सद्गुरु, संस्थापक ईशा फाउंडेशन से विशेष साक्षात्कार- 'व्यक्ति के आंतरिक स्थिति को ठीक करने और अपनी मौलिक केमिस्ट्री को बदलने की तकनीक ‘‘योगिक विज्ञान’’ या “इनर इंजीनियरिंग“ है'
By अनुभा जैन | Published: June 15, 2023 12:42 PM2023-06-15T12:42:35+5:302023-06-19T15:00:31+5:30
एक महत्वपूर्ण कदम के तौर पर संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया। यह एक ऐसी आधारशिला थी यह बताने के लिये कि आंतरिक चेतना और कल्याण एक वैश्विक पहलू है। जहां मनुष्य की आंतरिक समावेशी चेतना ’योग’ के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है वहीं योग द्वारा मनुष्य अपनी अंतरात्मा से जुड़ भी सकता है।
इसी संदर्भ में, पद्मविभूषण पुरस्कार से सम्मानित ईशा फाउंडेशन के संस्थापक ‘सद्गुरु’ से हुए अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर मेरे विशेष साक्षात्कार में उन्होने बताया की संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित करने का महत्व यह है कि हम योग के बारे में लोगों की उन भ्रांतियों को दूर कर सकते हैं - कि यह किसी विशेष संस्कृति, या धर्म या राष्ट्र से संबंधित नहीं है। यह आंतरिक खुशहाली का विज्ञान है। जिस तरह बाहरी खुशहाली के लिए विज्ञान और तकनीक है, उसी तरह आंतरिक खुशहाली के लिए भी विज्ञान और तकनीक है। तो, इस दिन की घोषणा करने वाला संयुक्त राष्ट्र स्पष्ट रूप से स्वीकार करता है कि योग आंतरिक खुशहाली का साधन है। जिसको भी अपनी खुशहाली में दिलचस्पी है, उसे अपने भीतर की ओर मुड़ने की जरूरत है। या दूसरे शब्दों में, हमने खुशहाली और विभाजित मानवता की तलाश में ऊपर की ओर देखा है। हमने खुशहाली की तलाश में दुनिया को नष्ट कर दिया है। भीतर देखना ही एकमात्र उपाय है। अंदर मुड़ना ही एकमात्र रास्ता है - यही अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का संदेश है।
जब मैने पूछा कि आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से न होते हुए, जीवन में वह विशेष क्षण या मार्गदर्शक शक्ति जिसने आपको योग और आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर किया का जवाब देते हुये सद्गुरु ने कहा कि मैं व्यापार और उद्यम में शामिल था और एक समय में बहुत सफलतापूर्वक कई काम कर रहा था। अचानक एक दोपहर, एक खास आंतरिक अनुभव ने कुछ ही घंटों में मेरे बारे में सब कुछ बदल दिया। तो, वहाँ मैं एक पहाड़ी की चोटी पर बैठा था। उस क्षण तक, मैं क्या था और कोई दूसरा क्या था, यह बहुत स्पष्ट था। लेकिन मैं वहां बैठा हुआ था और अचानक मुझे नहीं पता चला कि कौन मैं हूं और कौन नहीं। जो “मैं“ था वह सब जगह था। मुझे लगा कि दस-पंद्रह मिनट ही बीते होंगे, लेकिन असल में साढ़े चार घंटे बीत गए थे। जीवन में पहली बार मेरी आंखों में आंसू थे, जो मेरे लिए संभव ही नहीं था। मेरे शरीर की हर कोशिका से परमानंद फूट रहा था जिसे मैंने पहले कभी नहीं जाना था। वह हर चीज जिसे मैंने खुद को एक व्यक्ति के रूप में जाना था, बस गायब हो गया था और मैं बस खाली और आनंदित था। इसलिए, मेरा काम बस इस अनुभव को लोगों को प्रदान करने की कोशिश करना है, क्योंकि हर इंसान इसमें सक्षम है - बस जीवित रहने के आनंद को जानना।
इस अराजकता के दौर में हर कोई किसी न किसी बात से हताश है। ऐसी परिस्थितियों में शांति और आंतरिक खुशी कैसे प्राप्त करें पर बात करते हुये सद्गुरु बोले अगर आप बाहरी उथल-पुथल के बारे में चिंतित हैं, तो इसे इस तरह समझें। किसी कारणवश अभी बाहर के हालात खराब हो गए हैं - अशांत हो गए हैं। अगर बाहर खराब हो गया है, तो क्या भीतर को भी अशांति में बदलने में कोई बुद्धिमानी है? क्या इससे आप बाहरी स्थिति को संभालने में सशक्त होंगे? नहीं, आप बस खुद को मूर्ख बना लेंगे। जब आप शांत होते हैं, जब आप अपने भीतर सहज महसूस करते हैं, केवल तभी आप बुद्धिमानी से कार्य कर सकते हैं और वह कर सकते हैं जो बाहरी चीजों को संभालने के लिए आवश्यक है।
आप पूछ रहे हैं, “अगर बाहर की स्थिति उथल-पुथल में है, तो मैं शांत कैसे हो सकता हूं?“ आपके भीतर जो हो रहा है, बाहर की स्थिति उसका एक बड़ा प्रतिबिंब है। समाज जैसी कोई चीज नहीं है; केवल व्यक्तिगत मनुष्य हैं। अगर आपके भीतर थोड़ी शांति है, तो आप अपने आसपास शांति बनाए रख सकते हैं। यह अंदर से बाहर की ओर बह रही है, विपरीत दिशा में नहीं। परिस्थितियों को इंसान को नहीं बनाना चाहिए; मनुष्य को परिस्थितियाँ बनानी चाहिए।
यह पूछने पर कि मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से निपटने में योग और ध्यान की क्या भूमिका है, सद्गुरु ने कहा कि हमें यह समझने की जरूरत है कि हमारा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों ही मूल रूप से हमारी जिम्मेदारी है। लोग सोचते हैं कि डॉक्टरों को हमारे जीवन को ठीक करना होगा। अगर वायरस हमारे अंदर आ जाता है, तो हम डॉक्टर के पास जाएंगे क्योंकि यह बाहरी आक्रमण है और हमें मदद की जरूरत है। लेकिन बहुत से लोग अपने विचारों और भावनाओं से खुद को दुखी बना रहे हैं। इसे कहते हैं सेल्फ हेल्प! नाराजगी, गुस्सा, घृणा - ये ऐसे जहर हैं जिन्हें आप पीते हैं लेकिन किसी दूसरे के मरने की उम्मीद करते हैं। जीवन ऐसे नहीं चलता। अगर आप जहर पिएंगे, तो आप ही मरेंगे।
ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि हमने अपने शरीर, मन, भावना और ऊर्जा पर नियंत्रण प्राप्त नहीं किया है। जैसे बाहरी स्थितियों को ठीक करने के लिए एक विज्ञान और तकनीक है, वैसे ही आंतरिक स्थितियों को ठीक करने के लिए एक पूरा विज्ञान और तकनीक है। इसे ही हम “इनर इंजीनियरिंग“ कह रहे हैं। योगिक विज्ञान इसी के बारे में है। आप जो हैं उसकी मौलिक केमिस्ट्री को आप बदल सकते हैं।
अंत मे, सद्गुरु से हुये इस साक्षात्कार के जरिये मैने यही पाया कि योग चेतना को जोड़ने का समग्र दृष्टिकोण है। 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाना आंतरिक अस्तित्व और अपने आप को योग के माध्यम से फिर से खोजने की एक आश्चर्यजनक पहल है।