वर्जनाओं को तोड़ने वाली फिल्में अहम लेकिन वे फार्मूला नहीं बन सकतीं : आयुष्मान खुराना
By भाषा | Updated: December 22, 2021 15:17 IST2021-12-22T15:17:54+5:302021-12-22T15:17:54+5:30

वर्जनाओं को तोड़ने वाली फिल्में अहम लेकिन वे फार्मूला नहीं बन सकतीं : आयुष्मान खुराना
(जस्टिन राव)
मुंबई, 22 दिसंबर अभिनेता आयुष्मान खुराना ने कहा कि उनकी कोशिश अपनी चुनी हुई फिल्मों के साथ सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ने की होती है लेकिन वह लगातार खुद को तलाशने की कोशिश करते हैं। साथ ही वह एक परिपाटी में नहीं ढलना चाहते हैं जो उनके लिए उनकी पहचान बन जाए।
खुराना ने अपनी फिल्मों जैसे ‘‘शुभ मंगल सावधान’’, ‘‘बाला’’ और हालिया फिल्म ‘‘चंडीगढ़ करे आशिकी’’में समलैंगिकों के प्रति द्वेष, ट्रांसजेंडर के प्रति द्वेष, समय से पूर्व गंजापन और पुरुषों की यौन संबंधी समस्याओं जैसे विषयों को लगातार छुआ है जिसके केंद्र में लगातार एक पहचान की जद्दोजहद रही है।
खुराना ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए साक्षात्कार में कहा कि वर्जना वाले विषय उन्हें आकर्षित करते हैं क्योंकि वे विचार-विमर्श की शुरुआत करते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘यह अहम है कि ये विषय मध्यम वर्ग के सामने उनकी बातचीत में आते हैं क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ तो द्वंद्व नहीं होगा। अगर आप इनमें से किसी को उच्च वर्ग, जागरूक परिवार के सामने रखेंगे तो द्वंद्व नहीं होगा। यह पीछे सोचने वाले और रूढ़िवादी परिवार के लिए है, ताकि कुछ बदलाव हो।’’
खुराना ने कहा, ‘‘द्वंद्व,हास्य का पुट देता है और अंतत: सुखद तरीके से सामाजिक संदेश देता है। अगर मैं सामान्य फिल्में भी करूं तो वह बातचीत की शुरुआत करने वाली और मूल्यों को बढ़ाने वाली होनी चाहिए। अन्यथा सिनेमा करने में क्या मजा है?’’
उन्होंने कहा कि मुझे पता है कि कई लोग महसूस करते हैं कि वर्जना वाले विषय उनके लिए सामान्य हो गए हैं। खुराना ने कहा कि वह लोगों की धारणाओं पर गौर नहीं करते, लेकिन इस बात को लेकर सतर्क रहते हैं कि यह परिपाटी न बन जाए।
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