जिस जातिगत जनगणना को UPA शासन में कांग्रेस ने किया था खारिज, आज राहुल गांधी ने उसे ही मनाया मुद्दा; क्यों?
By अंजली चौहान | Updated: May 5, 2025 13:09 IST2025-05-05T12:48:29+5:302025-05-05T13:09:29+5:30
Rahul Gandhi On Caste Census: यह कवायद संसद में चर्चा के बाद शुरू की गई, जब हिंदी पट्टी के समाजवादी दलों - राजद, जद (यू) और सपा - ने इसकी मांग की, जिससे कांग्रेस अचंभित हो गई।

जिस जातिगत जनगणना को UPA शासन में कांग्रेस ने किया था खारिज, आज राहुल गांधी ने उसे ही मनाया मुद्दा; क्यों?
Rahul Gandhi On Caste Census: केंद्र सरकार द्वारा जातिगत जनगणना कराने के लिए विपक्ष दबाव बना रहा है। कांग्रेस ने अपनी राज्य इकाइयों से कहा कि वे अतीत में ‘जाति गणना’ के लिए भाजपा के प्रतिरोध और राहुल गांधी द्वारा इसके लिए लगातार किए जा रहे प्रयासों को उजागर करें। एक परिपत्र में, एआईसीसी महासचिव (संगठन) के सी वेणुगोपाल ने सभी राज्य इकाइयों को पिछले सप्ताह सीडब्ल्यूसी की बैठक में की गई मांगों को उठाने का निर्देश दिया, जिसमें बिना देरी के जाति जनगणना करना और अनुच्छेद 15 (5) को लागू करना शामिल है, जो सभी राज्यों और जिलों में आयोजित होने वाली आगामी ‘संविधान बचाओ रैलियों’ के दौरान है।
वेणुगोपाल ने राज्य इकाइयों से जमीनी स्तर पर पार्टी की ऐतिहासिक और चल रही प्रतिबद्धताओं को बताने का भी आग्रह किया, जिसमें राहुल गांधी द्वारा निभाई गई नेतृत्व भूमिका भी शामिल है।
हालांकि दशकों से, कांग्रेस पार्टी का जाति जनगणना पर उसका ट्रैक रिकॉर्ड एक अलग ही सच्चाई को उजागर करता है- जो प्रणालीगत उपेक्षा, नीतिगत पक्षाघात और अधूरे वादों से चिह्नित है। भारत की स्वतंत्रता के बाद से, कांग्रेस ने लगातार व्यापक जाति जनगणना कराने से परहेज किया है, जिससे राष्ट्र को महत्वपूर्ण डेटा से वंचित होना पड़ा है।
जाति जनगणना से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और सामान्य वर्ग सहित सभी जातियों की जनसांख्यिकीय और आर्थिक स्थिति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी, फिर भी कांग्रेस ने राजनीतिक कारणों से इस मुद्दे को नजरअंदाज करना चुना।
जाति जनगणना पर कांग्रेस
स्वतंत्रता के बाद, कांग्रेस ने जाति जनगणना की मांग को लगातार अनदेखा किया है, जाति-आधारित जनसांख्यिकी पर महत्वपूर्ण डेटा के संग्रह में सक्रिय रूप से बाधा डाली है।
जाति जनगणना पर कांग्रेस की दशकों से चली आ रही चुप्पी या निष्क्रियता एक जटिल और बहुआयामी विषय है, जो भारत की सामाजिक संरचना, राजनीति और नीति-निर्माण के गहरे पहलुओं से जुड़ा हुआ है।
- 1931: यह वह साल था जब भारत में आख़िरी बार जातिगत जनगणना (OBC समेत सभी जातियों की) करवाई गई थी। इसके बाद से केवल SC (अनुसूचित जाति) और ST (अनुसूचित जनजाति) से संबंधित आंकड़े ही जनगणना में शामिल किए जाते रहे हैं।
- जातिगत आंकड़े सामाजिक न्याय, आरक्षण नीति, और कल्याण योजनाओं के लिए बेहद अहम माने जाते हैं।
कांग्रेस की दशकों तक की स्थिति
1. 1947–1989: कांग्रेस का प्रभुत्व और जातिगत चुप्पी
भारत की आज़ादी के बाद से 1989 तक कांग्रेस लगभग बिना किसी बड़े राजनीतिक विरोध के सत्ता में रही।
इस लंबे शासनकाल के दौरान कांग्रेस ने कभी जातिगत जनगणना को पुनर्जीवित करने की पहल नहीं की।
पंडित नेहरू और बाद की कांग्रेस सरकारें जातिगत पहचान को “समाज को विभाजित करने वाली शक्ति” मानती थीं। उनका दृष्टिकोण यह था कि इससे जातिवाद और सामाजिक विघटन को बढ़ावा मिलेगा।
2. 1990s: मंडल आयोग और कांग्रेस की निष्क्रियता
1990 में वी.पी. सिंह सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया और OBC को आरक्षण मिला।
कांग्रेस ने इसका विरोध तो नहीं किया, लेकिन जातिगत जनगणना की माँग पर फिर भी चुप्पी साधे रखी।
यह वह समय था जब देश में सामाजिक न्याय की बहस तेज़ थी, फिर भी कांग्रेस ने इस मुद्दे को अपने मुख्य एजेंडे में शामिल नहीं किया।
2011: कांग्रेस की सरकार में SECC – लेकिन अधूरी पहल
UPA-2 सरकार (मनमोहन सिंह के नेतृत्व में) ने 2011 में Socio-Economic and Caste Census (SECC) करवाई। यह एक ऐतिहासिक कदम माना गया क्योंकि लगभग 80 साल बाद फिर से जातिगत आंकड़े इकट्ठा किए गए।
लेकिन इसमें समस्याएँ रहीं:
आंकड़े संकलित तो हुए, लेकिन उन्हें असंगठित, अधूरे और विवादास्पद बताया गया।
जातियों की संख्या 46 लाख से अधिक बताई गई (कई एक ही जाति के कई रूपों में) जिससे विश्लेषण करना मुश्किल हो गया।
इसलिए UPA सरकार ने यह आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए। इसके बजाय 2015 में मोदी सरकार के दौरान सिर्फ सामाजिक-आर्थिक आंकड़े प्रकाशित किए गए, जातिगत नहीं।
2014–2020: फिर से चुप्पी
कांग्रेस 2014 में सत्ता से बाहर हो गई।
विपक्ष में रहते हुए भी पार्टी ने जातिगत जनगणना को लेकर कोई बड़ा आंदोलन या स्पष्ट नीति नहीं बनाई।
2021–वर्तमान: कांग्रेस का बदला रुख
जैसे-जैसे क्षेत्रीय दल (जैसे RJD, JDU, SP, DMK) जातिगत जनगणना की ज़ोरदार माँग करने लगे, कांग्रेस ने भी धीरे-धीरे इस माँग का समर्थन करना शुरू किया।
2023–2024 के चुनावी माहौल में कांग्रेस ने इसे एक बड़ा मुद्दा बनाना शुरू किया:
राहुल गांधी ने "जाति के आधार पर जनगणना" को सामाजिक न्याय के लिए ज़रूरी बताया।
“जनसंख्या के अनुपात में हक़” का नारा दिया गया।
राजनीतिक कारणों से चुप्पी?
ब्राह्मणवादी वोटबैंक का डर: जातिगत जनगणना के आंकड़े सामने आने से सामाजिक शक्ति संतुलन बदल सकता है, जो कांग्रेस के पारंपरिक उच्च जाति वोटबैंक को प्रभावित कर सकता है।
OBC की स्पष्ट नीति का अभाव: कांग्रेस कभी भी OBC राजनीति में स्पष्ट रणनीति नहीं बना पाई, इसलिए यह मुद्दा उठाने से कतराती रही।
तकनीकी अड़चनों की आड़: सरकारों ने अक्सर तकनीकी समस्याओं (डेटा की गुणवत्ता, संसाधनों की कमी) का हवाला देकर इसे टाला।
वर्तमान में राहुल गांधी ने जाति जनगणना की मांग दोहराते हुए दावा किया कि भारत की 90 प्रतिशत आबादी सिस्टम का हिस्सा नहीं है। लोकसभा में विपक्ष के नेता ने कहा, “90 प्रतिशत लोग सिस्टम से बाहर बैठे हैं, उनके पास कौशल और ज्ञान है, लेकिन उनकी पहुंच (शीर्ष तक) नहीं है। यही कारण है कि, हमने जाति-आधारित संस्थागत जनगणना की मांग उठाई है।”
जाति आधारित जनगणना की मांग अब और ज़ोर पकड़ रही है, खासकर मंडल राजनीति के दौर के बाद और सामाजिक न्याय की बहसों के चलते।
विपक्षी दलों (जैसे RJD, JDU, DMK) ने इस मांग को उठाया है। कांग्रेस ने हाल के वर्षों में इसका समर्थन किया है, विशेषकर 2023-24 के बाद।
यूपीए काल में जातिगत आंकड़ों को छुपाया गया?
पूर्व में नजर डाले तो, यूपीए सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान 2011-2012 में सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) आयोजित की। इस अभ्यास का उद्देश्य जाति-संबंधी जानकारी सहित घरों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर डेटा एकत्र करना था। इस जनगणना को आयोजित करने का निर्णय राष्ट्रीय जनता दल (RJD), समाजवादी पार्टी (SP) और जनता दल (यूनाइटेड) जैसे गठबंधन सहयोगियों की माँगों के बाद आया।
गणना 2012 में पूरी हो गई थी, और डेटा कथित तौर पर 2013 तक तैयार हो गया था। हालाँकि, यूपीए सरकार ने 2014 के आम चुनावों से पहले जाति-विशिष्ट डेटा जारी नहीं किया। कुछ स्रोतों के अनुसार, सरकार ने अगली सरकार को इसे जारी करने का काम सौंपने का फैसला किया।
यूपीए सरकार ने एसईसीसी 2011 के माध्यम से जाति के आंकड़ों का संग्रह शुरू किया था, उसने इन आंकड़ों को जारी नहीं किया। बाद में आई एनडीए सरकार ने भी कई वर्षों तक इन आंकड़ों को रोक कर रखा, जिसकी वजह आंकड़ों की विश्वसनीयता में कमी बताई गई। इस प्रकार, यूपीए काल में एकत्रित जातिगत आंकड़ों को दबाया गया, यह कहना सही है।