आम तौर पर देखें तो आज की सोच में शिक्षा के तीन मुख्य उद्देश्य ध्यान आकृष्ट करते हैं। वह अच्छी तरह से जीने के लिए जरूरी क्षमताओं को विकसित करती है जैसे पढ़ना, लिखना, डिजिटल साक्षरता, अपनी और समाज की देख-रेख करना तथा लोगों के साथ मिलकर समूह में काम करना इत्यादि। इस आधारभूत जरूरत के साथ जुड़ी दूसरी आवश्यकता है मूल्यों और चरित्र या स्वभाव का निर्माण, सामाजिक दायित्व और नैतिकता पर मंडराते खतरों और लोभ लाभ के तीव्र आकर्षण के बीच सहानुभूति, आदर, सच्चाई, ईमानदारी, सहयोग और सदाचार के महत्व को कम नहीं आंका जा सकता। तीसरी बात है ज्ञानविशेष का निर्माण जो विभिन्न अध्ययन-अनुशासनों से जुड़ा होता है, उसका विकास। हालांकि ये तीनों जुड़े हैं और साथ-साथ ही जीवन में चलते हैं। गौरतलब है कि इनके लिए वास्तविक सामाजिक परिस्थिति में सीखना अनिवार्य है। ऑनलाइन की तकनीकी इनके लिए किसी भी तरह से मुनासिब नहीं है और उससे बात नहीं बन सकती। इनके लिए सैद्धांतिक और व्यावहारिक दोनों ही स्तरों पर सहज सहभागिता सुनिश्चित की जानी चाहिए।शिक्षा केंद्रों की बदहाली के अनेक आयाम हैं जिन पर गौर करना जरूरी है। आज विद्यार्थियों के लिए वे विकर्षण का केंद्र बन रहे हैं और साधन जुटा कर वे विदेश की ओर रुख कर रहे हैं। बहुत सी सामान्य या उससे नीचे की संस्थाएं भी नैक से उच्च और उच्चतर ग्रेड का प्रमाणपत्र पाकर आगे बढ़ रही हैं। आम आदमी निरुपाय और भ्रमित हो रहा है। उच्च शिक्षा के अध्यापक नई शब्दावली और प्रस्तुति के बीच ऐसे उलझे हैं कि वे क्या और कैसे पढ़ाएं में नवाचार करने के बजाय पुरानी पाठ्यचर्या पर नए कवर चढ़ाकर आगे बढ़ ले रहे हैं। उद्यमिता विकास के नाम पर उच्च शिक्षा संस्थानों और उद्यम आधारित अधिगम स्थलों के बीच न के बराबर तालमेल है। विद्या के परिसर में ज्ञान की संस्कृति की जगह जोड़-तोड़ की राजनीति और गैर अकादमिक आकांक्षाओं को साकार करने पर अधिक जोर दिया जाने लगा है. कुछ खास शैक्षिक संस्थाओं को छोड़ दें जिन्हें स्वायत्तता मिली है और जहां गुणवत्ता की स्वीकृति है तो अन्य संस्थाएं उदासीनता, दखलंदाजी और अव्यवस्था से ग्रस्त होकर हर तरह के समझौतों के साथ बीमार हो रही हैं। सरकारी व्यवस्था जहां अनेक कमियों से जकड़ कर अनुत्पादक बनी हुई है वहीं निजी शिक्षा व्यवस्थाएं अनियंत्रित हो कर बेहद महंगी हुई जा रही है। गुणवत्ता और मानक के स्तर की चिंता आंकड़ों में फंस रही है। नई शिक्षा नीति को जमीन पर उतारने के लिए शैक्षिक व्यवस्था में बदलाव लाने पर ही उसकी साख बचेगी।
ब्लॉग: विद्या के परिसर में सीखने-सिखाने की संस्कृति बहाल की जाए
By गिरीश्वर मिश्र | Updated: July 25, 2023 12:45 IST