दिल्ली के ‘सी आर पार्क’ के लिए पहले ’पूर्वांचल’ था लोगों की पसंद: पुस्तक

By भाषा | Published: November 28, 2021 04:00 PM2021-11-28T16:00:24+5:302021-11-28T16:00:24+5:30

Earlier 'Purvanchal' was people's choice for Delhi's 'CR Park': Book | दिल्ली के ‘सी आर पार्क’ के लिए पहले ’पूर्वांचल’ था लोगों की पसंद: पुस्तक

दिल्ली के ‘सी आर पार्क’ के लिए पहले ’पूर्वांचल’ था लोगों की पसंद: पुस्तक

(कुणाल दत्त)

नयी दिल्ली, 28 नवंबर स्वतंत्रता के बाद दक्षिण दिल्ली स्थित बंगाली बहुल क्षेत्र 'सी आर पार्क' का नाम 'पूर्वांचल' हो सकता था। एक नयी पुस्तक के अनुसार इसके नामकरण की कहानी इसकी शुरुआत जितनी ही दिलचस्प है।

राजधानी दिल्ली के इस इलाके को ‘लिटिल कलकत्ता’ के नाम से भी जाना जाता है। इसे इसके मछली बाजार, ‘संदेश’, ‘चमचम’ जैसी मिठाइयों की बिक्री करने वाली पुरानी दुकानों और समृद्ध निवासियों के लिए जाता है। इन निवासियों में से कई की जड़े अविभाजित भारत में पूर्वी हिस्से में हैं।

दिल्ली में इस इलाके को आधिकारिक तौर पर आज 'चितरंजन पार्क' के रूप में जाना जाता है। इस इलाके को ‘सीआर पार्क’ भी कहा जाता है। इसकी परिकल्पना 1947 के विभाजन के बाद, पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से विस्थापित लोगों के लिए की गई थी।

वहीं एक नयी किताब ने दावा किया गया है कि ईस्ट पाकिस्तान डिस्प्लेस्ड पर्ससंस एसोसिएशन (ईपीडीपी) ने जब इस इलाके के नामकरण के लिए दो नाम सुझाये थे तो अधिकतर लोगों की पसंद ‘सी आर पार्क’ नहीं बल्कि ‘पूर्वांचल’ था।

पत्रकार अद्रिजा रॉयचौधरी ने अपनी पहली पुस्तक ‘दिल्ली, इन थाय नेम’ में, इस 'बंगाली कॉलोनी' के नामकरण के पीछे की कहानियों की पड़ताल की, क्योंकि इसे कई लोगों द्वारा अनौपचारिक रूप से इसी नाम से संदर्भित किया जाता है।

लगभग 200 पृष्ठों की इस पुस्तक में कनॉट प्लेस और कनॉट सर्कस के नामकरण तथा इसका नाम बदलकर पूर्व प्रधानमंत्रियों राजीव गांधी और इंदिरा गांधी के नाम पर करने का भी उल्लेख किया गया है जिसे ‘‘लोगों एवं व्यापारिक समुदाय द्वारा स्वीकार नहीं किया गया।’’

इस पुस्तक की शुरुआत मुगल कालीन शाहजहांनाबाद के चांदनी चौक की कहानी से होती है। इस पुस्तक में लेखक ने अंग्रेजों के समय देश की राजधानी कलकत्ता से नयी दिल्ली स्थानांतरित होने का भी उल्लेख किया है।

आम धारणा के विपरीत, बंगाली इलाके के नामकरण के लिए ‘सीआर पार्क’ सर्वसम्मत पसंद नहीं था। इसके लिए जमीन केंद्र सरकार द्वारा चिराग दिल्ली से सटे कालकाजी क्षेत्र में आवंटित की गई थी।

पुस्तक के अनुसार, जब केंद्र 1950 के दशक में पश्चिम पाकिस्तान के हजारों शरणार्थियों के पुनर्वास में व्यस्त था। दिल्ली में कुछ बंगाली सरकारी कर्मचारी का मानना था कि जिन लोगों ने अपनी सम्पत्ति पूर्वी पाकिस्तान में खो दी है उन्हें किसी न किसी रूप में मुआवजा दिया जाना चाहिये। पुस्तक में कहा गया है कि ‘एसोसिएशन आफ सेंट्रल गवर्नमेंट एम्प्लाइज डिस्लॉज्ड फ्रॉम ईस्ट पाकिस्तान’ इस उद्देश्य से 1954 में स्थापित किया गया था।

रूपा द्वारा प्रकाशित पुस्तक में अद्रिजा कहती हैं कि उनकी मांगों को शुरू में इस तर्क के साथ ठुकरा दिया गया था कि ऐसे व्यक्तियों की संख्या "बहुत कम" है और उनके पास "शरणार्थी प्रमाण पत्र नहीं थे।’’

समुदाय के निरंतर प्रयासों के बाद प्राधिकारियों द्वारा यह निर्णय लिया गया कि कोई भी ऐसा व्यक्ति जो केंद्र शासित दिल्ली में रहता है और पूर्वी पाकिस्तान से विस्थापित हुआ है वह एसोसिएशन की सदस्यता के लिए पात्र है। इसके परिणामस्वरूप एसोसिएशन का नाम बदलकर ‘ईस्ट पाकिस्तान डिस्प्लेस्ड पर्ससंस एसोसिएशन’ (ईपीडीपी) कर दिया गया।

लेखिका कहती है कि जब इस इलाके के नामकरण की बात आयी तो शुरुआत में दो नाम पसंदीदा थे - रवींद्रनाथ टैगोर और नेताजी सुभाष चंद्र बोस। हालांकि दिल्ली में पहले से ही उनके नाम पर स्थान थे। फिर एक और विकल्प था - 'पूर्वांचल'। यह नाम उस स्थान की याद दिलाता जहां से इसके निवासी आये थे।

वह कहती है कि कॉलोनी में अभी भी एक ईपीडीपी रोड है और ईपीडीपी एसोसिएशन की आधिकारिक पत्रिका को वास्तव में 'पूर्वांचल' कहा जाता है। लेखिका रॉयचौधरी ने इसके पीछे की कहानी सामने लाने के लिए ऐसे कई लोगों का साक्षात्कार लिया, जो ईपीडीपी कॉलोनी में बसने वाले शुरुआती लोगों में से थे। 'सीआर पार्क' नाम प्रसिद्ध बैरिस्टर एवं स्वतंत्रता सेनानी 'देशबंधु' चित्तरंजन दास के नाम पर आधारित है। इसे 1960 के दशक के उत्तरार्ध में पंजीकृत किया गया था जब क्षेत्र में मकानों का निर्माण होने लगा था।

पुस्तक में दावा किया गया है, ‘‘आखिरकार, ईपीडीपी एसोसिएशन ने एक जनमत संग्रह का आह्वान किया और 'पूर्वांचल' और 'चितरंजन पार्क' के बीच लोगों के बीच वोट कराया। अधिकांश सदस्यों ने ‘पूर्वांचल’ के पक्ष में वोट किया।’’

वह कहती हैं, क्षेत्र का नाम 'पूर्वांचल' नहीं रखा गया था क्योंकि जो लोग इस नामकरण से खुश नहीं थे, उन्होंने तत्कालीन इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्रियों से संपर्क किया, और अंततः 'चितरंजन पार्क' नाम पर आधिकारिक मुहर लगा दी गई।

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