कंगना के बंगले को गिराना द्वेषपूर्ण कृत्य था : अदालत

By भाषा | Published: November 27, 2020 08:15 PM2020-11-27T20:15:00+5:302020-11-27T20:15:00+5:30

Demolishing Kangana's bungalow was a malicious act: court | कंगना के बंगले को गिराना द्वेषपूर्ण कृत्य था : अदालत

कंगना के बंगले को गिराना द्वेषपूर्ण कृत्य था : अदालत

मुंबई, 27 नवंबर बंबई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) द्वारा अभिनेत्री कंगना रनौत के बंगले के एक हिस्से को ध्वस्त करने की कार्रवाई द्वेषपूर्ण कृत्य थी और ऐसा अभिनेत्री को नुकसान पहुंचाने के लिए किया गया था।

अदालत ने आकलन करने वाली एक एजेंसी की भी नियुक्ति की जो क्षति का आकलन करेगी ताकि क्षतिपूर्ति के लिए रनौत के दावे पर निर्णय किया जा सके।

उच्च न्यायालय ने शिवसेना के संजय राउत द्वारा रनौत के खिलाफ चलाए गए अभियान को लेकर भी फटकार लगाई।

बॉलीवुड अभिनेत्री ने निर्णय को ‘‘लोकतंत्र की जीत’’ बताया। बहरहाल, फैसले में न्यायमूर्ति एस जे काठवाला और न्यायमूर्ति आर आई चागला की पीठ ने रनौत को भी सलाह दी कि बोलते समय वह भी संयम बरतें।

अदालत ने यह भी कहा कि अदालत किसी भी नागरिक के खिलाफ प्रशासन को ‘बाहुबल’ का उपयोग करने की मंजूरी नहीं देती है।

न्यायमूर्ति एस जे काठवाला और न्यायमूर्ति आर आई चागला की पीठ ने कहा कि नागरिक निकाय द्वारा की गई कार्रवाई अनधिकृत थी और इसमें कोई संदेह नहीं है।

पीठ रनौत द्वारा नौ सितंबर को उपनगरीय बांद्रा स्थित अपने पाली हिल बंगले में बीएमसी द्वारा की गई कार्रवाई के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

हालांकि पीठ ने स्पष्ट किया कि वह किसी भी नागरिक द्वारा किए गए किसी भी अवैध निर्माण को नजरअंदाज करने की पक्षधर नहीं है और न ही उसने रनौत के ट्वीट को सही ठहराया जिसके कारण यह पूरी घटना हुई।

उन्होंने अपने आदेश में कहा, ‘‘यह अदालत अवैध कार्यों या सरकार के खिलाफ या फिल्म उद्योग के खिलाफ दिए गए किसी भी गैरजिम्मेदार बयान का अनुमोदन नहीं करती है ।

अदालत ने कहा, 'हमारा मानना है कि याचिकाकर्ता को लोकप्रिय व्यक्ति होने के नाते ट्वीट करते समय कुछ संयम बरतना चाहिए।”

हालांकि,आदेश में कहा गया है कि किसी नागरिक द्वारा अपनी व्यक्तिगत क्षमता में राज्य या उसके तंत्र के खिलाफ की गई टिप्पणियों को राज्य द्वारा नजरअंदाज किया जाना चाहिए।”

पीठ ने कहा,‘‘और अगर कोई कार्रवाई की जाती है, तो यह कानून की सीमाओं में रहकर की जानी चाहिए। प्रशासन द्वारा किसी भी तरह के बाहुबल का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।”

आदेश में रनौत को भविष्य में सार्वजनिक रूप से अपनी राय व्यक्त करते हुए 'संयम' बरतने का भी निर्देश दिया गया।

अपनी याचिका में रनौत ने दावा किया था कि मुंबई पुलिस के खिलाफ उनके ट्वीट के बाद शिवसेना सरकार चिढ़ गई थी और उसके बाद बीएमसी ने द्वेषपूर्ण भावना से यह कार्रवाई की।

बीएमसी ने इन आरोपों से इनकार किया था और कहा था कि अभिनेत्री ने बंगले में अवैध निर्माण करवाया था और इसलिए निगम के अधिकारियों ने कानून के मुताबिक तोड़ने की कार्रवाई की थी।

हालांकि पीठ ने कहा कि विध्वंस स्थल की तस्वीरों, बीएमसी द्वारा रनौत के आरोपों को नकारने वाले बयान, शिवसेना के संजय राउत द्वारा की गई टिप्पणियां, विध्वंस के बाद पार्टी के मुखपत्र 'सामना' में संपादकीय, सभी ने स्पष्ट किया कि नागरिक निकाय ने द्वेषपूर्ण भावना से यह कार्रवाई की है।

इसमें कहा गया है कि ध्वस्त हिस्से काफी समय से थे और बीएमसी द्वारा दावा किए गए किसी भी अवैध निर्माण का हिस्सा नहीं थे।

पीठ ने कहा कि नागरिक निकाय ने एक नागरिक के अधिकारों के खिलाफ गलत इरादे से कार्रवाई की है।

रनौत ने बीएमसी से हर्जाने में दो करोड़ रुपये मांगे थे और अदालत से बीएमसी की कार्रवाई को अवैध घोषित करने का आग्रह किया था।

मुआवजे के मुद्दे पर पीठ ने कहा कि अदालत नुकसान का आकलन करने के लिए निजी कंपनी मेसर्स शेतगिरी को मूल्यांकन करने के लिए नियुक्त कर रही है जो याचिकाकर्ता और बीएमसी को विध्वंस के कारण होने वाले आर्थिक नुकसान पर सुनवाई करेगी।

अदालत ने कहा, ‘‘मूल्यांकन अधिकारी मार्च 2021 तक मुआवजे पर उचित आदेश पारित करेगा।”

नागरिक निकाय ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि अभिनेत्री ने गैरकानूनी तरीके से अपने बंगले में निर्माण कार्य कराए थे।

अदालत के फैसले के बाद रनौत ने ट्वीट किया, ‘‘जब कोई व्यक्ति सरकार के खिलाफ खड़ा होता है और जीतता है तो यह व्यक्ति विशेष की जीत नहीं होती बल्कि लोकतंत्र की जीत होती है। आप सभी को धन्यवाद जिन्होंने मुझे साहस दिया और उन लोगों को भी धन्यवाद जिन्होंने मेरे टूटे सपनों को लेकर हंसी उड़ाई। आप खलनायक की भूमिका निभाएंगे तभी मैं नायक हो सकती हूं।’’

बीएमसी द्वारा नौ सितंबर को विध्वंस प्रक्रिया शुरु करने के बाद ही रनौत ने यह याचिका दायर की थी जिसके बाद अदालत ने अंतरिम आदेश में तोड़फोड़ पर रोक लगा दी थी।

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