अभिव्यक्ति की आजादी के बिना लोकतंत्र अर्थहीन : तसलीमा नसरीन
By भाषा | Updated: November 3, 2021 18:13 IST2021-11-03T18:13:10+5:302021-11-03T18:13:10+5:30

अभिव्यक्ति की आजादी के बिना लोकतंत्र अर्थहीन : तसलीमा नसरीन
नयी दिल्ली, तीन नवंबर अन्याय और कट्टरपंथ के खिलाफ अपने संघर्ष को अनवरत जारी रखने की प्रतिबद्धता जताते हुए प्रख्यात बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन ने यहां कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी के बिना लोकतंत्र अर्थहीन है ।
पिछले सत्ताईस साल से निर्वासन में रह रहीं तसलीमा ने यहां हिंदी की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका ‘हंस’ द्वारा आयोजित ‘राजेन्द्र यादव स्मृति समारोह’ को संबोधित करते हुए यह बात कही।
इस अवसर पर ‘हंस’ द्वारा प्रकाशित तीन पुस्तकों का विमोचन भी किया गया जिनमें से एक किताब पिछले एक दशक में तसलीमा द्वारा लिखे गए और ‘हंस’ पत्रिका में नियमित रूप से प्रकाशित चुनिंदा लेखों का संकलन है जिसे ‘तसलीमा नसरीन शब्दवेधी, शब्दभेदी’ शीर्षक दिया गया है। बाकी दो अन्य किताबों में ‘हंस’ के शुरूआती वर्षों में प्रकाशित लोकप्रिय कहानियों को अंग्रेजी भाषा में अनुदित कर संकलन के रूप में ‘द बेस्ट आफ हंस -वोल्यूम 1 एंड वोल्यूम 2’ शीर्षक से पेश किया गया है ।
अपने मुखर लेखन के लिए अक्सर कट्टरपंथियों के निशाने पर रहने वाली तसलीमा ने इस अवदिल्लसर पर कहा, ‘‘ अन्याय और कट्टरपंथ के खिलाफ मैं अपना संघर्ष जारी रखूंगी...मैं सच बोलती रहूंगी।’’
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बिना लोकतंत्र को अर्थहीन बताते हुए प्रसिद्ध उपन्यास ‘लज्जा’ की बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा ने कहा, ‘‘मैं महिलाओं के अधिकारों, सच्चे धर्मनिरपेक्षतावाद, मानवाधिकारों और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए आवाज उठाती रहूंगी।’’
तसलीमा को 1993 में उनके चर्चित उपन्यास ‘लज्जा’ के प्रकाशन के बाद बांग्लादेश से निष्कासित कर दिया गया था । भारत में 1992 में हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद बांग्लादेश में हिंदू विरोधी दंगों की पृष्ठभूमि में उन्होंने ‘लज्जा’ लिखी थी।
समारोह का आयोजन प्रसिद्ध लेखक और ‘हंस’ के लंबे समय तक संपादक रहे राजेन्द्र यादव की स्मृति में किया गया था।
Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।