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कोविड-19 की दवाओं को जमा करना नेताओं का काम नहीं: दिल्ली उच्च न्यायालय

By भाषा | Updated: May 17, 2021 16:22 IST

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नयी दिल्ली, 17 मई दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि कोविड-19 के उपचार में इस्तेमाल होने वाली दवाएं, जिनकी पहले से कमी है, जमा करने का काम सियासी नेताओं का नहीं है और उम्मीद की जाती है कि वे दवाएं लौटा देंगे।

अदालत ने दिल्ली पुलिस द्वारा पेश की गई उस स्थिति रिपोर्ट पर भी नाराजगी जाहिर की, जो राष्ट्रीय राजधानी में रेमडेसिविर तथा कोविड-19 की अन्य दवाओं की नेताओं द्वारा जमाखोरी तथा वितरण के आरोपों के संबंध में की गई जांच से संबंधित थी। अदालत ने रिपोर्ट को ‘‘अस्पष्ट तथा आंखों में धूल झोंकने वाली’’ बताया।

अदालत ने कहा, ‘‘क्योंकि कुछ राजनीतिक लोग इसमें शामिल है इसलिए आप जांच नहीं करेंगे। लेकिन हम इसकी इजाजत नहीं देंगे।’’ उसने कहा कि यह अच्छा होता अगर पुलिस हर व्यक्ति पर लगे आरोप विशेष की जांच करती और उसके बाद रिपोर्ट पेश करती।

अदालत ने कहा कि ऐसा बताया गया है कि ये दवाएं जनता की भलाई के लिए खरीदी गईं हैं, ऐसे में वह उम्मीद करती है और आशा रखती है कि इन्हें सियासी फायदे के लिए जमा करके नहीं रखा गया इसलिए नेताओं से अपेक्षा की जाती है कि वे कोविड-19 दवाओं के अपने भंडार दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) को सौंप देंगे, ताकि सरकारी अस्पतालों में जरूरतमंदों के बीच इनका वितरण किया जा सके। जनसेवा का यह सर्वश्रेष्ठ तरीका है।

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि यदि उनके (नेताओं के) इरादे जनता की भलाई के थे, तो उन्हें खुद जाकर दवा का भंडार सौंप देना चाहिए।

पुलिस ने स्थिति रिपोर्ट में कहा है कि कुछ नेता मसलन गौतम गंभीर तथा अन्य दवाओं, ऑक्सीजन के रूप में चिकित्सा सहायता देकर लोगों की वास्तव में मदद कर रहे हैं और उनसे इसके बदले में कोई पैसा नहीं लिया और न ही किसी के साथ धोखाधड़ी की गई।

पुलिस की ओर से पेश स्थायी वकील संजय लाऊ ने कहा कि कथित घटनाओं की जांच दैनिक आधार पर की गई और अधिकारियों ने लोकसभा सदस्य तथा भाजपा नेता गौतम गंभीर, दिल्ली प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष चौधरी अनिल कुमार, कांग्रेस के पूर्व विधायक मुकेश शर्मा, भाजपा के प्रवक्ता हरीश खुराना तथा आप विधायक दिलीप पांडे की जांच की।

कुछ अन्य लोगों की भी जांच की गई जिनमें शामिल हैं दिल्ली कांग्रेस के उपाध्यक्ष अली मेहदी, दिल्ली कांग्रेस के ब्लॉक अध्यक्ष अशोक बघेल, पूर्व सांसद शाहिद सिद्दिकी और अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष श्रीनिवास बी. वी.।

रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘अब तक की जांच में यह पता चला है कि वे सभी व्यक्ति जिन्होंने कथित तौर पर दवाओं आदि की जमाखोरी कर रखी थी, वे दरअसल दवा, ऑक्सीजन, प्लाज्मा तथा अस्पताल में बेड के मामले में लोगों की मदद कर रहे थे। जिन लोगों की जांच की गई, उन्होंने मदद देने के बदले कोई धन नहीं लिया इसलिए किसी के साथ भी धोखाधड़ी नहीं हुई है। वितरण या मदद जो भी की गई वह स्वेच्छा से की गई और बिना किसी भेदभाव के की गई।’’

पुलिस ने मुद्दे की जांच करने और जांच पूरी करने के लिए छह हफ्ते का वक्त मांगा था लेकिन अदालत ने इससे इनकार करते हुए कहा कि महामारी काल में पुलिस बल का नागरिकों के प्रति भी कर्तव्य है।

अदालत ने पूछा, ‘‘इस अस्पष्ट तथा आंखों में धूल झोंकने जैसी जांच करने का क्या मतलब है। इसे लेकर आप ढिलाई कैसे बरत सकते हैं। अभी महामारी चल रही है और आपको अभी कदम उठाने होंगे। हम यह बिलकुल स्पष्ट कर रहे हैं कि इसे स्वीकार नहीं किया जाएगा। हमें काम होने से मतलब है। आपके पास पर्याप्त समय था, यह बिलकुल भी स्वीकार्य नहीं है।’’

पीठ ने कहा कि लोगों को समझदारी से काम लेना चाहिए और ऐसे समय जब कई लोग दवाओं को कालाबाजारी में ऊंची कीमतों पर खरीदने को मजबूर हैं, वहीं इन लोगों द्वारा बड़ी संख्या में इन दवाओं को खरीदने तथा वितरित करके अपनी साख बनाने का कोई कारण नहीं है।’’

उच्च न्यायालय ने कहा कि वह पुलिस से उम्मीद करती है कि वह उचित जांच करेगी तथा हफ्तेभर के भीतर बेहतर स्थिति रिपोर्ट पेश करेगी। अदालत ने न्यायमित्र से इस मुद्दे पर रिपोर्ट तैयार करने को कहा।

अदालत ने कहा कि स्थिति रिपोर्ट में यह साफ तौर पर बताना होगा कि दवाएं जिनकी भारी कमी है और जिन्हें कालाबाजारी करके ऊंचे दामों पर बेचा जा रहा है, उन्हें इन कुछ चुनिंदा लोगों ने इतनी भारी मात्रा में कैसे खरीदा।

पीठ ने पुलिस से कहा, ‘‘इन दवाओं की कमी के कारण कितने सारे लोगों की जान चली गई। आपको इस बात का अहसास है। इसलिए जवाबदेही तय की जाए।’’

अदालत ने औषधि नियंत्रक को भी कार्यवाही में पक्षकार बनाया तथा उसे 24 मई के लिए नोटिस जारी किया।

जब पुलिस ने दावा किया कि किसी एक चिकित्सक ने ये दवाएं खरीदी थीं और उनके जरिए ये नेताओं तक पहुंची तो अदालत ने कहा की प्रथमदृष्टया यह विश्वास करना कठिन है कि कोई चिकित्सक बाजार जाकर बड़ी मात्रा में दवाएं खरीदेगा।

लाऊ ने कहा कि यदि अदालत आदेश पारित करे तो पुलिस आज ही दवाओं का भंडार जब्त कर लेगी।

अदालत ने कहा कि यदि संज्ञेय अपराध पाया जाता है तो अदालत उम्मीद करती है कि पुलिस प्राथमिकी दर्ज करेगी।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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