पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अगले महीने होने वाले राज्यसभा के चुनाव में असम और तमिलनाडु से संसद लाने की संभावनाएं खत्म हो गई हैं। असम में कांग्रेस के पास अपने दिग्गज नेता को जिताने के लिए अपेक्षित ताकत नहीं है। वहीं, समझा जाता है कि तमिलनाडु में डीएमके ने इस संबंध में सुझाव में खारिज कर दिया है।
तमिलनाडु में राज्यसभा की 6 सीटों के लिए चुनाव होगा और डीएमके दो सीटें आसानी से जीत सकती है। चूकी एम. के. स्टालिन की बहन कनिमोझी लोकसभा के लिए चुन ली गई हैं इसलिए वह राज्य सभा सीट की दौड़ में नहीं हैं।
दूसरी सीट भाकपा के डी राजा के पास है, जो दोबारा निर्वाचित होना चाहते हैं। डीएमके मनमोहन सिंह से बेहद खफा है, क्योंकि जब 2-जी घोटाले में उसके नेताओं पर आरोप लगाये गये थे तब उन्होंने कुछ भी नहीं किया था। मामला कोर्ट में चला गया, लेकिन इस आरोप के कारण पार्टी को राज्य की सत्ता गंवानी पड़ी। यही कारण है कि उसने कांग्रेस को संदेश दिया है कि वह पूर्व प्रधानमंत्री को तमिलनाडु से उम्मीदवार के रूप में स्वीकार नहीं करेगी।
असम में मुश्किल है स्थिति
असम में भी स्थिति विपरीत है। मनमोहन सिंह 1991 से असम से राज्यसभा के सदस्य हैं, लेकिन इस बार कांग्रेस के पास उनको छह साल के कार्यकाल के लिए फिर से जिताने के लिए संख्या बल नहीं है। 126 विधायकों वाले सदन में कांग्रेस के पास केवल 25 विधायक हैं। एआईयूडीएफ के सभी 13 विधायकों के समर्थन के बावजूद मनमोहन सिंह जीत नहीं पाएंगे।
भाजपा के पास गठबंधन के सहयोगियों समेत कुल 88 विधायक हैं और वह राज्य से दोनों सीटें जीतने में सफल रहेगी। मनमोहन सिंह और सन्तियुस कुजूर (दोनों कांग्रेस) 14 जून से असम में राज्यसभा से सेवानिवृत हो रहे हैं। कांग्रेस को एआईयूडीएफ के समर्थन की उम्मीद है या फिर वह किसी उम्मीदवार को नहीं उतारेगी।
बीजेपी पूर्व सांसद तासा को उतार सकती है मैदान में- बीजेपी जोरहाट से पूर्व सांसद कामख्या प्रसाद तासा को मैदान में उतार सकती है। वहीं, गठबंधन सहयोगी असम गण परिषद एक सीट बीरेंद्र प्रसाद बैश्य के लिए मांग रही है। हालांकि, बीजेपी यह उपकार नहीं कर सकती क्योंकि उसने लोकसभा में उसे अतिरिक्त सीट दी थी। बीजेपी महासचिव राम माधव और हिमंत बिस्वा सरमा के नाम भी चर्चा में हैं।