सभी क्षेत्रों में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को तवज्जो मिलनी चाहिए : पूर्व कैबिनेट सचिव

By भाषा | Updated: March 28, 2021 13:09 IST2021-03-28T13:09:25+5:302021-03-28T13:09:25+5:30

Elected representatives in all areas should get attention: Former Cabinet Secretary | सभी क्षेत्रों में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को तवज्जो मिलनी चाहिए : पूर्व कैबिनेट सचिव

सभी क्षेत्रों में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को तवज्जो मिलनी चाहिए : पूर्व कैबिनेट सचिव

नयी दिल्ली, 28 मार्च संसद से हाल ही में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के उप-राज्यपाल को अधिक शक्तियां प्रदान करने वाले विधेयक को मंजूरी मिलने के बाद केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच टकराव बढ़ने की आशंका व्यक्त की जा रही है और आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया है कि यह केंद्र द्वारा लाया गया ‘मनमाना’ विधेयक है। पेश हैं इस संबंध में पूर्व कैबिनेट सचिव बी के चतुर्वेदी से भाषा के पांच सवाल पर उनके जवाब...

सवाल : दिल्ली के उपराज्यपाल की भूमिका और अधिकारों को परिभाषित करनेवाले हाल में संसद से मंजूर विधेयक के प्रावधानों को आप कैसे देखते हैं?

जवाब : इस विधेयक में कहा गया है कि विधेयक में दिल्ली विधानसभा में पारित विधान के परिप्रेक्ष्य में सरकार का आशय राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के उपराज्यपाल से होगा। सभी विधायी व प्रशासनिक निर्णयों में उपराज्यपाल से मंजूरी लेना दिल्ली सरकार के लिए अनिवार्य होगा। दिल्ली सरकार को विधायी प्रस्ताव पहले उपराज्यपाल को भिजवाना होगा।

इस विधेयक से पहले दिल्‍ली सरकार प्राथमिकता के आधार पर उप-राज्‍यपाल को अपने फैसलों से जुड़ी फाइलों को स्‍वीकृति के लिए भेजती थी। अब इस विधेयक के कानूनी रूप लेने के बाद दिल्ली सरकार के लिए उप-राज्‍यपाल को तय सीमा के अंदर फाइलों को भेजना जरूरी होगा। ऐसी स्थिति में केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है।

सवाल : दिल्ली की शासन व्यवस्था से जुड़े इस संशोधन विधेयक के प्रावधानों से आप कितना सहमत हैं?

जवाब : मेरे विचार से पूर्व का प्रावधान सही था। पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री को दिन-प्रतिदिन के कामकाज के लिए उपराज्यपाल की सहमति लेने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन संशोधन विधेयक के कानूनी रूप लेने के बाद दिल्ली सरकार के लिए उपराज्यपाल से अनुमति लेना अनिवार्य होगा। इससे पहले जब यह मामला उच्चतम न्यायालय पहुंचा था तब अदालत ने स्पष्ट कर दिया था कि उपराज्यपाल की शक्तियां कानून-व्यवस्था और भूमि सहित केवल तीन मुद्दों तक ही सीमित रहेंगी।

सवाल : केंद्र सरकार का कहना है कि दिल्ली के प्रशासन में स्पष्टता एवं सामंजस्य की दृष्टि से उक्त विधेयक लाया गया। आप इससे कितना सहमत हैं?

जवाब : दिल्ली देश की राजधानी होने के कारण सुरक्षा एक प्रमुख विषय है। दिल्ली में प्रमुख मंत्रालयों/विभागों के मुख्यालय हैं, उचचतम न्यायालय है, देश की संसद स्थित है। ऐसे में सुरक्षा, कानून एवं व्यवस्था जैसे विषयों को उपराज्यपाल के दायरे में रखा जाना चाहिए। लेकिन स्वास्थ्य, शिक्षा एवं सामाजिक क्षेत्र एवं जनकल्याण से जुड़े विषयों पर जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों को तवज्जो दी जानी चाहिए। इन विषयों को भी उपराज्यपाल के दायरे में रखा जाना उपयुक्त नहीं लगता है। अच्छा होता कि इन बातों को विधेयक में स्पष्ट किया जाता जिसका ध्यान नहीं रखा गया।

सवाल : दिल्ली में सीमित अधिकारों वाली विधानसभा होने की पृष्टभूमि में नयी व्यवस्था के क्या दूरगामी प्रभाव पड़ेंगे ?

जवाब : 1991 में संविधान के 239एए अनुच्छेद के जरिये दिल्ली को केंद्रशासित राज्य का दर्जा दिया गया था। इस क़ानून के तहत सार्वजनिक व्यवस्था, ज़मीन और पुलिस को छोड़कर दिल्ली की विधानसभा को कानून बनाने की शक्ति हासिल थी, लेकिन आने वाले दिनों में ऐसी स्थिति नहीं रहेगी। ऐसे में सामाजिक क्षेत्र से जुड़े कार्यों में जनप्रतिनिधियों की सहभागिता कम हो जाएगी।

सवाल : दिल्ली सरकार इस विधेयक को अदालत में चुनौती देने की बात कह रही है। संसद में पारित विधेयक को न्यायालय में चुनौती देने की क्या सार्थकता रहेगी?

जवाब : उच्चतम न्यायालय के पास संसद से पास किए गए किसी कानून की समीक्षा करने का अधिकार है। मूल कानून में उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार की शक्तियां बहुत स्पष्ट हैं। पूर्व में भी संसद से पारित कई कानूनों को उच्चतम न्यायालय में चनौती दी जा चुकी है। ऐसे में इसे भी चुनौती दी जा सकती है।

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Web Title: Elected representatives in all areas should get attention: Former Cabinet Secretary

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