दिग्विजय सिंह ने ज्योतिरादित्य सिंधिया से 200 साल पुराना बदला लिया है !

By विकास कुमार | Published: December 15, 2018 05:40 PM2018-12-15T17:40:04+5:302018-12-15T17:40:04+5:30

आज से 202 साल पहले 1816 में सिंधिया परिवार के राजा दौलतराव सिंधिया ने राघोगढ़ के राजा जय सिंह को युद्ध में हराया था, जिसके बाद राघोगढ़ को ग्वालियर राज के अधीन होना पड़ा था। लेकिन आज परिस्थितियां अलग है। सिंधिया परिवार के ज्योतिरादित्य सिंधिया को राघोगढ़ के राजा दिग्विजय सिंह ने बिना युद्ध के मैदान में उतरे मात दे दिया है।

Digvijay Singh takes historical revenge from Jyotiraditya Sindhiya in Madhya Pradesh election | दिग्विजय सिंह ने ज्योतिरादित्य सिंधिया से 200 साल पुराना बदला लिया है !

दिग्विजय सिंह ने ज्योतिरादित्य सिंधिया से 200 साल पुराना बदला लिया है !

मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के लिए कमलनाथ का नाम तय होने के बाद भी विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक विधायकों की नाराजगी जारी है। कभी दिल्ली तो कभी भोपाल में सिंधिया के समर्थक नारेबाजी के द्वारा सिंधिया के कद का संदेश आलाकमान तक पहुंचाने का हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के फैसले से ज्योतिरादित्य सिंधिया भी नाराज चल रहे हैं। लेकिन आलाकमान के फैसले के आगे मजबूर हैं। अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को छुपाने के लिए अपने पिता के त्याग का उदाहरण दे रहे हैं। 

कमलनाथ के अनुभव और संसाधनों को जुटाने में उनकी क्षमता के सामने सिंधिया की उम्मीदवारी की चमक फीकी पड़ गई। चुनावों के दौरान भी कमलनाथ और सिंधिया के बीच मतभेद खुलकर सामने आये थे। लेकिन पूरे चुनाव के दौरान कमलनाथ सिंधिया पर भारी पड़े, चाहे वो अपने पसंदीदा उम्मीदवार को टिकट देना हो या प्रचार के लिए संसाधनों का बंटवारा करना हो। इसके कारण सिंधिया ने इस बार पूरे चुनाव के दौरान सड़क मार्ग का इस्तेमाल किया, ताकि जनता से सीधा संपर्क स्थापित किया जा सके। क्योंकि उन्हें अपनी राजा वाली छवि को तोड़ना था। 

सिंधिया पर भारी पड़े 'दिग्गी राजा' 

सभी प्रयास करने के बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने पिता की तरह एक बार फिर चूक गए। कमलनाथ के दावे को मजबूत बनाने में मध्य प्रदेश कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह का बहुत बड़ा योगदान रहा है। कांग्रेस आलाकमान से नजदीकी में कांग्रेस का शायद ही कोई नेता उनसे प्रतियोगिता कर पाए। सबको मालूम है कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी के सामने उनकी राजनीतिक हैसियत का दायरा कितना बड़ा है। लेकिन सवाल यही है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के राजघराने से भी होने के बावजूद उन्हें दिग्विजय का साथ क्यों नहीं मिल पाया ? दरअसल इसके पीछे एक ऐतिहासिक कहानी है जिसमें एक राजघराने को दुसरे राजघराने के प्रति अधीन होना पड़ा था। 

राघोगढ़ का पुराना घाव 

आज से 202 साल पहले 1816 में सिंधिया परिवार के राजा दौलतराव सिंधिया ने राघोगढ़ के राजा जय सिंह को युद्ध में हराया था, जिसके बाद राघोगढ़ को ग्वालियर राज के अधीन होना पड़ा था। लेकिन आज परिस्थितियां अलग है। सिंधिया परिवार के ज्योतिरादित्य सिंधिया को राघोगढ़ के राजा दिग्विजय सिंह ने बिना युद्ध के मैदान में उतरे मात दे दिया है। यहीं नहीं दिग्विजय सिंह ने इसका बदला ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधव राव सिंधिया से भी लिया था। 1993 में मध्य प्रदेश में माधव राव सिंधिया को मुख्यमंत्री पद के रेस से बाहर करके उन्होंने खुद सिंहासन संभाला था। 

लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से राजा बनकर ही सही लेकिन दिग्विजय सिंह ने राघोगढ़ के पराजयी इतिहास का बदला पहले पिता और उसके ढाई दशक के बाद पुत्र से लेकर सिंधिया परिवार को आईना दिखाने का काम किया है। ऐसा कहा जा रहा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया अभी 47 वर्ष के हैं और 5 वर्ष के बाद प्रदेश की राजनीति में उनका विकल्प नहीं है। लेकिन ऐसे में हमें दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह को नहीं भूलना चाहिए जो बहुत तेजी के साथ प्रदेश में उभर रहे हैं। खैर सिंधिया के सामने उनका अनुभव बहुत कम है लेकिन आने वाले समय में सिंधिया की बादशाहत को चुनौती तो दे ही सकते हैं। 
 

Web Title: Digvijay Singh takes historical revenge from Jyotiraditya Sindhiya in Madhya Pradesh election

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