मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी का गृह जिला और महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित रामप्रसाद बिस्मिल की शहादत स्थली के रूप में भी गोरखपुर को जाना जाता है.

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ठळक मुद्देगोरखपुर कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की कर्मस्थली भी रही है. चौरी चौरा कांड ने महात्मा गांधी को असहयोग आंदोलन वापस लेने को मजबूर किया.मेयर के पद पर एक किन्नर (आशा देवी ) को बिठा दिया था.

Gorakhpur Lok Sabha seat: गोरखपुर पूर्वांचल की सबसे प्रभावशाली लोकसभा सीटों में से एक है. या ये कहें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रतिनिधित्व वाली वाराणसी सीट के बाद यह यूपी की सबसे महत्वपूर्ण सीट है तो गलत नहीं होगा. यह शहर आर्य संस्कृति एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है. प्रसिद्ध गुरु गोरखनाथ मंदिर, विश्व प्रसिद्ध गीता प्रेस, गीता वाटिका यहां स्थित है. गोरखपुर कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की कर्मस्थली भी रही है. मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी का गृह जिला और महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित रामप्रसाद बिस्मिल की शहादत स्थली के रूप में भी गोरखपुर को जाना जाता है.

जंगे आजादी में यहां हुए चौरी चौरा कांड ने महात्मा गांधी को असहयोग आंदोलन वापस लेने को मजबूर किया. इस तरह ही तमाम ऐतिहासिक घटनाओं को अपने में सहेजे रखने वाले गोरखपुर के शहर के लोग बहुत मूडी. यही वजह है कि इस शहर के लोगों ने यूपी को वीर बहादुर सिंह और योगी आदित्यनाथ सरीखे दो मुख्यमंत्री दिए तो सूबे के सीएम बनकर चुनाव लड़ने वाले टीएन सिंह को चुनाव में हरा भी दिया.

यही नहीं इस शहर ने वर्ष 2001 में तमाम नामचीनों को हराकर मेयर के पद पर एक किन्नर (आशा देवी ) को बिठा दिया था. मेयर बनने के बाद आशा देवी कुछ दिनों तक रिक्शे पर ही लाल बत्ती लगाकर चलती लोगों को दिखी.

मुख्यमंत्री रहे हुए चुनाव हारे टीएन सिंह

यह वाकया वर्ष 1970 का है. अक्टूबर 1970 में चौधरी चरण सिंह की प्रदेश में सरकार थी. कांग्रेस, जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी और भारतीय क्रांति दल ने मिलकर संयुक्त विकास दल बनाया. इनका बहुमत होने से सरकार अल्पमत में आ गई. लिहाजा चरण सिंह को त्यागपत्र देना पड़ा. कुछ दिनों के लिए प्रदेश में राष्ट्रपति शासन भी लगा.

इस बीच संयुक्त विकास दल ने उस समय त्रिभुवन नारायण सिंह (टीएन सिंह) को अपना नेता चुना.  18 अक्टूबर 1970 को टीएन सिंह यूपी के सीएम बन गए. जिस समय टीएन सिंह मुख्यमंत्री बने, उस समय वह किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे. देश में ऐसा पहली बार हुआ था, लिहाजा टीएन सिंह के सीएम बनाए जाने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि कोई भी मुख्यमंत्री हो सकता है, शर्त यह है कि पद ग्रहण करने के छह माह बाद उसे बहुमत साबित करना होगा. इसके बाद वर्ष 1971 में मानीराम में उपचुनाव हुआ. इस चुनाव में टीएन सिंह कांग्रेस के उम्मीदवार रामकृष्ण द्विवेदी से चुनाव हार गए.

हालांकि यूपी का सीएम बनने के पहले टीएन सिंह चंदौली संसदीय क्षेत्र से लोकसभा के पहले और दूसरे चुनाव में सांसद निर्वाचित हो चुके थे. तब उन्होने समाजवाद के प्रवर्तक डा.राममनोहर लोहिया को शिकस्त दी थी. वह लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में केंद्रीय उद्योग एवं इस्पात मंत्री और पब्लिक एकाउंट कमेटी के सदस्य भी रहे थे. चुनाव हारने के बाद बंगाल का राज्यपाल बनाया गया.

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