नई दिल्लीः मोदी सरकार द्वारा पारित किये गए कृषि विधेयकों के खिलाफ कांग्रेस ने मोर्चा खोल दिया है, जिसकी शुरुआत सोनिया गाँधी के निर्देश पर पर पंजाब से हुई। पार्टी सूत्र बताते हैं कि यह सिलसिला केवल कांग्रेस शासित राज्यों तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि विपक्ष के नेतृत्व वाली दूसरी सरकारें भी अपने अपने राज्य में केंद्र द्वारा पारित किये गए किसान विरोधी क़ानूनों के खिलाफ क़ानून बनाएगी।
पंजाब के बाद छत्तीसगढ़ की बारी है, चूँकि राज्यपाल द्वारा राज्य सरकार को विधान सभा का विशेष सत्र बुलाने की अनुमति नहीं दी गयी है इसलिए राज्य सरकार को क़ानून पारित करने में विलम्ब हो रहा है। पार्टी ने घोषणा की कि कांग्रेस हर कीमत पर केंद्र के इन क़ानूनों का विरोध करेगी क्योंकि मोदी सरकार ने नियमों को ताक पर रख कर परम्पराओं के विपरीत इन्हें संसद में पारित किया है।
पार्टी ने ऐसे भी संकेत दिए कि छत्तीसगढ़ में अगर राज्यपाल ने विशान सभा का विशेष सत्र बुलाने की अनुमति नहीं दी तो राज्य में आंदोलन खड़ा होगा। दूसरी ओर कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारें कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए तैयारी कर चुकी हैं ताकि इन केंद्र द्वारा पारित क़ानूनों को रद्द कराया जा सके।
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने तो यहाँ तक कह डाला कि अगर ज़रुरत पड़ी तो वे किसानों की ख़ातिर अपनी सरकार भी क़ुर्बान कर देंगे। कांग्रेस मोदी सरकार के क़ानूनों को संविधान के विपरीत मानती है और इसी आधार पर वे अदालत में इन्हें चुनौती देने जा रही है।
पार्टी के प्रवक्ता मनु अभिषेक सिंघवी ने कहा कि प्रधान मंत्री मोदी और भाजपा सरकार को पंजाब सरकार का धन्यवाद देना चाहिए क्योंकि उन्होंने मोदी सरकार को उनकी भूल सुधार का अवसर प्रदान किया है, जिससे केंद्र द्वारा पारित क़ानूनों में न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था सुनिश्चित की जा सके।