"छू नहीं सकती मौत भी आसानी से इसको, यह बच्चा अभी माँ की दुआ ओढ़े हुए है"- बुझ गया चराग-ए-सुखन, अलविदा मुनव्वर राणा
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: January 15, 2024 07:15 AM2024-01-15T07:15:09+5:302024-01-15T07:20:18+5:30
उर्दू अदब की अजीम-ओ-शान शख्सियत और चराग-ए-सुखन आज हमेशा के लिए सुकून की नींद में सो गया। जी हां, उर्दू अदब के अज़ीम शायर मुनव्वर राणा का बीते रविवार रात में इन्तेकाल हो गया है।
नई दिल्ली: उर्दू अदब की अजीम-ओ-शान शख्सियत और चराग-ए-सुखन आज हमेशा के लिए सुकून की नींद में सो गया। जी हां, उर्दू अदब के अज़ीम शायर मुनव्वर राणा का बीते रविवार रात में इन्तेकाल हो गया है। उन्होंने अपनी आखरी सांसे अदब की नगरी लखनऊ में लिया।
शायर मुनव्वर राणा लखनऊ पीजीआई में भर्ती थे और काफी वक्त से बीमार चल रहे थे। उसका इलाज कर रहे डॉक्टरों ने बताया कि हार्ट अटैक के कारण उनकी मौत हुई है। मुनव्वर राणा के मौत की खबर की तस्दीक खुद उनके बेटे ने किया है।
बताया जा रहा है कि 9 जनवरी को तबियत खराब होने के बाद परिवारवालों ने मुनव्वर राणा को लखनऊ के पीजीआई ले गये, जहां उन्हें आईसीयू में भर्ती किया गया था। इससे पहसे वह दो दिन पहले तक लखनऊ स्थित मेदांता अस्पताल में भी भर्ती थे। उन्हें किडनी व हृदय रोग से संबंधित समस्या थी। उनकी बेटी सुमैया राना ने बताया कि रात साढ़े 11 बजे के करीब उन्होंने अंतिम सांस ली। दिल का दौरा पड़ा था। रायबरेली में आज सोमवार को उन्हें सुपुर्द-ए-ख़ाक किया जायेगा।
मुनव्वर राणा को न केवल शायरी बल्कि उनके बेबाक बयानों के लिए भी काफी जाना जाता था। उन्हें साल 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था। मॉब लींचिग की घटनाओं पर उन्होंने असहिष्णुता बढ़ने का आरोप लगाते हुए साल 2015 में अपना अवॉर्ड वापस कर दिया था। यही नहीं उन्होंने किसान आन्दोलन का समर्थन करते हुए कहा था कि संसद भवन को गिरा कर वह खेत बना देना चाहिए। राम मंदिर पर फैसला आने के बाद मुनव्वर राणा ने पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई पर सवाल उठाया था।
26 नवम्बर 1952 में रायबरेली में जन्मे मुनव्वर राणा ज्यादातर वक्त लखनऊ में रहते थे। भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय उनके बहुत से नजदीकी रिश्तेदार और पारिवारिक सदस्य देश छोड़कर पाकिस्तान चले गए लेकिन साम्प्रदायिक तनाव के बावजूद मुनव्वर राणा के पिता ने अपने देश में रहने को ही अपना फर्ज माना।
मुनव्वर राणा की शुरुआती शिक्षा-दीक्षा कलकत्ता में हुई थी। राणा ने ग़ज़लों के अलावा संस्मरण भी लिखे हैं। उनके लेखन की लोकप्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी रचनाओं का ऊर्दू के अलावा अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है। उनकी लिखी हुई किताबे है मां, ग़ज़ल गांव, पीपल छांव, बदन सराय, नीम के फूल, सब उसके लिए, घर अकेला हो गया, कहो ज़िल्ले इलाही से, बग़ैर नक़्शे का मकान, फिर कबीर और नए मौसम के फूल।
उन्हें विभिन्न सम्मानों से नवाजा गया था, जिसमें अमीर ख़ुसरो सम्मान, कविता का कबीर सम्मान, मीर तक़ी मीर सम्मान, शहूद आलम आफकुई सम्मान, ग़ालिब सम्मान, डॉक्टर जाकिर हुसैन सम्मान, सरस्वती समाज सम्मान, मौलाना अब्दुर रज्जाक़ मलीहाबादी सम्मान, भारती परिषद पुरस्कार, हुमायूँ कबीर सम्मान, बज्मे सुखन सम्मान और सरस्वती समाज पुरस्कार जैसे कई सम्मान शामिल हैं।
मुनव्वर राणा का वैसे तो हर कलाम मशहूर और मकबूल है पर उनकी पहचान मां पर लिखी शायरी के कारण ज्यादा मकबूल हुई है।
ज़रा सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाये,
दिये से मेरी माँ मेरे लिए काजल बनाती है
छू नहीें सकती मौत भी आसानी से इसको
यह बच्चा अभी माँ की दुआ ओढ़े हुए है
यूँ तो अब उसको सुझाई नहीं देता लेकिन
माँ अभी तक मेरे चेहरे को पढ़ा करती है
वह कबूतर क्या उड़ा छप्पर अकेला हो गया
माँ के आँखें मूँदते ही घर अकेला हो गया
चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है
सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे 'राना'
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते