डॉ. भीमराव आंबेडकर जयंती: दलितों को ही नहीं, महिलाओं को सशक्त बनाने में भी निभाई अहम भूमिका

By कोमल बड़ोदेकर | Published: April 14, 2018 08:02 AM2018-04-14T08:02:00+5:302018-04-14T11:28:41+5:30

बाबा साहेब का मानना था कि सही मायने में प्रजातंत्र तब आयेगा जब महिलाओं को पैतृक संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा और उन्हें पुरुषों के समान अधिकार दिए जाएंगे। 

dr. bhim rao ambedkar birthday special: Baba saheb played important role for Dalits and women empowerment | डॉ. भीमराव आंबेडकर जयंती: दलितों को ही नहीं, महिलाओं को सशक्त बनाने में भी निभाई अहम भूमिका

डॉ. भीमराव आंबेडकर जयंती: दलितों को ही नहीं, महिलाओं को सशक्त बनाने में भी निभाई अहम भूमिका

नई दिल्ली, 14 अप्रैल: देशभर में दलितों के मसीहा और भारतीय संविधान के निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर की जयंती है। मध्य प्रदेश के इंदौर जिले से सटे एक एक गांव में 14 अप्रैल 1891 को जन्मे डॉ. भीमराव के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था। बाबा साहेब अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान थे। वे जन्म से ही प्रतिभावान थे।  बचपन में आंबेडकर का नाम रामजी सकपाल था।

उस दौर में छुआछूत चरम पर थी और बाबा साहेब का जन्म महार जाति में हुआ था। ऐसे में उनका संपूर्ण जीवन काफी संघर्षों में बीता। पहली पत्नी रमाबाई आंबेडकर के देहांत के बाद उन्होंने डॉक्टर सविता आंबेडकर से विवाह किया था।

निचली जाति के चलते भेदभाव 

निचली जाति का होने के चलते आंबेडकर के परिवार के साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से भेदभाव किया जाता था। आंबेडकर के पूर्वज एक लंबे समय से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में काम कर रहे थे। उनके पिता ब्रिटिश भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा में थे। पिता हमेशा से ही अपने बच्चों की शिक्षा पर जोर देते थे।

14वीं संतान थे आंबेडकर

साल 1894 में भीमराव आंबेडकर के पिता सेवानिवृत्त हो गए और इसके दो साल बाद उनकी मां का देहांत हो गया। सामाजिक कुरीतियों और विषम परिस्थियों के बीच बाबा साहेब की चाची ने उनकी देखभाल की। 14 संतानों में से रामजी सकपाल के केवल तीन बेटे, बलराम, आनंदराव, भीमराव और दो बेटियां मंजुला और तुलसा ही इन कठिन हालातों मे जीवित बच पाए। 

सकपाल से बने आंबेडकर

अपने भाइयों और बहनों मे केवल आंबेडकर ही शुरुआती स्कूली शिक्षा हासिल करने में सफल रहे और आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने बड़े स्कूल में कदम रखा। अपने एक शिक्षक के कहने पर उन्होंने अपना नाम सकपाल की जगह आंबेडकर रख लिया। उनका यह नाम उनके गांव "अंबावडे" पर आधारित है। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय, लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में कानून के साथ अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट, जर्मनी के बॉन विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा हासिल की। 

गांधी-कांग्रेस से मतभेद, संविधान निर्माता, कानून मंत्री बने

अपने तर्कों और विचारों के चलते आंबेडकर अक्सर चर्चा का केंद्र रहे। दलितों के खिलाफ हो रही हिंसा, छूआछूत के खिलाफ आंबेडकर शुरू से ही आक्रामक रहे। इसके साथ ही उन्होंने देश भर के दलितों के लिए आरक्षण की मांग की। इस दौरान जाति व्यवस्था को लेकर महात्मा गांधी और कांग्रेस के साथ उनके मतभेद रहे। वह संविधान का मसौदा तैयार करने वाली समिति के अध्यक्ष रहे और देश के संविधान निर्माता बने। वे देश के पहले कानून मंत्री बने।  

देश की महिलाओं को सशक्त बनाने में निभाई अहम भूमिका

बाबासाहेब आंबेडकर ने न सिर्फ दलितों बल्कि देशभर की महिलाओं को सशक्त बनाने में भी महत्वपूर्ण योगदान निभाया। महिलाओं को और अधिक अधिकार देने और उन्हें सशक्त बनाने के लिए साल 1951 में उन्होंने ‘हिंदू कोड बिल’ संसद में पेश किया। उनका मानना था कि सही मायने में प्रजातंत्र तब आयेगा जब महिलाओं को पैतृक संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा और उन्हें पुरूषों के समान अधिकार दिए जाएंगे। 

उनका मानना था कि महिलाओं की उन्नति तभी संभव होगी जब उन्हें घर परिवार और समाज में सामाजिक बराबरी का दर्जा मिलेगा। शिक्षा और आर्थिक उन्नति उन्हें सामाजिक बराबरी दिलाने में मदद करेगी। संविधान के अनुच्छेद 14 में यह प्रावधान है कि किसी भी नागरिक के साथ लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। आजादी मिलने के साथ ही महिलाओं की स्थिति में सुधार शुरू हुआ। 

हिन्दू  से बने बौद्ध

हिन्दू धर्म की कुरीतियों से तंग आकर उन्होंने धर्म परिवर्तन का फैसला किया और 14 अक्टूबर, 1956 को उन्होंने नागपुर में अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध भिक्षु से पारंपरिक तरीके से तीन रत्न ग्रहण और पंचशील को अपनाते हुये बौद्ध धर्म ग्रहण किया। 6 दिसंबर 1956 को आंबेडकर ने अंतिम सांस ली।

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