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एल्गार मामला: अदालत ने महाराष्ट्र सरकार को भारद्वाज की चिकित्सकीय रिपोर्ट दाखिल करने का दिया निर्देश

By भाषा | Updated: May 13, 2021 13:57 IST

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मुंबई, 13 मई बंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी वकील एवं कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज की नई चिकित्सकीय रिपोर्ट दाखिल करने का बृहस्पतिवार को निर्देश दिया। सुधा भारद्वाज अभी बाइकुला महिला कारागार में बंद हैं।

भारद्वाज की बेटी मायशा सिंह ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर अपनी मां के खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए, उन्हें अंतरिम जमानत देने का अनुरोध किया था। याचिका में कहा गया था कि भारद्वाज को पहले से कई बीमारियों हैं और इससे उनके कोरोना वायरस की चपेट में आने का खतरा बढ़ गया है।

वकील युग चौधरी ने न्यायमूर्ति केके ताटेड और न्यायमूर्ति अभय आहूजा की पीठ से कहा कि भारद्वाज को गंभीर बीमारियां हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें मधुमेह, हृदय संबंधी रोग हैं और उन्हें पहले तपेदिक भी हो चुका है।

चौधरी ने कहा कि भारद्वाज को एक ऐसे वार्ड में रखा गया है, जिसमें अन्य 50 महिलााएं बेहद विषम परिस्थितियों में रह रही हैं और वहां उन सभी के लिए केवल तीन शौचालय हैं।

चौधरी ने दावा किया, ‘‘ वह जिस वार्ड में बंद है, वह वास्तव में एक खतरनाक जगह है।’’

राज्य के वकील जयेश यागनिक ने पीठ को बताया कि भारद्वाज को बृहस्पतिवार शाम मुंबई के जेजे अस्पताल में जांच के लिए ले जाया जाना है। दो बार पहले भी भारद्वाज की कोविड-19 संबंधी जांच की गई है, जिसमें उनके संक्रमित नहीं होने की पुष्टि हुई थी।

पीठ ने यागनिक को भारद्वाज की चिकित्सकीय रिपोर्ट 17 मई को अदालत के समक्ष पेश करने का निर्देश दिया।

चौधरी ने यह भी दावा किया कि उन्होंने और भारद्वाज के परिवार ने बाइकुला कारागार में पिछले कुछ दिनों में करीब 18 बार फोन किया लेकिन जेल वार्डन ने फोन पर बात करने से मना कर दिया।

चौधरी ने आरोप लगाया, ‘‘ उन्होंने हमसे बात नहीं की, लेकिन वह पत्रकारों से बात कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारों से कहा है कि भारद्वाज कहानियां गढ़ रही हैं और अपने स्वास्थ्य के बारे में झूठ बोल रही हैं।’’

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अदालत जेल में विषम परिस्थितियों और वहां समाजिक दूरी के नियम का पालन संभव ना होने के संबंध में दायर याचिका पर राज्य को जवाब दायर करने का निर्देश दे।

पीठ ने हालांकि कहा कि राज्य केवल 15 प्रतिशत कर्मचारियों के साथ ही काम कर रहा है और इसलिए वह उनसे तत्काल जवाब दायर करने की उम्मीद नहीं कर सकता।

वहीं, राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) के वकील संदेश पाटिल ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए उच्च न्यायालय से कहा कि मामले में किसी तरह की ‘‘ तात्कालिकता’’ की कोई जरूरत नहीं है।

अदालत जमानत याचिका पर 21 मई को सुनवाई करेगी।

पुलिस के अनुसार, कुछ कार्यकर्ताओं ने 31 दिसम्बर 2017 को पुणे में एल्गार परिषद की बैठक में कथित रूप से उत्तेजक और भड़काऊ भाषण दिया था, जिससे अगले दिन जिले के कोरेगांव भीमा में हिंसा भड़की थी।

यह भी आरोप है कि इस कार्यक्रम को कुछ मओवादी संगठनों का समर्थन प्राप्त था।

भारद्वाज और अन्य कार्यकर्ताओं के खिलाफ शुरुआत में पुणे की पुलिस ने कोरेगांव भीमा में हिंसा भड़काने के आरोप में मामला दर्ज किया था।

इसके बाद मामले की जांच एनआईए ने अपने हाथ में ले ली थी।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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