पाँच बार मुख्यमंत्री रहे करुणानिधि ने तीन प्रधानमंत्रियों को कुर्सी दिलाने में निभाई थी अहम भूमिका
By स्वाति सिंह | Updated: August 7, 2018 20:55 IST2018-08-07T20:55:09+5:302018-08-07T20:55:09+5:30
करुणानिधि का जन्म 3 जून 1924 को तिरुकुवालाई (तमिलनाडु) में हुआ था। करुणानिधि जब 14 साल के थे तो उन्होंने 1938 में जस्टिस पार्टी जॉइन किया था।

पाँच बार मुख्यमंत्री रहे करुणानिधि ने तीन प्रधानमंत्रियों को कुर्सी दिलाने में निभाई थी अहम भूमिका
चेन्नई, 7 अगस्त: डीएमके प्रमुख एम करुणानिधि तमिलनाडु के प्रसिद्ध नेता थे। करुणानिधि पांच बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वैसे तो इनके कार्य ने हमेशा ही चौकाया है लेकिन एक बात जो सबसे दिलचस्प है वह ये कि 1989 और 1991 के चुनाव में उन्हें एक भी सीट नहीं मिली थी। बावजूद इसके उन्होंने केंद्र की सत्ता में दखल तीन लोगों को पीएम बनवाने में एक अहम रोल निभाया था। चौधरी देवीलाल के साथ मिलकर वीपी सिंह को पीएम बनवाने में भी इनका अहम था।
करुणानिधि को सियासत का गेमचेंजर भी कहा जाता था। बताया जाता है कि 1991 में राजीव गांधी की हत्याकांड मामले में उनकी हत्या का आरोप डीएमके नेता करुणानिधि पर लगाया गया था। तब उनपर यह आरोप केन्द्र सरकार के मंत्री अर्जुन सिंह ने लगाया था। जिसके बाद डीएमके को लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली। लेकिन इसके बाद साल 1996 में डीएमके के हाथ 17 सीटें लगी। वहीं उनके सहयोगी दल तमिल मनीला कांग्रेस को लोकसभा में 20 सीट मिलीं। इसके बाद करुणानिधि की सिफारिश के आधार पर एचडी देवेगौड़ा को पीएम बनाया गया।
हालांकि कुछ समय बाद ही कांग्रेस ने एचडी देवेगौड़ा सरकार से समर्थन ले लिया। नतीजा ये कि देवेगौड़ा सरकार गिर गई। लेकिन उस समय करुणानिधि और कांग्रेस के बीच अच्छे संबंध अच्छे हो चुके थे। इसका फायदा उठाते हुए करुणानिधि आईके गुजराल को पीएम बनवाने में कामयाब रहे थे।
बता दें कि करुणानिधि का जन्म 3 जून 1924 को तिरुकुवालाई (तमिलनाडु) में हुआ था। करुणानिधि जब 14 साल के थे तो उन्होंने 1938 में जस्टिस पार्टी जॉइन किया था। करुणानिधि ने अलागिरिस्वामी के भाषणों से प्रभावित होकर राजनीति ज्वाइन किया था। गौरतलब है कि मुथुवेल करुणानिधि अपने करीब छह दशकों के राजनीतिक करियर में ज्यादातर वक्त तमिलनाडु की सियासत का एक ध्रुव थे। द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के संस्थापक सीएन अन्नादुरई के 1969 में निधन के बाद उन्होंने पार्टी की बागडोर संभाली। उसके बाद से लेकर निधने के दिन तक वह पार्टी के प्रमुख बने रहे।
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