पुण्यतिथि: पढ़ें बाबासाहब बीआर आंबेडकर के धर्म, राजनीति, विवाह इत्यादि से जुड़े 10 अनमोल विचार
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: December 6, 2018 11:57 IST2018-12-06T11:57:41+5:302018-12-06T11:57:41+5:30
जब भारत 1947 में ब्रिटिश राज से आजाद हुआ तो डॉ. बीआर आंबेडकर देश के पहले कानून मंत्री बने। उससे पहले वो देश का संविधान बनाने वाली ड्राफ्टिंग कमेटी के सभापति के तौर पर उन्होंने नए देश के लिए नया कानून तैयार करने में अग्रणी भूमिका निभायी।

बाबासाहब आंबेडकर ने अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी और ब्रिटेन के लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से उच्च शिक्षा हासिल की थी। (लोकमत ग्राफिक्स)
आज बाबासाहब डॉ बीआर आंबेडकर की पुण्यतिथि है। भारतीय संविधान के निर्माता माने जाने वाले डॉ आंबेडकर का निधन छह दिसंबर 1956 को हुआ था। 14 अप्रैल 1891 को वर्तमान मध्यप्रदेश के महू में जन्मे आंबेडकर के पिता रामोजी ब्रिटिश फौज में सैनिक थे। आंबेडकर महार जाति से आते थे। उनके पिता ने महू से मुंबई (तब बॉम्बे) शिफ्ट कर गये थे। आंबेडकर की स्कूली शिक्षा-दीक्षा मुंबई में ही हुई। मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद आंबेडकर उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका और फिर ब्रिटेन चले गये। आंबेडकर ने इकोनॉमिक्स में पीएचडी करने के साथ ही लंदन से बैरिस्टर की डिग्री भी हासिल की। आंबेडकर अर्थशास्त्र और क़ानून के साथ ही भारतीय इतिहास और धर्मग्रंथों के भी बड़े विद्वान थे। उन्होंने मृत्यु से कुछ महीने पहले ही सार्जवनिक रूप से बौद्ध धर्म अपना लिया था। आंबेडकर ने जाति व्यवस्था और बौद्ध धर्म पर कई किताबें लिखीं जो इन विषयों पर मौलिक योगदान मानी जाती हैं। पुण्यतिथि पर भारत के इस महान सपूत के उद्धरणों के माध्यम से उनके विचारों से परिचित होते हैं।
बाबासाहब आंबेडकर के 10 प्रसिद्ध वचन-
1- मनुष्य नश्वर है, उसी तरह विचार भी नश्वर हैं। एक विचार को प्रचार-प्रसार की जरूरत होती है, जैसे कि एक पौधे को पानी की, नहीं तो दोनों मुरझाकर मर जाते हैं।
2- पति-पत्नी के बीच का संबंध घनिष्ठ मित्रों के संबंध के समान होना चाहिए।
3- हिन्दू धर्म में विवेक, कारण और स्वतंत्र सोच के विकास के लिए कोई गुंजाइश नहीं है।
4- जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है, वो आपके किसी काम की नहीं।
5- यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं तो सभी धर्मों के शास्त्रों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए।
6- कानून और व्यवस्था राजनीतिक शरीर की दवा है और जब राजनीतिक शरीर बीमार पड़े तो दवा जरूर दी जानी चाहिए।
7- एक महान आदमी एक प्रतिष्ठित आदमी से इस तरह से अलग होता है कि वह समाज का नौकर बनने को तैयार रहता है।
8- मैं ऐसे धर्म को मानता हूं, जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाए।
9- हर व्यक्ति जो मिल (ऑन लिबर्टी किताब के लेखक जॉन स्टुअर्ट मिल) के सिद्धांत कि 'एक देश दूसरे देश पर शासन नहीं कर सकता' को दोहराता है उसे ये भी स्वीकार करना चाहिए कि एक वर्ग दूसरे वर्ग पर शासन नहीं कर सकता।
10- इतिहास बताता है कि जहां नैतिकता और अर्थशास्त्र के बीच संघर्ष होता है, वहां जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है। निहित स्वार्थों को तब तक स्वेच्छा से नहीं छोड़ा गया है, जब तक कि मजबूर करने के लिए पर्याप्त बल न लगाया गया हो।









