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एन. के. सिंह का ब्लॉग: कश्मीर का हर दूसरा युवा रहा है अवसाद का शिकार

By एनके सिंह | Updated: August 13, 2019 05:36 IST

अगर प्रति व्यक्ति आय भी अच्छी है, बेरोजगारी भी राष्ट्रीय औसत से कम है, जीवन प्रत्याशा भी बेहतर है, शारीरिक स्वास्थ्य भी अच्छा है तो कश्मीर का युवा मानसिक अवसाद में क्यों है?

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ठळक मुद्देतीन साल पहले ‘डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ ने कश्मीर के 5428 युवकों पर एक अध्ययन किया.पाया कि यहां लगभग हर दूसरा युवक मानसिक विकार (मेंटल डिसऑर्डर) का शिकार है.

जम्मू-कश्मीर में जो कुछ हुआ है, अभी सिर्फ कागजों पर हुआ है. जो कश्मीर की स्थिति से वाकिफ हैं वे जानते हैं कि जब तक इसे कश्मीर की अवाम के दिलों पर नहीं उकेरा जाएगा तब तक अपेक्षित उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो पाएगी और दिलों पर उकेरने का काम हफ्ते, महीने या साल में नहीं होता. जख्म गहरा है लिहाजा समय लंबा लगेगा. 

हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने उद्बोधन में एक बड़ा ही स्पष्ट संदेश कश्मीर के लोगों को दिया है और वह संदेश यह है कि ‘तुम हाथों से पत्थर और बंदूक छोड़ो, हम तुम्हें अप्वाइंटमेंट लेटर देंगे या विकास के नए आयाम पर ले जाएंगे.’ लेकिन मोदी सरकार का सफर आसान नहीं होगा. पहले भरोसा दिलाना होगा और वह भी तब जब हल्का सा भी दबाव हटाने का मतलब आतंकियों को उपद्रव का मौका देना होगा और न देने से आमजन का भरोसा जाता रहेगा. 

किसान अपनी उपज मंडी ले जाने के लिए जिस गाड़ी का इस्तेमाल कर रहा है उसके नीचे क्या हथियार रखा है यह देखना जरूरी है लेकिन ऐसा करने से किसान क्या खुले हाथों से बंदूक थामे सैनिकों को खुशी से देखेगा? आज से तीन साल पहले दुनिया की एक मकबूल संस्था ‘डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ ने 2015 में अक्तूबर से दिसंबर तक कश्मीर के 5428 युवकों पर एक अध्ययन में पाया कि यहां लगभग हर दूसरा युवक मानसिक विकार (मेंटल डिसऑर्डर) का शिकार है, 19 प्रतिशत (हर पांचवां) गंभीर आघातोत्तर मानसिक दबाव संबंधी डिसऑर्डर (पोस्ट- ट्रॉमा स्ट्रेस डिसऑर्डर - पीटीएसडी) का रोगी है.

वयस्कों में अवसाद की स्थिति 41 प्रतिशत है जबकि उसी साल के भारत के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार देश में इस तरह की मानसिक अस्वस्थता के मामले मात्र 8.9 प्रतिशत हैं. अगर प्रति व्यक्ति आय भी अच्छी है, बेरोजगारी भी राष्ट्रीय औसत से कम है, जीवन प्रत्याशा भी बेहतर है, शारीरिक स्वास्थ्य भी अच्छा है तो कश्मीर का युवा मानसिक अवसाद में क्यों है?

किसी कानून (या संविधान के अनुच्छेद) की सार्थकता या अनुपादेयता इस बात से सिद्ध होती है कि उसके रहने से लाभ क्या रहे, नुकसान क्या रहे और उसके न रहने से लाभ और नुकसान क्या हैं. 70 साल हमने कश्मीर को एक अलग दर्जा दे कर देख लिया. 

गुमराह युवकों के हाथ में एके-47 और पत्थर के अलावा कुछ नहीं दिखाई दिया और धीरे-धीरे इनमें से कुछ पाकिस्तानी साजिश के तहत फिदायीन बनने की ओर भी बढ़ते जा रहे हैं. क्या अब वो वक्त नहीं है जब उन्हें रोजगार के अवसर, किसानों को नए बीज, उन्नत खेती, सड़कें, भेड़ के ऊन के लिए नया मार्केट, बच्चों के लिए स्कूल देकर देखा जाए और इसी के साथ उनके जख्मों पर मरहम लगाने के लिए उन्हें भारत की मुख्य धारा में शामिल किया जाए?

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